ट्रेन में नीचे बैठकर दिल्ली पहुंचे, लेकिन टिकट लेकर लौटे और विधायक भी बने

ट्रेन में नीचे बैठकर दिल्ली पहुंचे, लेकिन टिकट लेकर लौटे और विधायक भी बने

Bhaskar Hindi
Update: 2019-10-08 12:00 GMT
ट्रेन में नीचे बैठकर दिल्ली पहुंचे, लेकिन टिकट लेकर लौटे और विधायक भी बने

डिजिटल डेस्क, चंद्रपुर। विधानसभा चुनाव को लेकर सियासत तेज है, लेकिन जिले के इतिहास में एक दिलचस्प वाक्या आज भी याद किया जाता है। दौर था वर्ष 1985 का। कांग्रेस में कद्दावर नेता नरेश पुगलिया दो टर्म से विधायक थे। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री शांताराम पोटदुखे के साथ अनबन के बीच चंद्रपुर विधानसभा क्षेत्र की टिकट पाने के लिए कांग्रेस में अनेक दिग्गजों ने दावे किए, परंतु किसान पुत्र और एक सामान्य युवा श्याम वानखेड़े जब तिरुपति देवस्थान से चंद्रपुर रेलवे स्टेशन पर लौटे तो उन्हें ख्याल आया कि दिल्ली में टिकट पाने के लिए शहर के नामी नेता ट्रेन से निकल पड़े हैं। ऐसे में घर लौटे बिना ही वे ट्रेन में चढ़ गए। जैसे-तैसे ट्रेन का टिकट तो पा लिया, किंतु बर्थ कंफर्म नहीं था। ऐसे में वे रसूखदार और अपने ही प्रतिद्वंद्वी दावेदारों के पास जाकर बैठ गए। शाम ढल गई। उन्होंने एक अखबार फर्श पर बिछाया और नीचे ही सो गए। उनके प्रतिद्वंद्वियों ने इस बात के लिए उनकी खिल्ली भी उड़ाई। बाद में सभी दिल्ली पहुंचे। वहां काफी रस्साकशी के बाद श्याम वानखेड़े टिकट पाने में सफल रहे।

जश्न में डूबे विधायक को झटका 

दिल्ली में टिकट पाने की जद्दोजहद में जुटे नेताओं के बीच चंद्रपुर के विधायक नरेश पुगलिया को किसी नेता ने टिकट देने का आश्वासन दिया था। वे लौटे और चंद्रपुर में विशाल रैली निकालकर अपने चुनाव प्रचार का बिगुल भी फूंक दिया, लेकिन अचानक दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में घटे उलटफेर में श्याम वानखेड़े जैसे साधारण कार्यकर्ता को टिकट मिल गई और एक ही दिन में वे हीरो बन गए। जब वे लौटे तो उन्होंने अपने 10-12 सहयोगियों के साथ ही प्रचार शुरू कर दिया। उस समय उनकी माली हालत बेहद खस्ता थी।

श्याम वानखेड़े के पास उस समय साइकिल तक नहीं थी। रसूखदार नेताओं के डर से प्रत्याशी वानखेड़े का प्रचार करने से भी कार्यकर्ता डर रहे थे। फिर भी वे अपने चंद साथियों के साथ पैदल ही प्रचार यात्रा पर निकल जाते। हर बस्ती में उनके परिचित थे। अमूमन हर बुजुर्ग के पैर पड़कर वे आशीर्वाद लेते रहे। इस बीच लोगों ने उन्हें चुनावी चंदा दिया। जहां थककर उनका काफिला बैठ जाता, वहां लोग कच्चा चिवड़ा और चाय की दावत दे दिया करते थे। पूरा प्रचार उन्होंने पैदल ही किया। मतदान के समय तक उनके पैरों में छाले पड़ चुके थे। उनके इस जुनून को देखकर विरोधी दल और कांग्रेस के गुटों में काम करनेवाले नेता भी हैरान-परेशान हो गए।


9 विभागों के मंत्री थे, फिर भी पैदल भ्रमण

श्याम वानखेड़े जब वर्ष 1990 में कांग्रेस के टिकट पर दोबारा चुनाव लड़े, तो उन्होंने नगराध्यक्ष रहे बड़े आसामी गया नारायण त्रिवेदी को हरा दिया। वानखेड़े जीतकर मुंबई पहुंचे तो उन्हें 9 विभागों के मंत्री पदों का जिम्मा सौंपा गया। मुंबई से जब वे मंत्री बनकर चंद्रपुर लौटे तो पडोली से शहर के वरोरा-नाका रेस्ट हाउस तक लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। मंत्री रहते समय सुरक्षा घेरे के बीच वानखेड़े अचानक खिसक जाते और पैदल चलकर वे कभी सरकारी अस्पताल तो कभी किसी परिचित के घर पहुंच जाते। अपने दोस्तों के साथ पानठेले पर घंटों बैठकर राजनीतिक चर्चा करते। तीसरा चुनाव हारने के बाद वे बीमार पड़ गए और उनका देहांत हो गया।

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