सरकार के गले की हड्डी बनी 25 लाख टन तुअर दाल, दुकानों पर बेची जाएगी 55 रुपए किलो

सरकार के गले की हड्डी बनी 25 लाख टन तुअर दाल, दुकानों पर बेची जाएगी 55 रुपए किलो

Bhaskar Hindi
Update: 2018-01-02 12:33 GMT
सरकार के गले की हड्डी बनी 25 लाख टन तुअर दाल, दुकानों पर बेची जाएगी 55 रुपए किलो

डिजिटल डेस्क, मुंबई। पिछले साल तुअर (अरहर) के भारी उत्पादन के बाद सरकार द्वारा खरीदी गई 25 लाख क्विंटल दाल अब सरकार के गले की हड्डी बन गई है। सरकारी राशन दुकानों पर 55 रुपए किलो तुअर बेचने के फैसले के बाद भी गोदाम खाली होते नहीं दिखाई दे रहे हैं। इसलिए अब सरकार मॉल व निजी दुकानों पर भी यह दाल बेचना चाहती है। इसके लिए तीन मंत्रियों की समिति बनाई गई है। 

                              

सरकार ने बड़े पैमाने पर तुअर की खरीदी  

तुअर उत्पादक किसानों को राहत देने के लिए सरकार ने बड़े पैमाने पर तुअर की खरीद की थी। इस वजह से गादामों में 25 लाख क्विंटल तुअर दाल का स्टाक पड़ा है। सरकारी राशन की दुकानों पर 55 रुपए किलों की दर से तुअर दाल बेचने का फैसला पहले ही लिया जा चुका है। खाद्य व आपूर्ति विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि सरकारी राशन की दुकानों पर तुअर दाल उपलब्ध कराने से भारी स्टाक की खपत धीमी गति से होगी। इससे गोदाम खाली करने में समय लगेगा। इस लिए अब मॉल, शांपिग काम्प्लेक्स सहित अन्य निजी दुकानों पर इसे बेचने की योजना बनाई गई है। इस बाबत अंतिम फैसला लेने के लिए राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री गिरीष बापट और सहकारिता एंव विपणन मंत्री सुभाष देशमुख को शामिल कर एक समिति बनाई गई है। 


                               

कभी आसमान पर पहुंची थी कीमतें

इसके पहले 2015-16 में राज्य में तुअर दाल की किल्लत पैदा हो गई है। इससे दाल की किमत प्रति किलो 150 रुपए तक पहुंची थी। उस वक्त दाल की मंहगाई का मामला सुर्खियों में था। फिर से ऐसी स्थिति पैदा न हो इसके लिए सरकार ने किसानों को अधिक से अधिक तुअर की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया। फलस्वरुप 2015-16 में 15.3 लाख हेक्टेयर में तुअर की खेती की गई और इससे उत्पादन 11.7 लाख मैट्रीक टन तक पहुंच गया। अब तुअर की नई फसल आने वाली है जबकि गोदाम अभी भी तुअर से भरे पड़े हैं। इसलिए सरकार पर दबाव है कि वह जल्द से जल्द स्टाक की हुई तुअर दाल को बेचे। खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारी ने बताया कि सरकारी राशन की दुकानों पर तुअर दाल बेचने की योजना को ज्यादा प्रतिसाद नहीं मिला है। इस लिए इसे खपाने के लिए अब निजी दुकानों का सहारा है।

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