677 बालिकाओं ने छोड़ी पढ़ाई, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा सिर्फ दिखावा

677 बालिकाओं ने छोड़ी पढ़ाई, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा सिर्फ दिखावा

Bhaskar Hindi
Update: 2019-03-02 08:50 GMT
677 बालिकाओं ने छोड़ी पढ़ाई, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा सिर्फ दिखावा

डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा। मासूम कंधों पर परिवार का भरण पोषण या फिर छोटे भाई बहनों को लालन पालन का बोझ आ जाने से  677 बालिकाओं ने एक दो साल बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और इस तरह बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओं का नारा मात्र एक दिखावा बनकार रह गया है। सरकार के दावों की हकीकत हाल ही में सामने आए सरकारी आंकड़े बयां कर रहे हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से हुए सर्वे में 677 बालिकाएं ऐसी निकली हैं, जिन्होंने बीच सत्र में शाला जाना छोड़ दिया। यह आंकड़े उस समय सामने आए हैं, जब सरकार बालिकाओं की शिक्षा पर सबसे ज्यादा जोर देने का दावा कर रही है। वहीं आदिवासी अंचलों में बालिका शिक्षा पर सबसे ज्यादा खर्च करने की बात कर रही है।

किशोरी बालिका योजना के तहत पिछले दिनों महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा जिले की तमाम परियोजनाओं में सर्वे कराया गया था। जिसके बाद बनी सूची में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। शिक्षा से वंचित इन बेटियों को फिर से शिक्षा की पटरी पर लाने के लिए नेहरु युवा केंद्र का सहारा लिया जा रहा है। अधिकारियों के पास सर्वे की जो रिपोर्ट आई है। उनमें ज्यादातर बेटियां 6 से 14 साल की है। जबकि इन्ही बेटियों को शिक्षित करने के लिए सर्व  शिक्षा अभियान भी करोड़ों खर्च करने का दावा करता है।

शिक्षा की बदतर स्थिति आदिवासी अंचल की
सर्वे के बाद आए आंकड़ों में पढ़ाई छोड़ने वाली बालिकाओं में आदिवासी अंचल के नाम सबसे ज्यादा हैं। इनमें जुन्नारदेव विकासखंड सबसे आगे है। यहां की दो परियाजनाओं में 155 बालिकाओं ने पढ़ाई छोड़ी है। इसके बाद तामिया का नंबर आता है। जहां की परियोजना में 150 बेटियों ने स्कूल त्यागा है।

वजह क्या...
भाई-बहनों की देखभाल: अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल के कारण बेटियों ने स्कूल छोड़ दिया। जो बच्चे प्रशिक्षण ले रहे हैं। उनमें ज्यादातर प्रकरण ऐसे ही हैं।

खेतों में काम: बेटियों के पढ़ाई छोड़ने की एक वजह खेतों में काम भी है। अधिकांश बेटियों ने अपने परिवार के गुजर-बसर के लिए या तो मजदूरी शुरु कर दी या फिर अपने खेतों में काम करना शुरु कर दिया।

एनीमिया की बीमारी: आदिवासी अंचलों में सबसे ज्यादा एनिमिया की शिकायत बेटियों को होती है। खून की कमी के चलते ये बार- बार बीमार पड़ती है। जिसके कारण भी बेटियों ने स्कूल जाना पूरी तरह से छोड़ दिया था।

स्कूल दूूर होना: आदिवासी अंचलों में स्कूल का दूर होना भी बेटियों के पढ़ाई छोडऩे का सबसे बड़ा कारण है। लड़कियों को स्कूल दूर पहुंचाने की बजाय अभिभावकों ने पढ़ाई ही छुड़वा दी।

क्या कर रहे अधिकारी
- अफसरों की माने तो किशोरी बालिका योजना के पहले छह महीने बेटियों को आंगनबाडिय़ों में पढ़ाई करवाई जा रही है।
- बेटियों का पढ़ाई के प्रति मन लगे इसके लिए पहले नेहरु युवा केंद्र के माध्यम से जीवन कौशल का प्रशिक्षण भी बड़ी बालिकाओं को दिया जा रहा है।

 

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