83 फीसदी भारतीय मरीजों में मल्टीड्रग रेसिस्टेंस ऑर्गनिज्म, एंटीबायोटिक्स नहीं कर रहीं असर अध्ययन

83 फीसदी भारतीय मरीजों में मल्टीड्रग रेसिस्टेंस ऑर्गनिज्म, एंटीबायोटिक्स नहीं कर रहीं असर अध्ययन
एक नए अध्ययन ने देश को मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस की बड़ी चुनौती से रूबरू कराया है। ये स्टडी खौफनाक इसलिए है क्योंकि एमडीआरओ यानी मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस ऑर्गनिज्म इस कदर हावी हुआ है कि देश सुपरबग विस्फोट के केंद्र में पहुंच चुका है। इसका सीधा सा मतलब है कि भारतीय मरीजों की दवाओं के प्रति इम्युनिटी गिरी है और वो इसलिए क्योंकि हम एंटीबायोटिक का उपयोग ज्यादा करते हैं।

नई दिल्ली, 18 नवंबर (आईएएनएस)। एक नए अध्ययन ने देश को मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस की बड़ी चुनौती से रूबरू कराया है। ये स्टडी खौफनाक इसलिए है क्योंकि एमडीआरओ यानी मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस ऑर्गनिज्म इस कदर हावी हुआ है कि देश सुपरबग विस्फोट के केंद्र में पहुंच चुका है। इसका सीधा सा मतलब है कि भारतीय मरीजों की दवाओं के प्रति इम्युनिटी गिरी है और वो इसलिए क्योंकि हम एंटीबायोटिक का उपयोग ज्यादा करते हैं।

83 फीसदी भारतीय मरीजों में मल्टीड्रग रेसिस्टेंस ऑर्गनिज्म, एंटीबायोटिक दवाएं नहीं कर रहीं असर: अध्ययन

लैंसेट ई-क्लिनिकल मेडिसिन जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के आंकड़े जितने चौंकाते हैं उतने ही डराते भी हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 83 प्रतिशत भारतीय मरीजों में मल्टीड्रग रेसिस्टेंस ऑर्गनिज्म (एमडीआरओ) मौजूद हैं। ऐसे लोगों पर एंटीबायोटिक दवाओं का असर होना लगभग बंद हो गया है। इसके मुताबिक हमारा देश सुपरबग्स विस्फोट के केंद्र में पहुंच गया है।

इस रिपोर्ट के आंकड़े चिकित्सा जगत के लिए किसी चुनौती से कम नहीं हैं। ये ऐसी समस्या है जिससे हर किसी को एक साथ मिलकर निपटने की जरूरत है।

डब्ल्यूएचओ के विश्व एएमआर जागरूकता सप्ताह (18-24 नवंबर) के पहले दिन जारी किए गए इस अध्ययन में नीतिगत बदलावों की आवश्यकता पर जोर दिया गया है और एंटीबायोटिक प्रबंधन पर एक राष्ट्रीय आंदोलन का आह्वान किया गया है।

इस मल्टीसेंटर स्टडी में भारत, इटली, नीदरलैंड और अमेरिका में 1,200 से ज्यादा मरीजों का विश्लेषण किया गया। ये सभी एक सामान्य एंडोस्कोपिक प्रक्रिया से गुजरे थे।

भारत के 83 फीसदी मरीजों में एमडीआरओ पाया गया। अन्य देशों के मुकाबले ये सबसे ज्यादा था। इटली के मरीजों में 31.5 प्रतिशत, अमेरिका के मरीजों में 20.1 प्रतिशत और नीदरलैंड के मरीजों में इसकी दर 10.8 प्रतिशत थी।

स्टडी बताती है कि भारतीयों में ईएसबीएल प्रोड्यूस करने वाले ऑर्गनिज्म की दर 70.2 प्रतिशत थी, जिसका अर्थ है कि उन पर सामान्य एंटीबायोटिक्स काम नहीं करेंगी, और 23.5 प्रतिशत में कार्बापेनम-प्रतिरोधी जीवाणु थे, जिसका अर्थ है कि इन पर अंतिम विकल्प वाली एंटीबायोटिक्स भी बेअसर रहती हैं। नीदरलैंड में सीपीई लगभग अनुपस्थित था, लेकिन अमेरिका में यह दुर्लभ पाया गया।

हैदराबाद स्थित एआईजी हॉस्पिटल्स के शोधकर्ताओं ने ये रिसर्च की है। उनके अनुसार, एमडीआरओ जब किसी मरीज में घर कर जाता है तो अस्पतालों के सामने दिक्कत पेश आने लगती है। उन्हें मरीज को ठीक करने के लिए ज्यादा टॉक्सिक और शक्तिशाली दवा देनी पड़ती है, जिससे दिक्कतों में इजाफा होता है और इलाज का खर्च बढ़ जाता है।

भारत में हर साल करीब 58,000 नवजातों की मौत रेजिस्टेंस इंफेक्शन से संबंधित होती है। आईसीयू और कैंसर सेंटर में ऐसे बैक्टीरिया आम हो चुके हैं। स्टडी दावा करती है कि, "यह स्थिति बताती है कि एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) अब भारत में एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल बन चुका है।"

इससे बचने का आखिर उपाय क्या हो सकता है? स्टडी कहती है कि अच्छे चिकित्सकों की सलाह पर मरीज एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करें, जिम्मेदार बनें ताकि उसका प्रभाव ज्यादा दिन तक रहे।

इसके साथ ही ऐसी दवाओं और प्रिस्क्रिप्शन पर भी रोक लगाई जानी चाहिए।

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Created On :   18 Nov 2025 7:32 PM IST

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