तथ्य छिपाकर ली थी राहत, हाईकोर्ट ने अपने ही आदेश को किया स्थगित

तथ्य छिपाकर ली थी राहत, हाईकोर्ट ने अपने ही आदेश को किया स्थगित

Bhaskar Hindi
Update: 2019-02-28 08:25 GMT
तथ्य छिपाकर ली थी राहत, हाईकोर्ट ने अपने ही आदेश को किया स्थगित

डिजिटल डेस्क, जबलपुर। हाईकोर्ट ने तथ्य छिपाकर राहत लेने के मामले में अवमानना याचिका में दिए गए अपने ही आदेश को स्थगित कर दिया है। जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की एकल पीठ ने पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के बाद यह आदेश जारी किया है। एकल पीठ ने अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया है।

ये है मामला
को-आपरेटिव बैंक खरगौन के प्रबंधक एचएल रघुवंशी की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका में कहा गया कि खरगौन सोसायटी के मैनेजर राधेश्याम व्यास को अनियमितता के आरोप में वर्ष 2017 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। राधेश्याम व्यास ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि उसकी सुरक्षा निधि का भुगतान नहीं किया गया। इस संबंध में उसके अभ्यावेदन का निराकरण किया जाए। इस आदेश के आधार पर उसने सोसायटी में अपनी दोबारा बहाली करा ली। इसके बाद राधेश्याम व्यास ने अवमानना याचिका दायर कर कहा कि उसे सोसायटी में चार्ज नहीं दिलाया जा रहा है।

अवमानना याचिका का निराकरण करते हुए एकल पीठ ने आदेशित किया कि याचिकाकर्ता को 7 दिन में चार्ज दिलाया जाए, नहीं तो सक्षम अधिकारियों को कोर्ट में हाजिर होना पड़ेगा। पुनर्विचार याचिका में अधिवक्ता विजय शंकर पांडेय और अमन पांडेय ने तर्क दिया कि राधेश्याम व्यास के खिलाफ 90 लाख रुपए गबन के प्रकरण चल रहे हैं। अनावेदक ने न्यायालय को यह तथ्य नहीं बताया। तथ्य छिपाकर अनावेदक ने न्यायालय से राहत ली है। सुनवाई के बाद एकल पीठ ने अवमानना याचिका में दिए गए अपने ही आदेश को स्थगित कर दिया। एकल पीठ ने अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया है।

ड्राइवर को बहाल करो, गलत जानकारी देने वाले अधिकारी की जांच हो
हाईकोर्ट ने महिला एवं बाल विकास विभाग नरसिंहपुर से नौकरी से निकाले गए ड्राइवर को बहाल करने का आदेश दिया है। जस्टिस संजय द्विवेदी की एकल पीठ ने मुख्य सचिव को निर्देशित किया है कि गलत जानकारी देने वाले जिला कार्यक्रम अधिकारी के खिलाफ जांच कर कार्रवाई की जाए।

नरसिंहपुर निवासी मोहन कुम्हार की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि वह महिला एवं बाल विकास विभाग नरसिंहपुर में वर्ष 2006 से ड्राइवर के पद पर कार्यरत था। उसे वर्ष 2011 में बिना किसी आदेश से नौकरी से निकाल दिया गया। इसके खिलाफ उसने लेबर कोर्ट में प्रकरण दायर किया। लेबर कोर्ट ने 17 दिसंबर 2014 को उसे बहाल करने का आदेश दिया। लेबर कोर्ट के आदेश के बाद भी उसे बहाल नहीं किया गया। इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई। हाईकोर्ट ने पहले याचिका और बाद में अपील भी निरस्त कर दी। विभाग ने 9 जून 2018 को आदेश निकाला कि ड्राइवर का पद समाप्त कर चौकीदार का पद सृजित किया गया है।

याचिकाकर्ता को 14 जून 2018 को चौकीदार के पद पर ज्वाइन कराया गया। पांच दिन बाद उसे फिर से नौकरी से निकाल दिया गया। अधिवक्ता विकास महावर ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट के आदेश से बचने के लिए पहले याचिकाकर्ता को चौकीदार के पद पर ज्वाइन कराया, फिर से उसे नौकरी से निकाल दिया गया। इस मामले में जिला कार्यक्रम अधिकारी की ओर से पेश किए गए जवाब में कहा गया कि याचिकाकर्ता समय पर ड्यूटी नहीं आता था, इसलिए उसे नौकरी से निकाला गया। दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद पाया गया कि याचिकाकर्ता ने अपनी ड्यूटी पूरी की थी। सुनवाई के बाद एकल पीठ ने ड्राइवर को बहाल करने के साथ जिला कार्यक्रम अधिकारी के खिलाफ जांच करने का आदेश दिया है।

 

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