फसल कर्ज योजना फ्लॉप, किसानों में 495 करोड़ बंटा ही नहीं, बैंकों के अड़ियल रवैये से किसान परेशान

फसल कर्ज योजना फ्लॉप, किसानों में 495 करोड़ बंटा ही नहीं, बैंकों के अड़ियल रवैये से किसान परेशान

Anita Peddulwar
Update: 2019-06-05 10:07 GMT
फसल कर्ज योजना फ्लॉप, किसानों में 495 करोड़ बंटा ही नहीं, बैंकों के अड़ियल रवैये से किसान परेशान

डिजिटल डेस्क, चंद्रपुर। किसानों के हितों व कल्याण का दावा करने वाले जनप्रतिनिधियों की अनदेखी एवं राष्ट्रीयकृत बैंकों के अड़ियल रवैये के कारण बीते वर्ष 1036 करोड़ 26  लाख 80 हजार के फसल कर्ज लक्ष्य में से महज 540 करोड़ 86 लाख 53  हजार रुपए ही बांटे जा सकें। मतलब 495  करोड़ 40 लाख से अधिक की राशि किसानों को कर्ज के रूप में नहीं दी जा सकीं।

हैरत की बात है कि 58  फीसदी सफल नहीं हो पाने की स्थिति में सरकार ने मौजूदा वित्तीय वर्ष में 52.89 करोड़ का अतिरिक्त टारगेट जिले के बैंकों पर थोप दिया। इस वर्ष सभी बैंकों को 1089  करोड़ 15  लाख रुपए किसानों में फसल कर्ज के तौर पर वितरित करना हैं। खरीफ का सीजन शुरू हो चुका है और केवल 44340  किसानों में 23.54  प्रतिशत ही फसल कर्ज बंटा हैं। 

बीते वर्ष की विफलता से नहीं लिया सबक

बीते वर्ष 58  प्रतिशत लक्ष्य की पूर्ति नहीं कर पाने के बावजूद इस वर्ष फसल कर्ज वितरण योजना को गंभीरता से साकार करने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यही वजह है कि खरीफ के मौसम के लिए बंटाने वाले फसल कर्ज में 31  मई तक की समीक्षा रिपोर्ट में महज 23  प्रतिशत की प्रगति नजर आ रही है। यदि बैंकों का रवैया किसानों के फसल कर्ज के प्रति ऐसा ही रहा तो इस वर्ष भी लक्ष्य की पूर्ति के करीब पहुंच पाना मुश्किल है। उल्लेखनीय है कि राज्य के वित्तमंत्री का यह गृह जिला है। वित्तीय मामलों से जुड़ी उपेक्षा सरकार को कटघरे में ला रही है। 

सहकार विभाग के एक अधिकारी ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि राष्ट्रीय बैंकों की जटिल शर्तों के कारण किसानों को कर्ज नहीं मिल पाता। वसूली का नुकसान वे भोगना नहीं चाहते। इसलिए सहकारी बैंकों को अधिक टारगेट दिया जाता है। अग्रणी बैंक के जिला प्रबंधक शंभुनाथ झा से कारण जानने के लिए अनेक बार संपर्क किया गया, परंतु उन्होंने कॉल रिसिव नहीं किया।

अग्रणी बैंक और सहकार विभाग सवालों के घेरे में 
फसल कर्ज वितरण योजना का जायजा जिला अग्रणी बैंक व सहकार विभाग लेता है। योजना की विफलता को लेकर इन विभागों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं। जबकि खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है।

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