दुष्कर्म पीड़ित नाबालिग को नहीं मिली 27 सप्ताह गर्भपात की अनुमति

दुष्कर्म पीड़ित नाबालिग को नहीं मिली 27 सप्ताह गर्भपात की अनुमति

Anita Peddulwar
Update: 2019-09-07 13:39 GMT
दुष्कर्म पीड़ित नाबालिग को नहीं मिली 27 सप्ताह गर्भपात की अनुमति

डिजिटल डेस्क,मुंबई। स्वस्थ भ्रूण के गर्भपात की इजाजत न तो वास्तविक रुप से संभव है और न ही कानून इसकी इजाजत देता है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह बात कहते हुए  उस 15 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता को 27 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति देने से इंकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़िता व उसके घर वाले यदि बच्चे को अपने पास रखने की स्थिति में नहीं हो तो वे उसे किसी गैर सरकारी दत्तक केंद्र को सौप सकते हैं।  नियमाननुसार 20 सप्ताह से अधिक के भ्रूण का गर्भपात अदालत की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता है। लिहाजा दुष्कर्म पीड़ित नाबालिग ने अपनी मां के मार्फत गर्भपात की अनुमति दिए जाने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि यदि नाबालिग बच्चे को जन्म देती है तो उसे गहरा मानसिक आघात लगेगा। पीड़िता ने दावा किया था कि शर्मिंदगी के चलते उसने गर्भवती होने की बात अपने घरवालों को देर से बताई थी। 

याचिका पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति अकिल कुरेशी व न्यायमूर्ति एसजे काथावाला की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने जेजे अस्पताल के मेडिकल बोर्ड को पीड़िता की जांच करने को कहा था। बोर्ड ने अपने रिपोर्ट में साफ किया था कि भ्रूण में कोई विसंगति नहीं है। इसके अलावा भ्रूण का आकार काफी बड़ा हो गया इसलिए वह जीवित स्वरुप मां के गर्भ से बाहर आएगा। इसके अलावा सिर्फ सर्जरी के माध्यम से बच्चे को जीवित निकाला जा सकता है। लेकिन ऐसी स्थिति में बच्चा प्रिमेच्योर पैदा होगा और उसे नियोनेटल केयर (कांच के बक्से) में रखना पड़ेगा। इस रिपोर्ट पर गौर करने व कोर्ट में मौजूद डाक्टर की बात सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों के चलते नाबालिग को इस स्थिति का सामना करना पड़ रहा हो लेकिन मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3 इस स्थिति में गर्भपात की इजाजत नहीं देती। खंडपीठ ने कहा कि न तो वास्तिवक रुप से ऐसा संभव है और न ही कानून ऐसी स्थिति में गर्भपात की इजाजत देता है। इसलिए गर्भपात की मांग को अस्वीकार किया जाता है लेकिन पीड़िता बच्चे के जन्म के बाद यदि उसे नहीं रखना चाहती है तो वह उसे मुंबई की गैर सरकारी संस्था आशा सदन को सौपने के लिए स्वतंत्र है। 
 

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