लेह-लद्दाख में नौ दिवसीय आदि महोत्सव, प्रदर्शित होगी महाराष्ट्र की वार्ली चित्रकला  

लेह-लद्दाख में नौ दिवसीय आदि महोत्सव, प्रदर्शित होगी महाराष्ट्र की वार्ली चित्रकला  

Tejinder Singh
Update: 2019-08-16 14:53 GMT
लेह-लद्दाख में नौ दिवसीय आदि महोत्सव, प्रदर्शित होगी महाराष्ट्र की वार्ली चित्रकला  

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जनजातीय कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के मकसद से लेह-लद्दाख में शनिवार से रंगारंग आदि महोत्सव का आयोेजन किया जा रहा है। इस आयोजन में महाराष्ट्र सहित 20 से ज्यादा राज्यों के लगभग 160 जनजातीय कारीगर हिस्सा लेंगे और अपनी उत्कृष्ट कारीगरी का प्रदर्शन करेंगे। यह महोत्सव लेह-लद्दाख के पोलो ग्राउंड पर 17 अगस्त से 25 अगस्त तक चलेगा। इसका आयोेजन जनजातीय कार्य मंत्रालय और भारतीय जनजातीय सहकारी विपण विकास संघ (ट्राइफेड) ने किया है। जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक शनिवार को आदि महोत्सव का उद्घाटन करेंगे। इस मौके पर केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा, जनजातीय कार्य राज्य मंत्री रेणुका सिंह और ट्राइफेड के अध्यक्ष आर सी मीझाा प्रमुखता से मौजूद रहेंगे। श्री मुंडा ने बताया कि इस महोत्सव का विषय ‘जनजातीय कला, संस्कृति और वाणिज्य की भावना का उत्सव’ है। आदि महोत्सव में विभिन्न राज्यों के 160 जनजातीय कारीगर भाग लेंग। प्रदर्शित किए जाने वाले उत्पादों में महाराष्ट्र से वार्ली चित्रकला, मध्यप्रदेश और पूर्वोत्तर से जनजातीय आभूषण, छत्तीसगढ़ से धातुशिल्प, मणिपुर से ब्लैक पॉट्री और उत्तराखंड, मध्यप्रदेश और कर्नाटक से ऑर्गनिक उत्पाद प्रमुखता से शामिल रहेंगे।

क्या है वार्ली चित्रकला ?

महाराष्ट्र अपनी वार्ली लोक चित्रकला के लिए प्रसिद्ध है। वार्ली एक जनजाति है जो मुंबई शहर से कुछ दूरी पर रहती है। वार्ली आदिवासियों पर आधुनिक शहरीकरण का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। वार्ली महाराष्ट्र की वार्ली जनजाति की रोजमर्रा की जिंदगी और सामाजिक जीवन का सजीव चित्रण है। वार्ली आदिवासी यह चित्रकारी मिट्टी से बने अपने कच्चे घरों की दीवारों को सजाने के लिए करते थे। लिपि का ज्ञान नहीं होने के चलते लोक साहित्य के अाम लोगों तक पहुंचाने को यही एकमात्र साधन था। 
 

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