जान से खिलवाड़। छिंदवाड़ा में बिना सुरक्षा हो रहा पटाखों का निर्माण

जान से खिलवाड़। छिंदवाड़ा में बिना सुरक्षा हो रहा पटाखों का निर्माण

Bhaskar Hindi
Update: 2017-10-04 03:47 GMT
जान से खिलवाड़। छिंदवाड़ा में बिना सुरक्षा हो रहा पटाखों का निर्माण

डिजिटल डेस्क,छिंदवाड़ा। मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के पेटलावद में हुए ब्लास्ट को दो साल हो गए है, लेकिन वहां के लोगों के जख्म अभी भी भरे नहीं है। हादसे में करीब 80 लोगों की मौत हुई थी, लेकिन इस हादसे के बाद भी पटाखा फैक्ट्रियों ने सबक नहीं लिया है। ज्यादा पटाखा बनाने की होड़ में सुरक्षा मानकों और नियमों को ताक पर रखकर लोगों की जान से खिलवाड़ किया जा रहा है। जबकि नियम के मुताबिक पटाखा कारखानों में आग बुझाने के पर्याप्त इंतजाम होना चाहिए। छिंदवाड़ा के पाठाढाना स्थित पटाखा फैक्ट्री में नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। यहां आग बुझाने के लिए अग्निशमन यंत्र, रेत से भरी बाल्टियां एवं पानी से भरे ड्रम तो रखे हैं, लेकिन जितने बड़े पैमाने पर यहां पर पटाखों का निर्माण किया जा रहा है उसकी तुलना में ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। 

श्रमिकों के पास नहीं दस्तानें, मास्क
पटाखा निर्माण करने वाले श्रमिकों की सुरक्षा के लिए दस्ताने, मॉस्क, स्पेशल ड्रेस, विशेष चश्मों सहित अन्य व्यवस्थाएं होनी चाहिए। पटाखों में बारुद भरते समय एक भी श्रमिक के हाथों में दस्ताने नहीं थे। पटाखा निर्माण के दौरान पहनी जाने वाली विशेष ड्रेस भी किसी के पास नहीं थी। अधिकांश श्रमिक बिना मास्क के ही पटाखा निर्माण में जुटे थे। यहां पर पटाखा निर्माण करने वाले श्रमिकों में ज्यादा संख्या महिलाओं की है। इस संबंध में पाठाढाना स्थित पटाखा फैक्ट्री में उपस्थित रवि राजपूत का कहना है कि यहां सुरक्षा के पर्याप्त साधन मौजूद है। सभी कार्य नियमानुसार किए जा रहे है।

कैंसर की भी आशंका
पटाखा निर्माण के दौरान सुरक्षा की अनदेखी भारी पड़ सकती है। जिला चिकित्सालय के आरएमओ डॉ. सुशील दुबे ने बताया कि हाथों में लगा बारुद व केमिकल जाने से मुंह में छाले, सांस नली एवं भोजन नली में छाले हो सकते हैं। पेस्ट्रिक अल्सर की संभावना भी रहती है। सांस के जरिए बारुद शरीर में जाने पर फेफड़े में इन्फेक्शन की समस्या आ सकती है। पटाका निर्माण में कुछ केमिकल ऐसे प्रयुक्त होते हैं जो चोट लगने पर खून में मिल जाएं तो ब्रेन व धमनियों पर प्रभाव डालते हैं। लंबे समय तक चमड़ी में लगे रहने पर कैंसर की भी संभावना रहती है। आंखों में एलर्जी एवं केमिकल कंजेक्टिवाइटिस होने की संभावना भी रहती है।

हादसों से सबक नहीं
दो साल पहले झाबुआ के पेटलावद में एक दर्दनाक हादसा हुआ था। जब सुरक्षा उपकरणों के अभाव में पटाखा गोदाम में विस्फोट हो गया था। इश हादसे में करीब 80 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं करीब 4 साल पहले पातालेश्वर क्षेत्र में पटाखा फैक्ट्री में हुए विस्फोट में पूरा भवन धाराशाई हो गया था। इस घटना में कई लोग घायल हुए थे। 10 साल पहले पाठाढाना क्षेत्र में पटाखा फैक्ट्री में भीषण हादसा हुआ था। इन हादसों के बाद भी पटाखों के निर्माण एवं बिक्री के दौरान सुरक्षा के पर्याप्त इंतजामों में लापरवाही बरती जा रही है।

नए लाइसेंस व नवीनीकरण के लिए आवेदन
SDM राजेश शाही का कहना है कि पटाखा फैक्ट्री एवं दुकानों में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम होना चाहिए। श्रमिकों को आवश्यक सुरक्षा संसाधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए। पटाखा कारखानों का निरीक्षण कराएंगे। पटाखा बिक्री के लिए सुरक्षा के मापदंड पूरे करने वालों के लाइसेंस का ही नवीनीकरण किया जाएगा। बता दें पटाखा बिक्री के लिए SDM कार्यालय से प्रतिवर्ष औसतन 90 लाइसेंस का नवीनीकरण किया जाता है। नवीनीकरण के साथ ही नए लाइसेंस के लिए भी आवेदन पहुंच रहे हैं। अब तक नए लाइसेंस के लिए 6 आवेदन पहुंचे हैं। 

इन नियमों का पालन जरूरी
पटाखा फैक्ट्रियों के लिए नियमस्थल पर प्राथमिक उपचार, फस्र्ट एड बॉक्स होना चाहिए।
फैक्ट्री या दुकान में गैस सिलेंडर, अगरबत्ती सहित ज्वलनशील पदार्थ पर पाबंदी होनी चाहिए।
पटाखा फैक्ट्री में मजदूरों के लिए दस्ताने, स्पेशल ड्रेस, मास्क सहित सुरक्षा के उपकरण होने चाहिए।
पटाखा फैक्ट्री एवं दुकानों में आग बुझाने के लिए अग्निशमन यंत्र, रेत से भरी बाल्टियां एवं पानी की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए।
पटाखा फैक्ट्री, निर्माता, दुकानदार के पास लाइसेंस होना अनिवार्य है। इसके साथ ही संबंधित थाना पुलिस, श्रम विभाग आदि की एनओसी होना चाहिए। 

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