अस्थमा से पीड़ित छात्रा को हाईकोर्ट ने दी राहत, एडमिशन ट्रांसफर करने के दिए निर्देश
अस्थमा से पीड़ित छात्रा को हाईकोर्ट ने दी राहत, एडमिशन ट्रांसफर करने के दिए निर्देश
डिजिटल डेस्क,मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने एलर्जिक अस्थमा से पीड़ित एमबीबीएस की एक छात्रा को राहत प्रदान की है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के मेडिकल शिक्षा महानिदेशालय को निर्देश दिया है कि छात्रा के एडमिशन ट्रांसफर करने के आवेदन को मंजूरी प्रदान करे।
इन कालेजों में मांगा था एडमिशन
छात्रा ने अपनी बीमारी के आधार पर मेडिकल शिक्षा महानिदेशालय से आग्रह किया था कि उसे एमबीबीएस के द्वितीय वर्ष में मुंबई व ठाणे के सरकारी अथवा महानगरपालिका के मेडिकल कालेज में दाखिला दिया जाए। छात्रा ने अपने आग्रह पत्र के साथ ठाणे के राजीव गांधी मेडिकल कालेज साथ ही महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी आफ हेल्थ साइंस की अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनअोसी) भी लगाई थी। इसके साथ ही छात्रा ने मेडिकल बोर्ड की वह रिपोर्ट भी जोड़ी थी जिसके तहत छात्रा को पढाई के लिए अपनी जगह बदलने का सुझाव दिया गया था।
छात्रा ने दावा किया था कि एडमिशन के लिए उसके पास दोनों कालेज की एनओसी है। एक जिसमें वह पढती है और दूसरी जिसमें वह दाखिला लेना चाहती है। मामला पंक्ति पंचोली नामक छात्रा से जुड़ा हुआ है। जिसने साल 2016 में मिरज के मेडिकल कालेज में एमबीबीएस के प्रवेश लिया था। 2017 में उसने अपनी पहले साल परीक्षा को पास कर लिया। इसके बाद उसने अपनी बीमारी के आधार पर अपना एडमिशन दूसरे कालेज में ट्रांसफर करने के लिए मेडिकल शिक्षा महानिदेशालय के पास आवेदन किया लेकिन वहां से राहत न मिलने के बाद छात्रा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
सीट रिक्त होने की भी दी जानकारी
जस्टिस भूषण गवई व जस्टिस भारती डागरे की बेंच के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कहा कि जिस कालेज में छात्रा सीट रिक्ट होने की बात कह रही है वहां से एक छात्रा छोड़कर दूसरे कालेज में गया है। इसलिए वह जगह खाली हुई है। इसे क्लियर वैकेंसी नहीं माना जा सकता है। किंतु बेंच ने सरकारी वकील की दलील को अस्वीकार कर दिया। बेंच ने कहा कि छात्रा मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया के नियमों के तहत दूसरे कालेज में ट्रांसफर के लिए पात्र है। उसके पास दाखिले के लिए जरुरी सारी एनओसी है। यदि छात्रा को ठाणे के राजीव गांधी मेडिकल कालेज में प्रवेश दिया जाता है तो किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं होता है। यह कहते हुए जस्टिस ने छात्रा को राहत प्रदान की और उसके प्रवेश को मंजूरी प्रदान करने का निर्देश दिया।