खबर हटके: बीड के गांवों में शुरू हुआ दहेज मुक्ति का अभियान, दिलाई जा रही है शपथ

  • किसानों की आय बढ़ाने के साथ उन्हें दहेज त्यागने की दिलाई जा रही शपथ
  • ग्रामीण हिस्से में कर्ज और आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह है दहेज: मयंक गांधी
  • महिलाओं के सहयोग से शराब बंदी का कार्य भी शुरू

Tejinder Singh
Update: 2024-02-11 23:30 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई, दुष्यंत मिश्र। दहेज प्रथा आर्थिक रुप से कमजोर परिवारों के लिए अब भी बड़ी परेशानी की वजह है। महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में किसानों के बीच काम करते हुए समाजिक कार्यकर्ता मयंक गांधी ने महसूस किया कि जब तक लोगों को जागरूक कर कुप्रथाओं से दूर नहीं किया जाता आर्थिक सुधार संभव नहीं है। इसके बाद मयंक गांधी ने अब दहेज प्रथा के खिलाफ अभियान शुरू किया है और युवाओं को बिना दहेज के लेन-देन के शादी करने के लिए तैयार कर रहे हैं साथ ही पूरे गांव को शपथ दिलाई जा रही है कि वे न दहेज की मांग करेंगे और न ही देंगे। मयंक गांधी ने कहा कि मैंने किसानों को आर्थिक रुप से सक्षम बनाने के लिए बीड जिले को चुना, जहां सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या करते हैं। किसानों के बीच काम करते हुए मैंने महसूस किया कि जब तक समाज सुधार नहीं होंगे आर्थिक विकास बाल्टी में छेद जैसे साबित होंगे।

आर्थिक सुधारों के साथ सामाजिक सुधार

मैंने पाया कि दहेज प्रथा किसानों के कर्ज में डूबने और आत्महत्या करने का सबसे बड़ा कारण है, इसलिए मैंने आर्थिक विकास के साथ किसानों को सामाजिक सुधारों के लिए भी जागरूक करना शुरू किया है। इसके तहत सबसे पहले रुई गांव में खासकर महिलाओं के साथ मिलकर सबसे पहले शराब की दुकानें बंद कराई गईं, इसके बाद अब हम सबसे बड़े सामाजिक सुधार की ओर बढ़कर गांवों को दहेज मुक्त बनाने के प्रयास में जुट गए हैं। मयंक ने कहा कि बिना दहेज के शादी करने वाले जोड़ों को प्रोत्साहित करने के लिए हमने उन्हें तोहफे के तौर पर 15-15 हजार रुपए भी देने शुरू किए हैं।

तीन जोड़ों ने की बिना दहेज के शादी

मयंक के अभियान के बाद तीन जोड़ों ने बिना दहेज की शादी कर लोगों के सामने आदर्श भी पेश किया। दीपाली पवार-अनिल कानगुडे, अनीता लोकर-अनिल मोघे और रितुजा कानगुडे और अंगद यादव ने बिना दहेज के विवाह किया। अनिल मोघे और अनीता ने कहा कि इलाके में दहेज प्रथा एक बड़ी समस्या है। हमने बचपन से लेन-देन के जरिए ही शादियां तय होते देखी हैं, लेकिन हमें यह समझ में आ गया कि यह एक कुप्रथा है, जिसके चलते परिवारों को बेटियां बोझ जैसी लगने लगती हैं। इसीलिए हमने बिना दहेज के विवाह का फैसला लिया। अनिल कानगुडे ने कहा कि मुझे भी जो बातें बताई गईं उसने बहुत प्रभावित किया इसलिए मैंने भी बिना दहेज के शादी करने का फैसला किया। मुझे खुद पर भरोसा है कि मैं अपने बल पर अपनी आर्थिक स्थिति सुधार सकता हूं।

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