पांच साल के बच्चे की भक्ति देखकर धरती पर अवतरित हुए थे महाकाल, नए बन रहे महाकाल लोक के दर्शन से पहले जानिए महाकाल की अद्भुत कथाएं

Lets know the mystery of the origin of Kaal Ka Kaal Mahakal
पांच साल के बच्चे की भक्ति देखकर धरती पर अवतरित हुए थे महाकाल, नए बन रहे महाकाल लोक के दर्शन से पहले जानिए महाकाल की अद्भुत कथाएं
महाकाल लोक पांच साल के बच्चे की भक्ति देखकर धरती पर अवतरित हुए थे महाकाल, नए बन रहे महाकाल लोक के दर्शन से पहले जानिए महाकाल की अद्भुत कथाएं

डिजिटल डेस्क,भोपाल।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 अक्टूबर को महाकाल की धार्मिक नगरी उज्जैन आ रहे है। पीएम यहां पर 856 करोड़ रुपये की लागत से बने महाकाल कॉरिडोर का लोकार्पण करेंगे। वर्ष 2017 में इस महत्वाकांक्षी महाकाल कॉरिडोर परियोजना की नींव रखी गई थी। उज्जैन में बन रहे कॉरिडोर की लंबाई 900 मीटर से अधिक बताई जा रही है। 11 अक्टूबर का दिन उज्जैन ही नहीं देश और दुनिया में रहने वाले बाबा महाकाल के भक्तों के लिए ऐतिहासिक होने वाला है। परंतु क्या आप जानते है कि,बाबा महाकाल की उत्पत्ति कब और कैसे हुई थी ? अगर नहीं तो हम आपको बताएंगे बाबा महाकाल की उत्पति को लेकर पौराणिक कथाओं के बारे में....

800 से 1000 साल पुराना है मंदिर

कालों के काल कहे जाने वाले महाकाल की शक्ति से तो सम्पूर्ण विश्व परिचित है। उज्जैन के राजा बाबा महाकाल का मंदिर द्वापर युग में स्थापित हुआ था। बाबा महाकाल का मंदिर लगभग  800 से 1000 वर्ष पुराना माना जाता है। 

बालक की भक्ति से प्रसन्न हुए थे बाबा महाकाल 

बाबा महाकाल की उत्पत्ति के संबंध मे पौराणिक कथाओं के अनुसार , प्राचीन काल में उज्जैन पर राजा चंद्रसेन का शासन हुआ करता था । राजा चंद्रसेन भगवान शिव के परम भक्त थे । मणिभद्र नामक गण राजा, उज्जैन के शासक चंद्रसेन के मित्र थे । गण राजा मणिभद्र  के पास एक चिंतामणि थी। चिंतामणि को मणिभद्र ने उज्जैन के राजा चंद्रसेन को प्रदान कर दी थी । राजा चंद्रसेन ने मणि को अपने गले में धारण कर लिया,जिसके बाद राजा चंद्रसेन  के  कीर्ति और यश मे वृद्घि होने लगी। 

राजा की कीर्ति और यश को बढ़ते देखकर अन्य राजाओं ने मणि  प्राप्त करने के लिए उज्जैन के राजा  चंद्रसेन पर आक्रमण कर दिया। राजा चंद्रसेन ने आक्रमण से बचने के लिए भगवान शिव की शरण में जाकर ध्यानमग्न हो गए। जब राजा चंद्रसेन ध्यानमग्न थे , तब एक माता अपने बच्चे को लेकर  दर्शन को लेकर आई। शिवभक्ति मे ध्यानमग्न राजा से प्रेरित होकर  बालक अपने घर में एकांत स्थल में बैठकर पाषाण को शिवलिंग मान भक्तिभाव से भगवान शिव की भक्ति करने लगा और भक्ति में  लीन हो गया।  माता के बार-बार भोजन के लिए बुलाने पर भी बालक शिवभक्ति मे ही लीन रहता है और माता के पास नहीं जाता है। माता क्रोधित हो कर  बालक को पीट देती है और पूजन की सारी साम्रागी फेंक देती है। 

अपनी माता का क्रोध देख बालक जोर-जोर से रोने लगा और भगवान शिव  का नाम पुकारते हुए ही वह बेहोश हो गया। मात्र पांच वर्ष के बालक की श्रद्धा-भक्ति देख कर भगवान शिव प्रसन्न होते है और जब बालक को होश आया है , तब बालक देखता है कि, उसके सामने एक विशालकाय स्वर्ण और रत्नों से जणित मंदिर खड़ा था। जिसमें अत्यधिक प्रकाशवान ज्योतिर्लिंग स्थापित था। यह देख बालक बहुत खुश होता है और भगवान शिव की भक्ति में मगन हो जाता है। 

 यह सब देख कर माता को अपने किये पर दुःख होता है और अपनी गलती की क्षमा मांगते हुए बालक को गले से लगा लेती है । वही जब यह बात राजा चन्द्रसेन  को पता चलती है। तो वह भी उसी स्थान पर पहुंच कर बालक की भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और  भक्तिभाव देख बहुत प्रसन्न होते है। जैसे-जैसे यह बात लोगों को पता चली तो मंदिर के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ उमड़ आई जो आज तक बाबा महाकाल  के मंदिर मे बनी रहती है। 
 
महाकाल की उत्पत्ति द्वापर युग में हुई

पौराणिक कथाओं की मानें तो,वहां हनुमान जी भी प्रकट हुए थे और उन्होंने कहा था कि, जो फल ऋषि-मुनि अपनी तपस्या से प्राप्त नहीं कर पाते । वह फल एक नन्हें बालक की भक्ति से प्राप्त हुआ है। 

इसके बाद पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान जी  कहते है कि, इस नन्हें बालक की आठवीं पीढ़ी में नन्द नामक गोप का जन्म होगा । जिसके यहाँ भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण जन्म लेंगे और अधर्म और अत्याचार का नाश कर जगत का उद्धार करेंगे । इसी कारण बाबा महाकाल की उत्पत्ति के संबंध मे कहा जाता है कि , महाकाल की उत्पत्ति  द्वापर युग में नंद जी की आठ पीढ़ी पहले हुई थी ।

सूर्य की रश्मि(किरण) से हुई महाकाल की उत्पत्ति

बाबा महाकाल की उत्पत्ति के संबंध मे एक दूसरी कथा के अनुसार, जब सृष्टी का निर्माण हो गया था । तब  उस समय सूर्य की पहली बारह रश्मियां सृष्टी के जिस-जिस स्थान पर गिरी। वहां-वहां ज्योर्तिलिंगो का निर्माण हो गया । उज्जैन के बाबा महाकाल की उत्पत्ति भी सूर्य की  बारह रश्मियां मे से एक, सूर्य रश्मि (किरण) जो  उज्जैन पर गिरी थी । उससे ही  बाबा महाकाल की उत्पत्ति हुई है। सूर्य रश्मि के गिरने से उज्जैन की भूमि को उसर भूमि अर्थात् शमशान की भूमि भी कहा जाता है। इस कारण बाबा महाकाल की नगरी को तंत्र क्रियाओं की दृष्टि से बेहद खास ओर अत्यंत  महत्वपूर्ण माना जाता  है । 

अवंतिकावासियों के अनुरोध पर विराजमान हैं महाकाल

बाबा महाकाल की उत्पत्ति के संबंध मे शिवपुराण की कोटि-रुद्र संहिता के 16वें अध्याय में तृतीय ज्योतिर्लिंग बाबा महाकाल के संबंध मे सूतजी द्वारा महाकाल की उत्पत्ति के संबंध मे एक  कथा का वर्णन किया गया है ।

कथा के अनुसार , प्राचीन काल मे एक अवंतिका नामक एक रमणीय नगर था।  इसी नगर मे एक ज्ञानी ब्राह्मण रहते थे । जो वेदों के ज्ञाता होने के कारण उन्हें वेदप्रिय के नाम से जाना जाता था । वेदप्रिय एक ज्ञानी और कर्मकांडी ब्राह्मण था । उनके चार पुत्र थे । वेदप्रिय भगवान शिव के भक्त थे । वह प्रति दिन भगवान शंकर के पार्थिक शिवलिंग का निर्माण कर के उनकी आरधना करते थे । उन दिनों रत्नमाल पर्वत पर दूषण नामक एक राक्षस रहता था । उसने ब्राहाजी से वरदान प्राप्त कर समस्त मनुष्यो के धार्मिक कार्यो मे विघ्न डालने की कोशिश की । दूषण ने अवंतिकावासियो को धार्मिक कार्यो को न करने की बात कही परन्तु अवंतिकावासियो ने उसकी आज्ञा का उल्लंघन किया । जिससे क्रोधित होकर अवंतिकावासियो पर दूषण ने अपनी सेना के साथ आक्रमण किया । तब वेदप्रिय ने भगवान शंकर के पार्थिक शिवलिंग की शरण मे जा कर । समस्त अवंतिकावासियो की रक्षा के लिए प्रार्थना की । 


तब पार्थिव शिवलिंग काल के गर्भ अर्थात् पृथ्वी के गर्भ मे समा गया और वहीं पृथ्वी के गर्भ से महाकाल का उदय हुआ । जिनकी हुंकार मात्र से दूषण की  सेना का अंत हो गया । उसके बाद भगवान शिव ने अवंतिकावासियो को वरदान मांगने को कहा, अवंतिकावासियो के अनुरोध पर भगवान शिव सदा के लिए अवंतिका मे बाबा महाकाल के सुंदर स्वरुप मे  विराजमान हो गए।
 

Created On :   10 Oct 2022 12:43 PM GMT

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