अर्थशास्त्री एचएम देसरडा ने जलयुक्ति शिवार योजना पर उठाए सवाल

अर्थशास्त्री एचएम देसरडा ने जलयुक्ति शिवार योजना पर उठाए सवाल

Tejinder Singh
Update: 2019-02-21 15:33 GMT
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डिजिटल डेस्क, मुंबई। जानेमाने अर्थशास्त्री एचएम देसरडा ने भाजपा सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना जलयुक्त शिवार अभियान की आलोचना करते हुए कहा है कि यह जल संचय योजना नहीं बल्कि ठेकेदारों द्वारा सरकारी धन संचय योजना बन कर रह गई है। महाराष्ट्र राज्य योजना बोर्ड के पूर्व सदस्य देसरडा ने गुरुवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में पानी की समस्या सिर्फ मानसून की बेरुखी के चलते नहीं हुई है बल्कि इसके लिए सरकारी नीतियां और जल संरक्षण के लिए योजनाओं की कमी भी जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि जलयुक्त शिवार जल संचय की योजना नहीं है। बल्कि ठेकेदारों द्वारा चलाई जा रही धन संचय योजना है। देसरडा ने कहा कि यह योजना अवैज्ञानिक है। उन्होंने कहा कि जलयुक्त शिवार के लिए बड़ी-बड़ी मशीनों का इस्तेमाल विनाशका कारण बन रहा है। इससे नदी घाटों को नुकसान पहुंच रहा।

जलयुक्ति शिवार जल व धन संचय योजना हैः देसरडा

उन्होंने बताया कि बीते 9 फरवरी को औरंगाबाद में ग्रामीण महाराष्ट्र में पानी की किल्लत को लेकर आयोजित परिषद में पारित प्रस्ताव की प्रति मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भेजी गई है। देसरडा ने कहा कि सूखा प्रकृति के चक्र का एक हिस्सा है जबकि अकाल नीतियों की विफलता है। देसरडा ने आरोप लगाया कि सरकार मेहनतकश लोगों के प्रति असंवेदनशील है। उन्होंने कहा,"गन्ने की फसल को पेराई के लिए देने के बजाय, सरकार को इसे किसानों से खरीद कर चारे के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए। देसराडा ने कहा कि एनजीओ महाराष्ट्र राज्य सूखा शमन और अकाल उन्मूलन बोर्ड के उपाध्यक्ष के नाते मैंने अक्टूबर 2018 से फरवरी 2019 के बीच राज्य के 30 जिलों का दौरा किया और पाया कि ग्रामीण का महाराष्ट्र इलाका पेयजल की भारी कमी से जूझ रहा है। 

महाराष्ट्र के गावों में पेयजल की भारी किल्लत 

देसरडा ने कहा कि इसी समय 12 लाख हेक्टेयर में फैली गन्ने की फसल पेराई के लिए तैयार थी। एक हेक्टेयर गन्ने के लिए सालाना 3 करोड़ लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इतने पानी से प्रति वर्ष 1,000 लोगों की जरूरत पूरी की जा सकती है। 12 लाख हेक्टेयर के गन्ने के लिए आवश्यक पानी से 120 करोड़ लोगों की पेयजल जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि राज्य में 20 मिलियन ग्रामीण आबादी, विशेष रूप से गरीब किसान और भूमिहीन मजदूरों को फसल खराब होने के कारण रोजगार की आवश्यकता ह। इन लोगों को रोजगार गारंटी योजना (ईजीएस) के तहत काम दिया किया जाना चाहिए और अगर कोई रोजगार नहीं है, तो उन्हें प्रति दिन 500 रुपये की आजीविका की गारंटी दी जानी चाहिए। 
 

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