राजनीति: माटी, भाषा और अस्मिता के रक्षक रवींद्र केलकर, जिन्होंने कोंकणी को पहचान और गोवा को दिलाया सम्मान

नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)। कोंकणी साहित्य के प्रमुख स्तंभों की चर्चा हो और रवींद्र केलकर का नाम न आए, यह असंभव-सा है। रवींद्र केलकर ही थे, जिन्होंने कोंकणी भाषा को भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करवाने और गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी किताब 'आमची भास कोंकणिच' (1962) ने कोंकणी भाषा की अस्मिता को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
रवींद्र केलकर ने कोंकणी साहित्य की ग्रंथसूची को कोंकणी, हिंदी और कन्नड़ में पेशकर भाषा की सांस्कृतिक और साहित्यिक समृद्धि को रेखांकित किया। उनके प्रयासों से 1975 में साहित्य अकादमी ने कोंकणी को स्वतंत्र भाषा के रूप में मान्यता दी और 1992 में इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया।
7 मार्च 1925 को दक्षिण गोवा के कुंकोलिम में पैदा हुए रवींद्र के पिता डॉ. राजाराम केलकर एक मशहूर चिकित्सक थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पणजी के लिसेयुम हाई स्कूल में हासिल की और छात्र जीवन में ही वे 1946 में गोवा मुक्ति संग्राम से जुड़ गए, जिसने उनके जीवन और लेखन को गहराई से प्रभावित किया।
केलकर ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और गोवा के पुर्तगाली शासन से मुक्ति के लिए सक्रिय भूमिका निभाई। 1946 में गोवा मुक्ति आंदोलन में शामिल होने के बाद वे कई राष्ट्रीय नेताओं, खासकर राम मनोहर लोहिया और गांधीवादी विचारकों, के संपर्क में आए। लोहिया से प्रेरित होकर उन्होंने मातृभाषा कोंकणी को जन-जागरण का माध्यम बनाया। 1949 में वे वर्धा चले गए, जहां उन्होंने गांधीवादी विचारक काकासाहेब कालेलकर के साथ काम किया।
बाद में दिल्ली के गांधी स्मारक संग्रहालय में लाइब्रेरियन के रूप में काम किया, लेकिन गोवा की आजादी के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी। गोवा मुक्ति के लिए उन्होंने 'गोमांतभारती' साप्ताहिक पत्रिका का संपादन किया, जो रोमन लिपि में कोंकणी में प्रकाशित होती थी।
इसके अलावा, केलकर ने कोंकणी भाषा मंडल की स्थापना में भी अहम भूमिका निभाई और 'जाग' पत्रिका का 20 सालों तक संपादन किया। उनकी लगभग 100 पुस्तकों में से कई कोंकणी साहित्य की उत्कृष्ट कृतियां हैं, जिनमें यात्रा के दौरान हुए अनुभव (यात्रा वृत्तांत), निबंध और अनुवाद शामिल हैं।
उनके यात्रा वृत्तांत 'हिमालयांत' को 1976 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला और उन्होंने गुजराती लेखक झवेरचंद मेघानी की पुस्तक का कोंकणी में अनुवाद कर 1990 में दूसरा साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त किया। इसके अलावा, उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी फेलोशिप, गोवा कला अकादमी साहित्य पुरस्कार (1974), कोंकणी साहित्यरत्न पुरस्कार (1994) और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
रवींद्र केलकर का निधन 27 अगस्त 2010 को गोवा के मडगांव में हुआ। उनकी मौत के साथ ही कोंकणी साहित्य ने एक महान हस्ती को खो दिया।
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Created On :   26 Aug 2025 6:25 PM IST