शिक्षक के बयान के आधार पर हाईकोर्ट ने रेप के आरोपी की सजा को बरकरार रखने से किया इंकार

शिक्षक के बयान के आधार पर हाईकोर्ट ने रेप के आरोपी की सजा को बरकरार रखने से किया इंकार

Tejinder Singh
Update: 2021-03-08 14:47 GMT
शिक्षक के बयान के आधार पर हाईकोर्ट ने रेप के आरोपी की सजा को बरकरार रखने से किया इंकार

डिजिटल डेस्क, मुंबई। पीड़िता के नाबालिग होने को लेकर शिक्षक की गवाही के आधार पर बांबे हाईकोर्ट ने बलात्कार के मामले में दोषी पाए गए एक आरोपी की सजा को बरकरार रखने से इंकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में पीड़िता की उम्र को जानने के लिए वैज्ञानिक जांच (आसिफिकेशन टेस्ट) तक नहीं कराई है। हमारे सामने पीडिता की सही उम्र को लेकर कोई पुष्ट प्रमाण नहीं पेश किया गया है ऐसे में महज स्कूल की शिक्षक द्वारा बताई गई जन्मतारीख के आधार पर पीड़िता को नाबालिग नहीं माना जा सकता है। और इसके आधार पर आरोपी की सजा को कायम नहीं रखा जा सकता है। अभियोजन पक्ष आरोपी पर लगे आरोपों को संदेह से परे जाकर साबित करने में विफल रहा है। इसलिए आरोपी को मामले से बरी किया जाता है।

न्यायमूर्ति एसके शिंदे ने यह फैसला सुनाते हुए दुष्कर्म के आरोपी को दोषी ठहराने के निचली अदालते के आदेश को रद्द कर दिया और और आरोपी को इस मामले से बरी कर दिया है। 20 फरवरी 1998 को निचली अदालत ने आरोपी को इस मामले में तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी। निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील की थी। 

न्यायमूर्ति ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद पाया कि आरोपी व पीड़िता के बीच प्रेम संबंध थे। दोनों ने सहमति से संबंध बनाए थे। इसके बाद पीड़िता का गर्भपात भी काराया गया था।चूंकी जब आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था, तो पीड़िता की उम्र 16 साल बताई गई थी। इस लिहाज से कानूनी रुप से नाबालिग थी। इसलिए उसकी सहमति का कोई महत्व नहीं था। इसलिए आरोपी को गिरफ्तार किया गया था। अभियोजन पक्ष ने पीड़िता की उम्र को लेकर उसकी स्कूल की मुख्याअध्यापिका द्वारा दिया गया लिविंग सर्टिफिकेट पेश किया। जिसके तहत पीडिता की उम्र 13 से 14 साल के बीच थी। 

जन्मतारीख की अस्पष्टता को देखते हुए आरोपी की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि स्कूल रजिस्ट्रर में दर्ज की गई जन्मतारीख के आधार पर पीड़िता की उम्र को सही नहीं माना जा सकता है। क्योंकि जिसने स्कूल रजिस्ट्रर में जन्मतारीख दर्ज कराई थी। उसका बयान नहीं लिया गया है। ऐसे में स्कूल के शिक्षक का बयान आरोपी की सजा को कायम रखने के लिए पर्याप्त नहीं है। इन दलीलों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि हमारे समाने ऐसा कोई सबूत नहीं जो यह दर्शाता हो कि जब आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था, तो पीड़िता की उम्र 16 साल थी। इसके अलावा पीडिता की उम्र को लेकर शिक्षक की ओर से दी गई गवाही का कानून के नजर में कोई महत्व नहीं है। इसलिए पीड़िता की उम्र के सबूत केअभाव में आरोपी को मामले से बरी किया जाता है और मामले को लेकर निचली अदालत के आदेश को रद्द किया जाता है। 


               

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