जानिए कितना पुराना है केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच का वो विवाद, जिस पर आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया है अहम फैसला

जानिए कितना पुराना है केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच का वो विवाद, जिस पर आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया है अहम फैसला
दिल्ली में आप सरकार बनने के बाद से विवाद शुरू

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली की आप सरकार और उपराज्यपाल के बीच चल रही अधिकारों की लड़ाई में आज सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि जमीन, पब्लिक ऑर्डर और जमीन के अधिकार को छोड़कर अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर के अधिकार दिल्ली के पास होंगे। सेवा के मामलों में उपराज्यपाल दिल्ली सरकार की सहायता और सलाह पर काम करने के लिए बाध्य होंगे। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि दिल्ली भले ही पूर्ण राज्य न हो लेकिन यहां की लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को यह अधिकार होना चाहिए कि वह जनता की इच्छा को लागू कर सके। अगर सारे अधिकार केंद्र अपने हाथों में ले लेगा तो इससे संविधान में दी गई संघीय प्रणाली की व्यवस्था प्रभावित होगी।

कहां से हुई विवाद की शुरूआत?

2014 में दिल्ली में आप की सरकार बनने के बाद से ही प्रशासनिक सेवाएं किसके हाथ में होगी इसको लेकर केंद्र और दिल्ली की सरकार के बीच विवाद चल रहा है। दोनों के बीच की यह लड़ाई सबसे पहले साल 2015 में दिल्ली हाईकोर्ट पहुंची थी। जिस सुनवाई करते हुए कोर्ट ने राज्यपाल के पक्ष में फैसला सुनाया था। जिसके बाद हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ 2016 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की। 2018 में 5 सदस्यों की संविधान पीठ ने इस सुनवाई करते हुए फैसला दिल्ली की आप सरकार के पक्ष में सुनाया। अपने फैसले में कोर्ट ने कहा, दिल्ली के सीएम ही राज्य के कार्यकारी प्रमुख हैं। उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना कोई निर्णय नहीं ले सकते। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद केंद्र सरकार ने 2021 में संसद के दोनों सदनों में एक बिल पेश किया। जो कि भारी हंगामे के बीच सदन से पारित होकर कानून बन गया था। यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम यानी जीएनसीटीडी एक्ट 1991 था जिसमें सरकार द्वारा संशोधन किया गया था। इस संशोधन के मुताबिक दिल्ली में उपराज्यपाल के पास राज्य से जुड़े सारे अधिकार होंगे। उनकी सलाह के बिना सरकार कोई भी फैसला नहीं ले सकती। इसके मुताबिक उपराज्यपाल को यह अतिरिक्त शक्ति दी गई थी कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को कोई भी निर्णय लेने से पहले उपराज्यपाल की अनुमति लेना आवश्यक होगा।

केंद्र के इस संशोधन कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने इस पर सुनवाई के लिए 5 जजों की संविधान पीठ बनाई और इस पर 5 दिन तक सुनवाई की और 18 जनवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसी पर कोर्ट ने आज चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की पीठ ने फैसला सुनाया।

अपने फैसले में आज संविधान पीठ ने इस मामले से जुड़े जस्टिस भूषण के उस फैसले से भी असहमति जताई जिसमें उन्होंने कहा था कि दिल्ली सरकार के पास ज्वाइंट सेक्रेटरी स्तर से ऊपर के अफसरों पर कोई अधिकार नहीं होगा। दरअसल, 2018 में कई मामलों पर फैसला देने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों पर नियंत्रण जैसे मामलों को आगे की सुनवाई के लिए छोड़ दिया गया था। जिस पर सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ जिसमें एके सिकरी प्रशांत भूषण भी शामिल थे ने सुनवाई की। सिकरी जहां दिल्ली सरकार को अधिकारियों पर नियंत्रण देने के पक्ष में थे वहीं भूषण ने उनसे अलग राय देते हुए कहा, दिल्ली केंद्र शासित राज्य है, ऐसे में केंद्र से भेजे गए अधिकारियों पर दिल्ली सरकार को नियंत्रण नहीं मिल सकता। दोनों जजों की राय अलग-अलग होने की वजह से तीन जजों की पीठ गठित करने के लिए मामले को चीफ जस्टिस के पास भेज दिया गया था। इस बीच केंद्र ने कोर्ट में दलील दी थी कि इस मामले को और बड़ी बेंच को भेजा जाए। जिसके बाद 5 जजों की बेंच का गठन किया गया। इन्हीं पांच जजों की पीठ ने आज यह अहम फैसला सुनाया है।

Created On :   11 May 2023 10:00 AM GMT

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