शिवराज की 'फिक्र' और 'जिक्र': साल 2003 का वो चुनावी किस्सा जहां से बदली शिवराज सिंह चौहान की किस्मत, जानें बलि का बकरा बनाम बंटाधार की लड़ाई से कैसे उभरे शिवराज?

साल 2003 का वो चुनावी किस्सा जहां से बदली शिवराज सिंह चौहान की किस्मत, जानें बलि का बकरा बनाम बंटाधार की लड़ाई से कैसे उभरे शिवराज?
साल 2003 का वो चुनावी किस्सा जहां से बदली शिवराज सिंह चौहान की किस्मत

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्यप्रदेश की जनता के नाम विधानसभा चुनाव को लेकर एक चिट्ठी लिखी है। जिसमें उन्होंने विपक्षी दलों को भी करारा जवाब दिया है। उन्होंने चिट्ठी में शिवराज सिंह चौहान का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी अथक मेहनत से प्रदेश में बदलाव आया है। दरअसल, कांग्रेस के कई नेता लगातार बीजेपी द्वारा सीएम शिवराज को साइडलाइन करने की बात कह रहे हैं। लेकिन पीएम मोदी द्वारा लिखी गई चिट्ठी में इन सभी बयानों पर ताला लगा दिया गया है। बीजेपी के शीर्ष नेता भी इस बात को जानते हैं कि सीएम शिवराज के बिना मध्य प्रदेश का विधानसभा चुनाव जीतना आसान काम नहीं है। शिवराज सिंह चौहान कई बार खुद को साबित भी कर चुके हैं। खास बात यह है कि शिवराज कई बार बाउंस बैक कर चुके हैं। आइए जानते हैं साल 2003 का वो किस्सा जो आज भी प्रदेश की जनता के मन में बसी हुई है। जिसके चलते वे प्रदेश की सियासत में बीजेपी की ओर से एक बड़ा चेहरा बनकर उभरे।

मध्य प्रदेश की राजनीति में आज भले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बड़े कद के नेता हो। लेकिन उनको यह नाम दिलाने में बीजेपी के दिग्गज नेता और आरएसएस ने भी कड़ी मेहनत की है ऐसा कहना गलत नहीं होगा। साल 1990 में बुधनी से विधायक बने शिवराज सिंह चौहान का राजनीतिक करियर साल 2003 सबसे तेजी से रफ्तार पकड़ी। इस दौरान शिवराज सिंह चौहान कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह के खिलाफ राघौगढ़ से चुनाव मैदान में उतरे।

एमपी की सियासत में कैसे चमके शिवराज?

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति दीपक तिवारी अपनी किताब 'राजनीतिनामा मध्य प्रदेश (भाजपा युग)' में साल 2003 का एक किस्सा साझा करते हुए बताते हैं कि इस दौरान भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता लालकृष्ण अडवाणी राजधानी भोपाल आए थे। साल 2003 में पार्टी द्वारा एक यात्रा निकाली गई थी। इसके बाद साफ हो गया था कि पार्टी साल 2003 का विधानसभा चुनाव उमा भारती के नेतृत्व में लड़ने जा रही है। हालांकि, इस दौरान पार्टी के कई बड़े नेता शिवराज का भी कद बढ़ाने में लगे हुए थे।

ऐसा माना जाता है कि बीजेपी के कई कद्दावर नेताओं ने सोची समझी रणनीति के तहत शिवराज सिंह को कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के खिलाफ चुनावी मैदान में उतारा था। ताकि एमपी में शिवराज का कद बढ़ाया जाए। हालांकि, चुनाव में शिवराज को हार के साथ संतोष करना पड़ा, लेकिन इसके बाद उनका राजनीतिक करियर तेजी से पटरी पर दौड़ने लगा। शिवराज सिंह चौहान के लिए यह पहला ऐसा मौका था जब उन्हें 1990 के बाद किसी भी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था।

बीजेपी के दिग्गज नेता बने शिवराज का सहारा

किताब के मुताबिक, 2003 के विस चुनाव में कांग्रेस ने एक साथ अपने 220 प्रत्याशियों के नाम घोषित किए थे। जबकि, बीजेपी ने 139 नामों की लिस्ट निकाली। इस दौरान यहां के स्थानीय अखबारों में बीजेपी की ओर से शिवराज सिंह चौहान और उमा भारती बड़ा चेहरा उभर कर का सामने आए। प्रदेश की सियासत में इन दोनों नेताओं की चर्चा जोरों-शोरों से होने लगी थीं। कहा जाता है कि बीजेपी की कोशिश भारती के साथ चौहान को भी प्रदेश की सियासत में बड़े स्तंभ की तरह खड़ा करना था। इसी के चलते बीजेपी ने शिवराज को दिग्विजय सिंह के खिलाफ उतारा था।

उस वक्त कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के सामने बीजेपी की ओर चौहान एक छोटे कद के नेता माने जाते थे। ऐसे में जब पार्टी की ओर से टिकट मिलने के बाद चौहान पर्चा भरने पहुंचे तो इस दौरान पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली, कैलाश जोशी और उमा भारती भी मौजूद रहे। इसके बाद जब चुनावी तैयारियों ने जोर पकड़ा तो तो बीजेपी के कई बड़े नेताओं ने चौहान के मदद के लिए राघौगढ़ में भी अपना डेरा जमा लिया था। इनमें बिहार के सुशील कुमार मोदी और महाराष्ट्र से गोपीनाथ मुंडे शामिल थे। एक तरफ जहां बीजेपी को लीड कर रही उमा भारती कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को मिस्टर बंटाढार बताने में लगी हुई थी तो वहीं दिग्विजय सिंह भी शिवराज सिंह को बलि का बकरा बता रहे थे।

Created On :   20 Oct 2023 9:05 AM GMT

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