अपने ही कर्मचारी के परिवार के प्रति ऐसी बेरहमी क्यों, पुलिसकर्मी की विधवा की अनुकंपा नियुक्ति आवेदन पर करें विचार
हाईकोर्ट ने पूछा अपने ही कर्मचारी के परिवार के प्रति ऐसी बेरहमी क्यों, पुलिसकर्मी की विधवा की अनुकंपा नियुक्ति आवेदन पर करें विचार
डिजिटल डेस्क, मुंबई। किसी भी प्रशासन को अपने ही कर्मचारी व उसके परिवार को लेकर बेरहम रुख अपनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को एक पुलिसकर्मी की विधवा पत्नी की अनुकंपा नियुक्ति को लेकर दिए गए आवेदन पर विचार करने का निर्देश देते हुए उपरोक्त बात कही। न्यायमूर्ति गौतम पटेल व न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की खंडपीठ ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद कहा कि महिला पिछले 14 सालों से नौकरी का इतंजार कर रही है लेकिन हर बार उसके लिए प्रशासन की ओर से दरवाजे बंद कर दिए गए। मामला 42 वर्षीय महिला फिरोदौस पटेल से जुड़ा है। जिसने अपने कांस्टेबल पति युनूस पटेल की साल 2008 में आग से जुड़ी दुर्घटना में मौत के बाद वर्ष 2009 में अनुकंपा नियुक्ति देने के लिए राज्य सरकार के पास आवेदन किया था। फिरदौस का आवेदन इसलिए खारिज कर दिया गया था क्योंकि युनुस के दो से अधिक बच्चे थे। याचिका के मुताबिक फिरदौस युनूस की दूसरी पत्नी है और उसके दो बच्चे हैं। जबकि युनूस की पहली पत्नी के तीन बच्चे हैं। पारिवारिक समझौते के तहत युनूस की पहली पत्नी युनूस के सेवानिवृत्ती के बाद मिले सारे पैसे लेगी जबकि फिरदौस अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन कर सकेगी।
इससे पहले हाईकोर्ट ने मैट के उस आदेश को खारिज कर दिया था जिसके तहत फिरदौस को अनुकंपा नियुक्ति के लिए अपात्र ठहरा दिया गया था। हाईकोर्ट ने फिरदौस के नौकरी वाले आवेदन पर विचार करने को कहा था। लेकिन सरकार ने फिरदौस के आवेदन पर विचार नहीं किया। जब यह मामला खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आया तो खंडपीठ ने कहा कि कोई भी प्रशासन अपने ही कर्मचारी व उसके परिवार को लेकर इतना हृदयविहीन रवैया कैसे अपना सकता। इस मामले में एक महिला 14 सालों से सिर्फ काम करने के लिए अवसर मांग रही है। फिर भी बिना किसी ठोस व पर्याप्त कारण के काम प्रदान करने को लेकर महिला के लिए दरवाजे बंद कर लिए गए। जबकि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य कर्मचारी के परिजन को वित्तीय संकट से उबारना होता है।