हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा - क्या पोस्टमार्टम प्रक्रिया की वीडियो ग्राफी कराती है सरकार   

हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा - क्या पोस्टमार्टम प्रक्रिया की वीडियो ग्राफी कराती है सरकार   

Tejinder Singh
Update: 2019-03-13 15:08 GMT
हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा - क्या पोस्टमार्टम प्रक्रिया की वीडियो ग्राफी कराती है सरकार   

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा है कि पोस्टमार्टम करने वाली जगहों पर कौन सी सुविधाएं प्रदान की जाती है। शवों का संरक्षण कैसे किया जाता है। क्या पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी की जाती है और इससे जुड़े रिकार्ड को कैसे रखा जाता है? मुख्य न्यायाधीश नरेश पाटील व न्यायमूर्ति एनएम जामदार की खंडपीठ ने सरकार को इस संबंध में दो सप्ताह के भीतर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। खंडपीठ ने यह निर्देश पेशे से वकील आदिल खतरी की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। याचिका में दावा किया गया है कि मनपा व सरकारी अस्पतालों में सफाई कर्मचारी से पोस्टमार्टम कराया जाता है। महिला के शव का पोस्टमार्टम भी पुरुष डाक्टर व सफाई कर्मचारी करते हुए पाए गए हैं। इसलिए अदालत निर्देश दे की महिला के शव का पोस्ट मार्टम योग्य महिला डाक्टर की मौजूदगी मे ही किया जाए। इसके साथ ही सरकार को पर्याप्त संख्या में फोरेंसिक विशेषज्ञों की नियुक्ति करने का भी निर्देश जारी किया जाए। अस्तपतालों में डिजिटल अटोप्सी की भी व्यवस्था करने की दिशा में कदम बढाने के लिए कहा जाए जो पोस्टमार्टम की आधुनिक व्यवस्था है।

शवों के पोस्टमार्टम में भारी लापरवाही

बुधवार को याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता शहजाद नकवी ने खंडपीठ के सामने कहा कि मनपा व सरकारी अस्पतालों में शवों के पोस्टमार्टम में बड़े पैमाने पर लापरवाही बरती जाती है। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी में इस बात का खुलासा हुआ है। बगैर फोरेंसिक विशेषज्ञ के पोस्टमार्टम किया जाता है। ऐसी व्यवस्था की जाए कि शवो का पोस्टमार्टम गरिमा के साथ किया जाए और इसे योग्य डाक्टर ही करें। सरकारी वकील पूणिमा कंथारिया ने कहा कि उन्हें इस मामले में जवाब देने के लिए थोड़ा समय दिया जाए। वैसे पोस्टमार्टम को लेकर सरकारी अस्पतालों में सारी सतर्कता बरती जाती है। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई दो सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दी। 
 याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने राज्य सरकार व मुंबई मनपा को नोटिस जारी किया और मामले की सुनवाई चार सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दी। 
 

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