फूलों से महकी जिंदगी : आधा एकड़ में सालाना साढ़े तीन लाख की कमाई - मॉडर्न खेती

फूलों से महकी जिंदगी : आधा एकड़ में सालाना साढ़े तीन लाख की कमाई - मॉडर्न खेती

Bhaskar Hindi
Update: 2019-08-23 12:35 GMT
फूलों से महकी जिंदगी : आधा एकड़ में सालाना साढ़े तीन लाख की कमाई - मॉडर्न खेती

डिजिटल डेस्क,छिंदवाड़ा/पांढुर्ना। हाईटेक होती दुनिया में रहने खुद को हाईटेक होना जरूरी है । पांढुर्ना के रहने वाले युवा धीरज दुलीचंद घागरे ने भी हाईटेक होती दुनिया में अपनी पुश्तैनी खेती के ट्रेंड में बदलाव लाया है। उनका कहना है कि मौसम और जलवायु में हो रहे बदलाव के बीच मॉडर्न खेती का विकल्प बेहतर अवसर प्रदान कर रहा है। धीरज अपने पुश्तैनी खेत में सीजनेबल फसलें बोने के बजाय टॉप सिकरेट प्रजाति के डच रोज(गुलाब) की खेती कर रहे है। यह डच रोज यानि गुलाब के फूल पूरे खेत को महकाने के साथ धीरज के बेहतर भविष्य को भी महका रहे है।वे इस खेती से सालाना दस लाख रूपये अर्जित कर रहे हैं । बैंक का ब्याज तथा खुद के खर्चे काटन के बाद उनकी सालाना आय साढ़े तीन लाख से भी ज्यादा है ।

अपने पुश्तैनी खेत में सीजनेबल फसल की खेती करने के बजाय गुलाब के फूलों की खेती के लिए कदम बढ़ाने पर पहले तो परिवारवाले और परिचित थोड़ा हिचकिचाए, पर धीरज ने अपनी लगन, मेहनत और मार्गदर्शन लेकर खुद को साबित कर दिखाया। धीरज ने राजना स्थित अपने खेत में करीब आधे एकड़ में बने पॉलीहाउस में गुलाब के फूलों की खेती की एक छोटी-सी शुरुआत की और डच रोज उत्पादन का कारोबार खड़ा कर लिया है। फूलों की खेती शुरू करने से पहले धीरज ने आधुनिक कृषि तकनीकों को खूब अच्छे से समझा और वैज्ञानिक तकनीकों को अपनी खेती में लागू करके बेहद कम समय में बड़ी उपलब्धि हासिल करने का माध्यम बनाया।

आधे एकड़ में बचेंगे 12 से 15 लाख रूपए

डच रोज की खेती कर रहे धीरज ने बताया कि आधा एकड़ में डच रोज लगाने के लिए पॉलीहाउस की निर्माण लागत लगभग 17 लाख रूपए लगती है। इसमें 12500 पौधे लगते है। जिसकी पहले साल लागत लगभग दो लाख रूपए आती है। पांच साल तक के रखरखाव में लगभग 3.50 लाख रूपए का खर्च आएगा। पांच सालों तक यह कलम चलेगी। हर साल लगभग 3.65 लाख डच रोज का उत्पादन होगा, जिससे एक साल में कुल 25 लाख रूपए तक की आमदनी होगी। पूरे प्रोजेक्ट में लगे बीस लाख रूपए के हर साल चार लाख अवमूल्यन और रखरखाव की राशि कम करने के बाद 15 लाख रूपए तक की अनुमानित बचत होगी। हमें भी पहले साल इसी अनुपात में राशि बची, जिससे हमनें ऋण की किश्तें भी चुकाई है।

दिल्ली तक भेजे फूल

धीरज ने बताया कि साल 2018 में शुरूआत की, पहले पॉलीहाउस बनाया, फिर पौधे लगाने और खेती से जुड़ी अन्य तैयारियां की। बैंगलोर से कलमें लाकर अप्रैल 2018 में पौधों का रोपण किया। करीब पांच महीने तक पौधों की देखरेख की, जिसके बाद फूलों का उत्पादन शुरू हुआ। नागपुर, इंदौर और भोपाल के मार्केट में शुरूआती उत्पादन भेजा। इस साल फरवरी महीने में वैलेंटाईन डे के दौरान फूलों की अच्छी डिमांड रही। जिसके चलते नईदिल्ली तक फूल भेज सकें। उन्होंने बताया कि सामान्य दिनों में एक हजार तक फूल निकलते है, पर सीजन के समय अच्छे ट्रीटमेंट और देखरेख से प्रतिदिन चार हजार फूलों का उत्पादन ले लेते है। धीरज ने बताया कि अच्छे उत्पादन के बीच पौधों पर थीप्स और ड्राउनी बीमारी भी असर करती है, थीप्स पौधों को कमजोर करता है और ड्राउनी पत्तियां झड़ाती है। इससे बचाव और सुरक्षा के लिए भी समय-समय पर ट्रीटमेंट देने पड़ रहे है। धीरज ने धीरे-धीरे बड़े मार्केटों के वितरकों से संपर्क बना लिया है और खुद ही फूलों को एकत्र कर उसकी पैकिंग और पार्सल कर बड़े शहरों के मार्केटों में भेज रहे है। चूंकि धीरज का परिवार खेती-किसानी से जुड़ा है, इसलिए उनके काम में पिता दुलीचंद घागरे और अन्य लोग हाथ बंटाते है।

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