अब तो बढ़े विकास की रफ्तार, महाकौशल को अपने कमलनाथ से आस

अब तो बढ़े विकास की रफ्तार, महाकौशल को अपने कमलनाथ से आस

Bhaskar Hindi
Update: 2018-12-18 10:54 GMT
अब तो बढ़े विकास की रफ्तार, महाकौशल को अपने कमलनाथ से आस

अजीत सिंह, जबलपुर। कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने से मध्यप्रदेश में यदि सर्वाधिक किसी क्षेत्र के लोग खुश हैं तो वे हैं महाकौशल और उससे जुड़े विंध्य के लोग। अतिरिक्त खुशी की वजह है कमलनाथ का महाकौशल से जुड़ा होना। इसके पहले डीपी मिश्र ही ऐसे मुख्यमंत्री थे जो महाकौशल के जबलपुर के रहने वाले थे। लंबी प्रतीक्षा के बाद महाकौशल को एक ऐसे शख्स की रहनुमाई मिली है जो उसका अपना है। दरअसलए यहां के लोगों में यह उम्मीद जगी है कि अब इस अंचल में भी इंदौर और भोपाल की तरह विकास की गंगा बहेगी।

मध्यप्रदेश जब बना था तो महाकौशल का केंद्र जबलुपर प्रदेश के किसी भी शहर से किसी भी मामले में उन्नीस नहीं था भले ही वह शहर इंदौर और भोपाल ही क्यों न हों। पर दिनों दिन दूसरे शहर जहां तेजी से आगे बढ़ते रहे वहीं उपेक्षा के दंश से महाकौशल विकास के राजमार्ग पर सरपट दौड़ने के बजाय पथरीली पगडंडियों पर भटकता रहा।

खैर15 वर्षों बाद कमनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की नई सरकार ने सत्ता संभाल ली है। जिस तरह से उन्होंने कार्यभार संभालते ही किसानों की कर्जमाफी के आदेश पर दस्तखत किया है वह इस बात का प्रमाण है कि वे अपने पूर्ववर्तियों की तरह नहीं बल्कि कार्पोरेट के तेज तर्रार सीईओ की मानिंद त्वरित गति से कार्य करेंगे। दरअसल कमलनाथ की विकास की परिकल्पना और उनकी सोच उनके संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा में साफ.साफ दिखाई देती है। छिन्दवाड़ा क्षेत्र जबलपुर और नागपुर के बीच अपनी अलग पहचान बना चुका है। यहां की चमचमाती सड़कें तमाम छोटी.बड़ी औद्योगिक इकाइयां कमलनाथ के विजन की गवाही देती हैं।

माडल लागू करेंगे ताकि बेरोजगारी से निजात मिल सके। महाकौशल.विंध्य का पिछड़ापन जगजाहिर है। इस क्षेत्र के मुख्य केंद्र जबलपुर को लें तो कम से कम आधा दर्जन घोषणाओं के बावजूद यहां 15 सालों में एक फ्लाइओवर न बन पाना इस क्षेत्र के धीमी गति से होने वाले विकास को निरूपित करता है। इसी तरह यहां के बदहाल औद्योगिक क्षेत्रए स्थानांतरित होते महत्वपूर्ण सरकारी महकमों के कार्यालय कर्ज के बोझ तले दबे गरीबी और बदहाली से कराहते किसान अब तक न बन पाईं सड़कें मध्य प्रदेश में इस क्षेत्र की उपेक्षा की दास्तां बयां करते हैं। सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि जबलपुर से राज्य की राजधानी तक की सड़क आज तक नहीं बन पाई है, जो भाजपा शासन की सैकड़ों घोषणाओं की हकीकत को जानने के लिए काफी है। जीवन दायिनी नर्मदा अवैध रेत उत्खनन से कराह रही है। कई जगह तो उसमें गंदे नाले मिल रहे हैं। कहीं.कहीं तो उथलेपन के कारण उसका अस्तित्व ही संकट में नजर आने लगा है।

पिछली सरकार ने यहां इन्वेस्टर्स मीट तो किया पर निवेश नहीं आया। घोषणाएं भी खूब हुई। उदाहरण के लिए उर्वरक कारखाना हो या फिर ब्रह्मोस मिसाइल का केंद्र अथवा चुटका परमाणु बिजलीघर सभी के अमल पर संघर्ष को ही महत्व नहीं मिला है। जबलपुर जो कि अंग्रेज़ों के जमाने से प्रतिरक्षा संस्थानों के लिए विश्व में जाना जाता रहा है वहां आज पान ठेलों और रेहड़ी वालों की बढ़ती संख्या और उनके इर्द गिर्द बेरोजगारों की भीड़ ये बताती है कि युवा शक्ति के लिए भी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है।

मां नर्मदा की गोद में बसा महाकौशल हो या विंध्य दोनों क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है। यहां विकास की असीम संभावनाएं हैं। बस जरूरत है तो विजन और दृढ़ इच्छाशक्ति की। पूरी उम्मीद है कि नई सरकार के मुखिया के रूप में कमलनाथ उसे पूरा करेंगे।

 

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