लॉकडाउन में चोरी-डकैती घटे पर बढ़ गए सायबर अपराध

लॉकडाउन में चोरी-डकैती घटे पर बढ़ गए सायबर अपराध

Tejinder Singh
Update: 2020-08-28 16:19 GMT
लॉकडाउन में चोरी-डकैती घटे पर बढ़ गए सायबर अपराध

डिजिटल डेस्क, मुंबई। लॉकलाउन के दौरान महानगर में चोरी, डकैती, बलात्कार, छेड़छाड़ जैसे मामलों में गिरावट का सिलसिला लगातार जारी है। लेकिन साइबर अपराध का ग्राफ लगातार ऊपर जा रहा है। जहां एक ओर साइबर अपराध के मामले बढ़े हैं वहीं इसके सुलझने की दर कम हुई है। मुंबई पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक इस साल 31 जुलाई तक साइबर अपराध के 1322 मामले दर्ज किए गए हैं जबकि पिछले साल के पहले सात महीनों में 1280 साइबर अपराध दर्ज किए गए थे। यही नहीं पिछड़े साल दर्ज अपराधों में से पुलिस 135 को सुलझाने में कामयाब रही थी जबकि इस साल 1322 में से सिर्फ 86 मामलों में पुलिस आरोपियों तक पहुंच पाई है। 

साथ ही आंकड़ों से यह भी खुलासा हुआ है कि सामान्य तौर पर प्रचलित डेबिट/क्रेडिट कार्ड ठगी, फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट बनाने, अश्लील संदेश भेजने जैसे अपराधों में कमी आई है लेकिन नए तरह के सायबर अपराध बढ़े हैं। आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल के पहले सात महीनों में डेबिट/क्रेडिट कार्ड की ठगी के 437 मामले दर्ज किए गए थे। लेकिन लॉकडाउन में इसमें कमी आई है और इस साल यह घटकर 290 रह गए हैं। इसकी प्रमुख वजह दुकाने और दूसरे प्रतिष्ठान बंद होने के चलते इनके इस्तेमाल में कमी को माना जा रहा है। इसके अलावा फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट बनाने, अश्लील और फर्जी तस्वीरे पोस्ट करने की शिकायतें भी पिछले साल के 51 के मुकाबले इस साल 16 रह गईं हैं। अश्लील संदेश भेजने के मामले भी 144 से घटकर 114 रह गए। लेकिन अन्य साइबर अपराध पिछले साल के 608 के मुकाबले इस साल बढ़कर 875 हो गए हैं।
ऐसे बढ़े साइबर अपराध बढ़े


साल                        2019            2020
कुल अपराध             1280            1322
डेबिटकार्ड ठगी          437              290
अश्लील संदेश          144              114
अन्य शिकायतें         608              875


प्रशांत माली, वकील व साइबर अपराध विशेषज्ञ के मुताबिक डेबिट/क्रेडिट कार्ड और दूसरे अपराध को लेकर पुलिस के आंकड़े भरोसे लायक नहीं हैं। दरअसल लॉकडाउन में साइबर ठगी के मामले बढ़े हैं लेकिन पुलिस ज्यादातर मामलों में एफआईआर ही नहीं दर्ज करती। अगर असली आंकड़े जाहिर करने हैं तो पुलिस को एफआईआर नहीं बल्कि लोगों की शिकायतों के आंकड़े जारी करने चाहिए।

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