कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद भी सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी से दूर नहीं कर सकेंगे अशोक गहलोत, ये बनेंगी बड़ी वजह

Gehlot may be forced to give the CM chair to Pilot due to these reasons despite differences
कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद भी सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी से दूर नहीं कर सकेंगे अशोक गहलोत, ये बनेंगी बड़ी वजह
गहलोत बनाम पायलट कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद भी सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी से दूर नहीं कर सकेंगे अशोक गहलोत, ये बनेंगी बड़ी वजह

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव इस समय चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। शशि थरुर के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री मंत्री अशोक गहलोत भी पार्टी के सबसे बड़े पद के लिए दावेदारी पेश करने जा रहे हैं। शशि थरुर के मुकाबले उनके पार्टी अध्यक्ष बनने की संभावनाएं भी ज्यादा नजर आ रही हैं। गहलोत के दावेदारी पेश करने के ऐलान के बाद लोगों की दिलचस्पी पार्टी के अध्यक्ष पद से ज्यादा इस बात को लेकर है कि गहलोत के बाद राजस्थान में वो कौन होगा जो सीएम का पद संभालेगा?

सूत्रों के मुताबिक गहलोत पहले पार्टी अध्यक्ष के पद के साथ मुख्यमंत्री का पद भी अपने पास रखना चाहते थे लेकिन राहुल गांधी के दिये एक व्यक्ति एक पद के फार्मुला के बाद उन्होंने भी इस बात पर अपनी स्वीकृति दे दी। गहलोत अब इस पर राजी हो गए हैं कि अध्यक्ष के लिए चुने जाने पर वह मुख्यमंत्री का पद छोड़ देंगे। 

नहीं बनाना चाहते उत्तराधिकारी! 

पार्टी सूत्रों के अनुसार भले ही गहलोत राहुल गांधी के बताए फॉर्मु्ले को मानने पर राजी हो गए हैं लेकिन वह सीएम का पद सचिन पायलट को नहीं सौंपना चाहते। वह पायलट की जगह अपने गुट के नेताओं जिनमें विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी भी शामिल हैं को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं।  

गौरतलब है कि 2020 में सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ गहलोत के खिलाफ बगावत कर चुके हैं, इसी बात को लेकर गहलोत पायलट से नाराज रहते हैं। वह कई मौकों पर इसे लेकर अपनी नाराजगी भी जता चुके हैं। माना जा रहा है कि गहलोत पार्टी का प्रमुख बनने के बाद पायलट के सीएम बनने में भी रुकावट डाल सकते हैं। 

भले ही दोनों गुटों में से गहलोत गुट के मुकाबले पायलट गुट कमजोर नजर आता हो लेकिन कुछ कारणों पर गौर करें तो कमजोर होने के बाद भी पायलट को मुख्यमंत्री पद मिलने की संभावनाएं ज्यादा बढ़ जाती हैं। आइए जानते हैं उन कारणों को... 

राहुल-प्रियंका का साथ 

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि पार्टी का मुखिया बनने के बाद गहलोत का पार्टी में कद ऊंचा हो जाएगा। लेकिन यह बात भी सच है कि पार्टी  में गांधी का वर्चस्व ऐसा ही बना रहेगा। पार्टी के वरिष्ठ नेता भी इस बात को मानते हैं। गहलोत अगर सोनिया गांधी के भरोसेमंद हैं तो पायलट राहुल और प्रियंका के करीब हैं। ऐसे में वह पायलट को मुख्यमंत्री पद देने की वकालत कर सकते हैं। 

मिलेगा 2 साल के सब्र का फल 

बात साल 2020 की है जब सचिन पायलट ने अपने समर्थक विधायकों के साथ गहलोत सरकार से बगावत कर दी थी। वह गहलोत से मतभेदों के चलते राजस्थान से गुरुग्राम के होटल में चले गए थे। तब यह बातें होने लगीं थी कि पायलट अपने समर्थकों के साथ बीजेपी का दामन थाम लेंगे और मध्यप्रदेश के जैसे राजस्थान में भी कांग्रेस की सरकार गिर जाएगी। ऐसे में राहुल और प्रियंका ने सही समय पर एक्शन लेते हुए पायलट को मनाया साथ ही उन्हे सही वक्त का इंतजार करने को कहते हुए उनकी उस मेहनत का इनाम देने का वादा किया, जो मेहनत उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष का पद संभालते हुए पार्टी को सत्ता में वापसी कराने के लिए की थी। राहुल और प्रियंका अपने दो साल पहले वादे को निभाना चाहेंगे, ऐसे में गहलोत का पायलट को दरकिनार करना आसान नहीं होगा। 

 पार्टी में पड़ सकती है फूट

अगर गहलोत पायलट को दरकिनार करके अपने गुट के किसी नेता को अपना उत्तराधिकारी बनाते हैं तो राजस्थान कांग्रेस में फूट भी पड़ सकती है। इसका कारण पार्टी संगठन और सरकार में पायलट की अच्छी पकड़। उनके प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके एक इशारे पर कई मंत्री, विधायक और यहां तक की कार्यकर्ता भी बड़ा फैसला ले सकते हैं।  

 

Created On :   23 Sep 2022 1:46 PM GMT

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