संरक्षित करने के बजाए 5 स्टार होटल बनाने कैसे दे दिया छतरपुर के महाराजा का महल?

संरक्षित करने के बजाए 5 स्टार होटल बनाने कैसे दे दिया छतरपुर के महाराजा का महल?

Bhaskar Hindi
Update: 2020-01-24 08:36 GMT
संरक्षित करने के बजाए 5 स्टार होटल बनाने कैसे दे दिया छतरपुर के महाराजा का महल?

जनहित याचिका पर नोटिस जारी कर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा
डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
छतरपुर के महाराज स्व. भवानी सिंह के महल राजगढ़ पैलेस को संरक्षित करने के बजाए उसे फाइव स्टार होटल में तब्दील किए जाने को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। एक जनहित याचिका में दावा किया गया है कि ऐसा होने पर आम जनता का वहां प्रवेश पूरी तरह से वर्जित हो जाएगा और आने वाली पीढिय़ां महल देखने से वंचित हो जाएंगी। चीफ जस्टिस अजय कुमार मित्तल और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने मामले को संजीदगी से लेते हुए राज्य सरकार से संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने कहा है। मामले पर अगली सुनवाई 19 फरवरी को होगी।
यह जनहित याचिका छतरपुर के पत्रकार दुर्गेश खरे की ओर से दायर की गई है। आवेदक का कहना है कि वहां के महाराज स्व. भवानी सिंह के सैकड़ों वर्ष
पुराने महल राजगढ़ पैलेस को राज्य सरकार ने 20 नवम्बर 1978 को संरक्षित स्मारक घोषित करते हुए एक अधिसूचना जारी की थी। याचिका में आरोप है कि 11 सितंबर 1995 को राज्य सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने 20 नवम्बर 1978 को जारी अधिसूचना वापस लेते हुए घोषित किया कि राजगढ़ पैलेस अब संरक्षित स्मारक नहीं रहेगा। 11 सितंबर 1995 को ही राजगढ़ पैलस पर्यटन विभाग को ट्रांसफर कर दी गई। एक साल के भीतर 2 सितंबर 1996 को 5 करोड़ रुपए के प्रीमियम के एवज में राजगढ़ पैलेस को ओबेराय ग्रुप को लीज पर दे दिया गया। आवेदक का कहना है कि लीज निष्पादित होने के कई वर्षों बाद महल जस की तस स्थिति में था और आम जनता राजगढ़ पैलेस को देखने जाती रही। आरोप है कि ओबेराय ग्रुप के राजगढ़ पैलेस होटल एण्ड रिसार्ट प्राईवेट लिमिटेड को फायदा पहुंचाने यह कार्रवाई की गई। कुछ माह पहले पैलेस के कमरों में निर्माण कार्य शुरु होने पर याचिकाकर्ता ने पूरी जानकारी जुटाने के बाद
यह जनहित याचिका दायर की, ताकि राजगढ़ पैलेस को संरक्षित स्मारक घोषित करके उसे आने वाली पीढिय़ों के लिए सुरक्षित रखा जा सके। मामले पर गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अमित सेठ ने पक्ष रखा। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 1997 में दिए गए एक फैसले के मद्देनजर युगलपीठ ने याचिका में अनावेदक बनाए गए सरकार के मुख्य सचिव, पुरातत्व विभाग के आयुक्त, पर्यटन विभाग के प्रमुख सचिव और संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिए।
 

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