MP चुनाव परिणाम: एंटी इनकंबेंसी के बावजूद एक बार फिर कैसे चमकी बीजेपी, लाड़ली बहना के आलवा इन रणनीतियों ने दिलाई जीत

एंटी इनकंबेंसी के बावजूद एक बार फिर कैसे चमकी बीजेपी, लाड़ली बहना के आलवा इन रणनीतियों ने दिलाई जीत
  • एमपी में सत्ता विरोधी लहर भी कांग्रेस की जीत के लिए कम साबित हुई
  • बीजेपी लगातार कांग्रेस की रणनीति पर काम करती रही
  • मोदी फैक्टर के अलावा शिवराज की रणनीति भी रही महत्वपूर्ण

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 230 सीटों वाले मध्य प्रदेश में बीजेपी ने 163 सीटों जीत हासिल करके बड़ा उलटफेर कर दिया है। उलटफेर इसलिए क्योंकि चुनाव से पहले ऐसी अटकलें थी कि शिवराज सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी है। लेकिन चुनावी नतीजे इसके बिलकुल उलट आए हैं और बीजेपी एक बार फिर राज्य में प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने वाली है। ऐसे में आइए समझते हैं कि बीजेपी की वैसी कौन-सी रणनीति रही जिसके चलते उसने ऐसी ऐतिहासिक जीत दर्ज की।

कांग्रेस के सामने बीजेपी का ऑल्टर्नेट ऑप्शन

चुनाव के करीब छह महीने पहले से ही बीजेपी ने कांग्रेस की रणनीतियों पर काम करना शुरू कर दिया था। राजनीति में ऐसा माना जाता है कि दुश्मन की एक हर एक चाल पर नजर रखना जरूरी है। सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान भी कांग्रेस नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की हर एक रणनीति पर नजर बनाए हुए थे। राज्य में कांग्रेस ने सबसे पहले वादा किया कि नारी सम्मान योजना के जरिए प्रदेश की महिलाओं को प्रतिमाह 1500 रुपये दिए जाएंगे। जिसके चलते राज्य की जनता कांग्रेस की ओर आकर्षित होने लगी थी। अपने जनधार को कम होता देख सीएम शिवराज ने ज्यादा देरी न करते हुए "मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना" के जरिए प्रदेश की महिलाओं को प्रतिमाह 1000 रुपये देने शुरु कर दिए। साथ ही, बीजेपी ने इस योजना को महिला सशक्तिकरण से जोड़ दिया। सीएम शिवराज यही नहीं रुके। पहले उन्होंने लड़ली बहना योजना की राशि को बढ़ाकर 1250 रुपये किया और फिर इसे बढ़ाकर 3000 रुपये देने तक का वादा कर दिया।

एंटी इनकंबेंसी पर भी बीजेपी ने किया काम

मध्य प्रदेश की सियासत पर बीजेपी के आलाकमान भी नजर बनाए हुआ था। पिछले साल से लेकर चुनाव तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह राज्य में एक के बाद एक कई रैली करते हुए नजर आए। मोदी और शाह की जोड़ी ने राज्य में चुनाव होने के कई माह पहले से ही कांग्रेस के कोर आदिवासी वोटरों को टारगेट किया। प्रदेश में जब कांग्रेस नेताओं ने सीएम शिवराज के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी को हवा दी तब बीजेपी ने इसे चैलेंज के तौर पर लिया। पार्टी ने एकजुट होकर चुनाव लड़ने का फैसला किया। साथ ही, बीजेपी ने बिना सीएम चेहरा घोषित किए तीन केंद्रीय मंत्री सहित सात सासंदों को चुनावी मैदान में उतार दिया। राज्य में सीएम पद की सीट खाली होने की वजह से और खुद के स्थानीय अस्तिव को दोबारा जिंदा करने के लिए इन सभी सांसदों ने जी तोड़ मेहनत की। नतीजा यह रहा है कि इन नेताओं के विधानसभा क्षेत्रों के आस-पास वाली सीटों पर भी इसका सकारात्मक असर देखने को मिला। साथ ही, कार्यकर्ताओं की नाराजगी और गुटबाजी पर भी विराम लगा।

बीजेपी ने कांग्रेस को स्थानीय लेवल पर घेरा

राज्य में कई विधायकों के खिलाफ स्थानीय लेवल पर जनता में नाराजगी देखी जा रही थी। बीजेपी के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी की एक बड़ी वजह यह भी मानी जा रही थी। पार्टी आलाकमान ने इसका समाधान निकालते हुए 27 सिटिंग विधायकों के टिकट काटे और उनकी जगह नए चेहरों को मौका दिया। जिसका परिणाम चुनावी नतीजों में भी साफ नजर आया। इन 27 नए चेहरों वाली सीटों पर बीजेपी के 24 प्रत्याशियों ने जीत हासिल की।

बीजेपी ने भेदा कांग्रेस का मजबूत किला

इसके आलवा पार्टी नेताओं ने कमलनाथ के प्रभाव वाले छिंदवाड़ा को टारगेट किया। जिसके चलते कमलनाथ अपना किला भी बचाने में ही लगे रहे और बीजेपी ने महाकौशल क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन किया। पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले बीजेपी ने इस महाकौशल रीजन की कुल 38 सीटों में पार्टी ने 21 सीटों पर जीत हासिल की। जो कि पिछले चुनाव के मुकाबले 8 सीटें ज्यादा है।

कांग्रेस इस बार के चुनाव में ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया से भी बदला लेने के फिराक में रही। बीजेपी ने दबे पांव इसका फायदा उठाते हुए कांग्रेस के कोर वोट बैंक वाली आदिवासी बहुल मालवा-निमाड़ रीजन को टारगेट किया। नतीजा रहा है कि यहां भी बीजेपी ने पिछले चुनाव के मुकाबले 19 सीटें अधिक जीतते हुए कुल 48 सीटें जीती। मालवा-निमाड़ रीजन में कुल 66 सीटें आती है, जो कि सीटों के लिहाज से राज्य का सबसे बड़ा क्षेत्र है। पिछले चुनाव में बीजेपी ने यहां पर केवल 29 सीटें जीती थीं। इस बार के चुनाव में कांग्रेस यहां पर 34 सीटों से घटकर 17 सीटों पर आ गई है। हालांकि, कांग्रेस ग्वालियर चंबल में सिंधिया के समर्थकों को हराने में जरूर कामयाब रही लेकिन वह ग्वालियर चंबल रीजन को भी नहीं बचा पाई। बीजेपी ने ग्वालियर चंबल के कुल 34 सीटों में से 18 सीटों पर जीत दर्ज की। कांग्रेस यहां पर पिछले चुनाव के मुकाबले 26 सीटों से गिरकर 10 सीटों पर पहुंच गई।

Created On :   4 Dec 2023 6:02 PM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story