को-ऑपरेटिव बैंक खाताधारकों के भुगतान को लेकर हाईकोर्ट सख्त, कहा हस्तक्षेप करे सरकार  

को-ऑपरेटिव बैंक खाताधारकों के भुगतान को लेकर हाईकोर्ट सख्त, कहा हस्तक्षेप करे सरकार  

Anita Peddulwar
Update: 2019-08-05 12:27 GMT
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डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने जलगांव सहित राज्य के अन्य इलाकों के को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी द्वारा खाता धारकों के पैसों का भुगतान न किए जाने के मामले में सहकारिता विभाग के सचिव को हस्तक्षेप करने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने कहा है विभाग के सचिव सभी को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी से यह जानकारी मंगाए की उन्होंने अपने कर्जदारों से कर्ज वसूली को लेकर क्या कदम उठाए हैं। अदालत ने सचिव को सोसाइटी से हर 6 माह में इस संबंध में रिपोर्ट भेजने को कहा है और रिपोर्ट पर गौर करने के बाद वे पैसे की वसूली को लेकर एक समय सीमा तय करें। मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नंदराजोग व न्यायमूर्ति एन एम जामदार की खंडपीठ ने महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के जलगांव जिला अध्यक्ष की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद यह निर्देश दिया।

याचिका में दावा किया गया था कि अकेले जलगांव स्थित को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी में 2 लाख 74 हजार 468 लोगों ने 613.22 करोड़ रुपये जमा किए हैं। इसमें से एक लाख दो हजार लोगों को 103 करोड़ रुपये वापस किए गए हैं। पैसों की वसूली को लेकर लोगों ने उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत अलग-अलग मंचों  पर पांच हजार शिकायतें दायर की है। उपभोक्ता फोरम से आदेश मिलने के बावजूद को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटियों ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। याचिका में साफ किया गया था कि चूंकि सोसाइटी की ओर से कर्ज देते समय जमानत के तौर पर कोई ठोस चीज नहीं रखी जाती है इसलिए अब सोसायटी पैसे देने में असमर्थता जाहिर कर रही है। साल 2013 में दायर इस याचिका में मांग की गई है कि को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी के खाता धारकों के हितो को सुरक्षित करने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं। इसके साथ ही मामले को लेकर जलगांव के जिलाधिकारी को दिए गए निवेदन पर उचित निर्णय लेने के लिए कहा जाए।  वहीं सुनवाई के दौरान सरकारी वकील की ओर से दिए गए  हलफनामे में साफ किया गया कि सहकारिता विभाग ने इस मामले का संज्ञान लिया है।

ऑडिटरों की लापरवाही के चलते को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी की गड़बड़ी सामने आयी है। काफी हद तक पैसों की वसूली की गई है। कई लोगों के खिलाफ आपराधिक मामला भी दर्ज किए गए हैं।  याचिका में उल्लेखित तथ्यों व सरकार की ओर से दिए गए हलफनामे पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप का दायरा सीमित होता है। इसलिए हम सहकारिता विभाग के सचिव को इस मामले में निर्देश देते हैं कि वे हर 6 माह में  को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी से रिपोर्ट मंगाए और सोसाइटी की ओर से कर्ज वसूली को उठाए गए कदमों की जानकारी लेकर पैसे की वसूली को लेकर उचित समय सीमा तय करे। यह कहते हुए खंडपीठ ने याचिका को समाप्त कर दिया।
 

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