धर्म: स्कंद षष्ठी पर पाएं मनचाहा वरदान, इन आसान विधि से करें भगवान कार्तिकेय की पूजा

स्कंद षष्ठी पर पाएं मनचाहा वरदान, इन आसान विधि से करें भगवान कार्तिकेय की पूजा
आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि शुक्रवार को है। यह दिन भगवान कार्तिकेय (स्कंद) को समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन विशेष विधि से पूजा और व्रत से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि शुक्रवार को है। यह दिन भगवान कार्तिकेय (स्कंद) को समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन विशेष विधि से पूजा और व्रत से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

दृक पंचांग के अनुसार, 12 सितंबर को पंचमी तिथि सुबह 9 बजकर 58 मिनट तक रहेगी, फिर उसके बाद षष्ठी तिथि शुरू हो जाएगी। इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 52 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 42 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय सुबह 10 बजकर 44 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 17 मिनट तक रहेगा।

इस दिन सूर्य देव सिंह राशि में रहेंगे और चंद्रमा शाम के 5 बजकर 30 मिनट तक मेष राशि में रहेंगे। इसके बाद वृषभ राशि में गोचर करेंगे।

स्कंद पुराण के अनुसार, शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन स्कंद षष्ठी मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान कार्तिकेय ने इस दिन तारकासुर नाम के दैत्य का वध किया था, जिसके बाद इस तिथि को स्कंद षष्ठी के नाम से मनाया जाने लगा। इस जीत की खुशी में देवताओं ने स्कंद षष्ठी का उत्सव मनाया था।

स्कंद पुराण के अनुसार, जो दंपति संतान सुख से वंचित हैं, उन्हें स्कंद षष्ठी का व्रत अवश्य करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है।

व्रत शुरू करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें और आसन बिछाएं, फिर एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और उसके ऊपर भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा को स्थापित करें। इसके बाद सबसे पहले भगवान गणेश और नवग्रहों की पूजा करें और व्रत संकल्प लें।

इसके बाद कार्तिकेय भगवान को वस्त्र, इत्र, चंपा के फूल, आभूषण, दीप-धूप और नैवेद्य अर्पित करें। भगवान कार्तिकेय का प्रिय पुष्प चंपा है, इस वजह से इस दिन को स्कंद षष्ठी, कांडा षष्ठी के साथ चंपा षष्ठी भी कहते हैं।

भगवान कार्तिकेय की आरती और तीन बार परिक्रमा करने के बाद “ऊं स्कंद शिवाय नमः” मंत्र का जाप करने से विशेष लाभ मिलता है। इसके बाद आरती का आचमन कर आसन को प्रणाम करें और प्रसाद ग्रहण करें।

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Created On :   11 Sept 2025 8:59 AM IST

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