7 महीनों में लोकल ट्रेनों से गिरने से हुई 406 की मौत, दुर्घटनाओं में 871 घायल

7 महीनों में लोकल ट्रेनों से गिरने से हुई 406 की मौत, दुर्घटनाओं में 871 घायल

Tejinder Singh
Update: 2018-09-03 13:58 GMT
7 महीनों में लोकल ट्रेनों से गिरने से हुई 406 की मौत, दुर्घटनाओं में 871 घायल

डिजिटल डेस्क, मुंबई। इस साल के पहले सात महीनों में मुंबई की भीड़भरी ट्रेनों से गिरने के चलते 406 लोगों की जान चली गई, जबकि 871 लोग बुरी तरह जख्मी हो गए। जीआरपी के आंकड़ों से साफ है कि ट्रेनों में अतिरिक्त भीड़भाड़ के चलते रोजाना दो लोगों की जान जा रही है, जबकि चार लोग बुरी तरह जख्मी हो रहे हैं। पिछले साल जुलाई महीने तक भीड़ के चलते ट्रेन से गिरने से 360 यात्रियों की जान गई थी। जबकि पूरे साल में 654 लोगों ने जान गंवाई थी। आंकड़ों से साफ है कि भीड़ के चलते ट्रेन से गिरकर मरने वालों की संख्या बढ़ी है।

दुर्घटनाओं में 871 घायल
अध्ययन के बाद कुछ सुझाव दिए थे, लेकिन इस पर ठीक से अमल नहीं किया गया। एमआरवीसी की इकलौती मांग जिस पर थोड़ा बहुत अमल हुआ वह 12 और 15 डिब्बों की लोकल ट्रेनें चलाना है। इसके अलावा कैब सिग्नलिंग सिस्टम, कम्यूनिकेशन बेस्ड ट्रेन कंट्रोल (सीबीडीटी) जैसे सिस्टम लागू करने के सुझाव पर अमल नहीं हुआ। परेशानी और बढ़ रही है क्योंकि साल 2011 के रोजाना 65 लाख यात्रियों के मुकाबले यह संख्या बढ़कर अब अस्सी लाख यात्रियों तक पहुंच गई है।

2160 की जगह यात्रा करते हैं 5500 लोग
12 डिब्बों वाली ट्रेन की क्षमता 2160 यात्रियों की है, लेकिन अब इसमें साढ़े पांच हजार से ज्यादा यात्री सफर करते हैं। लोकल ट्रेनों की संख्या भी बढ़ाई गई, लेकिन इसका भी ज्यादा असर नजर नहीं आ रहा है। इसके अलावा अचानक गाड़ियां रद्द करने से भी यात्रियों की भीड़ बढ़ती है। यात्रियों को जानकारी दिए बिना रोजाना करीब 100 लोकल ट्रेनें रद्द कर दी जाती हैं, इससे दूसरी ट्रेनों में भीड़ बढ़ती है।

जानकारों के मुताबिक मौजूदा भीड़भाड़ रोकने के लिए मध्य और पश्चिम लाइनों पर 200-200 अतिरिक्त ट्रेनें चलाई जानी चाहिए। मुंबई की लोकल ट्रेनों को इस शहर की लाईफ लाईन कहा जाता है पर अत्यधिक भीड़ की वजह से यह डेथ लाईन बनती जा रही है।     

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