हाईकोर्ट : सोनई तिहरे हत्याकांड में पांच की फांसी बरकरार, एक बरी 

हाईकोर्ट : सोनई तिहरे हत्याकांड में पांच की फांसी बरकरार, एक बरी 

Tejinder Singh
Update: 2019-12-02 13:16 GMT
हाईकोर्ट : सोनई तिहरे हत्याकांड में पांच की फांसी बरकरार, एक बरी 

डिजिटल डेस्क, मुंबई। अहमदनगर जिले के नेवासा तहसील के सोनई गांव में साल 2013 के बहुचर्चित तिहरे हत्याकांड के मामले में दोषी पाए गए 6 में से पांच आरोपियों कि फांसी की सजा को बरकार रखा है जबकि एक आरोपी को सबूत के अभाव में बरी कर दिया है। न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति संदीप शिंदे की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है। इस मामले में उच्च वर्ग की लड़कियों के साथ प्रेम करने के चलते तीन युवाओं सचिन घारु, संदीप धनवार व राहुल कंगरे की लड़कियों के रिश्तेदारों ने निर्मम तरीके से हत्या कर दी थी। ऑनर किलिंग से जुड़े इस मामले में पुलिस ने सात लोगों को आरोपी बनाया था। नाशिक सत्र न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई करते हुए सात में से 6 आरोपियों को दोषी ठहराया था। पहले यह मामला नेवासा कोर्ट में चला था लेकिन इस इलाके में गवाहों पर किसी प्रकार का दबाव न पड़े इसलिए मामले को नाशिक कोर्ट में स्थानांतरित किया गया था। इस मामले में कुल 53 गवाहों की गवाही हुई थी। िनचली अदालत में विशेष सरकारी वकील उज्जवल निकम ने अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी की थी। इसके बाद कोर्ट ने 6 आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी। इस सजा के खिलाफ आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील की थी जबकि राज्य सरकार ने आरोपियों की सजा की पुष्टी की लिए अपील की थी। पिछले दिनों हाईकोर्ट ने मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। जिसे सोमवार को न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी की खंडपीठ ने सुनाया। जिसके तहत मामले में दोषी पाए गए पोपट दरंदले, प्रकाश दरंदले, गणेश दरंदले, अशोक नवगिरे व संदीप कुरहे को सुनाई गई फांसी की सजा को कायम रखा जबकि एक आरोपी अशोक नवगिरेची को सबूत के अभाव में बरी कर दिया। 

भीमा-कोरेगांव हिंसा प्रकरण में नवलखा को अंतरिम रहात 6 दिसंबर तक बरकरार

बांबे हाईकोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी गौतम नवलखा को गिरफ्तारी से दी गई अतंरिम राहत को 6 दिसंबर तक के लिए बरकरार रखा है। सोमवार को नवलखा का जमानत आवेदन न्यायमूर्ति पीडी नाईक के सामने सुनवाई के लिए आया। इस दौरान नवलखा की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता युग चौधरी ने कहा कि उन्हें  मामले को लेकर सरकारी वकील की ओर से दायर किए गए हलफनामे की प्रति कुछ समय पहले ही  मिली है। जिसके अध्ययन के लिए उन्हें समय दिया जाए। इस दौरान सरकारी वकील ने नवलखा को अंतरिम राहत देने का विरोध किया। लेकिन मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने मामले की सुनवाई 6 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी और तब तक अंतरिम राहत को बरकरार रखा। नवलखा के अलावा न्यायमूर्ति के सामने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी आनंद तेलतुंबडे के जमानत आवेदन पर भी सुनवाई चल रही है। 

दो से अधिक बच्चों के चलते पद गवाने वाले सरपंच को राहत

बांबे हाईकोर्ट ने दो से अधिक बच्चे होने के चलते अपात्र ठहराए गए एक सरपंच को राहत प्रदान की है। सरपंच के रुप में निर्वाचित संदीप उंबरे को तीन बच्चे होने की शिकायत मिलने के आधार पर पुणे विभाग के अतिरिक्त आयुक्त ने 27 मार्च 2019 को अपात्र ठहरा दिया था। पुणे विभाग के अतिरिक्त आयुक्त के इस आदेश के खिलाफ उंबरे ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उमरे को 17 अक्टूबर 2017 को मावल तहसील में स्थित कुनीनामा ग्राम का सरपंच चुना गया था। न्यायमूर्ति उज्जल भुयान के सामने मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता एसपी कदम ने कहा कि मेरे मुवक्किल अपने पत्नी के साथ पुणे से यात्रा कर रहे थे। इस दौरान उनकी गर्भवती साली भी उनके साथ थी। सफर के दौरान हुई तकलीफ के चलते साली को खोपोली इलाके में स्थित अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस दौरान अस्पताल में मेरी पत्नी का नाम उसकी बहन  यानी मेरी साली के संरक्षक के रुप में लिख लिया गया। अस्पताल ने जब बच्ची के नाम का जन्म प्रमाणपत्र जारी किया तो गलती से उसमे बच्ची के माता-पिता के नाम कि जगह मेरा व मेरी पत्नी का नाम लिख दिया। इसके बाद मेरे मुवक्किल ने जन्म प्रमाण पत्र से जुड़े रिकार्ड में सुधार के लिए  स्थानीय मैजिस्ट्रेट कोर्ट में आवेदन किया। लेकिन कोर्ट ने खोपोली नगपरिषद के पास अपनी बात रखने को कहा। अब खोपोली नगर परिषद ने जन्म प्रमाणपत्र में बच्ची के सही माता-पिता के नाम का उल्लेख कर दिया है। इसलिए मेरे मुवक्किल को अपात्र ठहरानेवाले आदेश को रद्द कर दिया जाए। इन दलीलों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि न्यायहित में इस मामले का दोबारा परीक्षण करने की जरुरत महसूस हो रही है। क्योंकि इस प्रकरण में जो नई बात हुई है (खोपोली नगरपरिषद की ओर से जारी किया गया प्रमाणपत्र) उसके बारे में पुणे विभाग के अतिरिक्त आयुक्त को जानकारी नहीं थी। इसलिए वे दोबारा इस मामले को सुने और आदेश जारी करे। तब तक याचिकाकर्ता सरपंच बने रहेंगे। यह निर्देश देते हुए न्यायमूर्ति ने याचिका को समाप्त कर दिया। 

Tags:    

Similar News