मराठा आरक्षण पर हाईकोर्ट का सरकार से सवाल, भीमा-कोरेगांव मामले में भारद्वाज की जमानत पर फैसला सुरक्षित

मराठा आरक्षण पर हाईकोर्ट का सरकार से सवाल, भीमा-कोरेगांव मामले में भारद्वाज की जमानत पर फैसला सुरक्षित

Tejinder Singh
Update: 2019-02-28 14:37 GMT
मराठा आरक्षण पर हाईकोर्ट का सरकार से सवाल, भीमा-कोरेगांव मामले में भारद्वाज की जमानत पर फैसला सुरक्षित

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि मराठा समुदाय को आखिर किस चीज ने हाल के कुछ वर्षों में आरक्षण के लिए आंदोलन व सक्रियता दिखाने के लिए प्रेरित किया है? अतीत में मराठा समुदाय ने आरक्षण के लिए क्यों आदोंलन नहीं किया? गुरुवार को न्यायमूर्ति आरवी मोरे  व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ ने मराठा समुदाय को शिक्षा व नौकरी में दिए गए 16 प्रतिशत आरक्षण के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह सवाल किया। खंडपीठ ने कहा कि जब मंडल आयोग ने 1980 में अपनी रिपोर्ट सौपी थी तब भी मराठा समुदाय की ओर से आरक्षण को लेकर सक्रियता नहीं दिखाई गई। आखिर हाल के समय में एेसा क्या अचानक बदलाव हुआ कि राज्य सरकार ने मराठा समुदाय की स्थिति को लेकर आकड़े इकट्ठे करने शुरु कर दिए? इसके अलावा जब 1980 में मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी थी तो उस वक्त मराठा समुदाय ने आरक्षण के लिए कोई आंदोलन व हिंसा नहीं किया था। आखिर अभी कुछ सालों में ही क्यों मराठा समुदाय ने आरक्षण के लिए आंदोलन शुरु किया है? खंडपीठ के इस सवाल पर राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता वीए थोरात ने कहा कि मराठा समुदाय ने अब खुद को उपेक्षित महसूस किया है। मराठा समुदाय ने इससे पहले जिनको वोट दिया, उनकी सरकारों ने इस समुदाय को इस मुगालते में रखा था कि वे ऊंचे व अगड़ी जाति के लोग हैं। पर कुछ समय बाद जैसे-जैसे समय बीता मराठा समुदाय ने महसूस किया कि वे पिछड़े हैं और उन्हें सरंक्षण की जरुरत है। थोरात ने दावा किया कि अब हम अतीत की गलतियों को सुधार रहे हैं। उन्होंने कहा कि सामाजिक व शैक्षणिक रुप से पिछड़े वर्ग को लेकर 1980 में सौपी गई मंडल आयोग की रिपोर्ट सिर्फ दो दशक तक ही वैध थी। इसलिए सरकार ने साल 2014 में मराठा समुदाय के पिछड़ेपन को लेकर आकड़े इकट्ठा करने शुरु किए थे। इसलिए पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया। उन्होंने कहा की यदि महसूस हुआ तो सरकार दूसरे पिछड़े समुदाय को भी आरक्षण देने पर विचार करेगी। संविधान के अनुच्छेद 212 के तहत न्यायपालिक का सरकार के ऐसे मामलों में दखल अनपेक्षित है। 

भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में सुधा भारद्वाज की जमानत पर फैसला सुरक्षित

वहीं बांबे हाईकोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज की ओर से दायर जमानत आवेदन पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। इससे पहले पुणे कोर्ट ने भारद्वाज को जमानत देने से इंकार कर दिया था। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ भारद्वाज ने हाईकोर्ट में अपील की है। न्यायमूर्ति नितिन सांब्रे के सामने भारद्वाज के जमानत आवेदन पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने दावा किया कि अभी भी भीमा-कोरेगांव मामले की जांच जारी है। हम जल्द ही मामले को लेकर पूरक आरोपपत्र दायर करेंगे। हमारे पास भारद्वाज के खिलाफ काफी सबूत है जो भीमा-कोरेगांव मामले में उनकी संलिप्तता हो दर्शाते हैं। वहीं भारद्वाज की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता युग चौधरी ने दावा किया कि पुलिस ने मेरे मुवक्किल के खिलाफ चार पत्र पेश किए है जिन्हें सबूत नहीं माना जा सकता है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने फैसले को सुरक्षित कर लिया।  

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