देसी कॉटन से बनी राखी की हो रही ऑनलाइन बिक्री, ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट के युवा कर रहे प्रमोट

देसी कॉटन से बनी राखी की हो रही ऑनलाइन बिक्री, ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट के युवा कर रहे प्रमोट

Anita Peddulwar
Update: 2018-07-23 07:05 GMT
देसी कॉटन से बनी राखी की हो रही ऑनलाइन बिक्री, ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट के युवा कर रहे प्रमोट

डिजिटल डेस्क, नागपुर। विदर्भ में कॉटन की पैदावार ज्यादा होती है। इसके लिए जो बीज बोये जाते हैं, उसमें करीब 95 प्रतिशत बीज अमेरिकन जेनेटेकली मोडिफाइड (जीएम) बीज हैं, जो भूमि के अनुकूल नहीं होने से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। इन बीजों की दो-तीन बार बुआई करने से जमीन बंजर हो जाती है, जिससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में किसान आर्थिक रूप से कमजोर हो जाते हैं और आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं। इन समस्याओं को देखते हुए नागपुर बीजोत्सव समूह और ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट द्वारा देसी बीज (फूले अनमोल) का किसानों के बीच प्रचार-प्रसार किया जा रहा है और किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वे देसी बीज का उपयोग करें, जो पर्यावरण और किसानों के लिए अनुकूल हैं। इस बीज से उगे कॉटन से महिलाएं राखी बना रहीं है, जिसकी ऑनलाइन बिक्री कर इन महिलाओं को आर्गेनिक फूड दिया जाता है। 

पहल कारगर है
नागपुर बीजोत्सव समूह और ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट के साथी नागपुर और उससे सटे गांवों में किसानों को प्रोत्साहित कर रहे हैं कि वे (फूले अनमोल) नामक देसी कपास उगाएं। यह पहल कारगर हो रही है। कुछ किसानों ने देसी कपास उगाना शुरू किया है। इस कपास से पांच गांवों की 50 महिलाएं चरखे पर सूत कातकर ‘सीड राखी’ बना रही हैं। किसी राखी में कपास का बीज है, तो किसी में दलहन का, ताकि रक्षाबंधन पर्व के बाद उस बीज को आप मिट्टी में लगा सकें और रिश्तों को बढ़ता देख सकें।

हर राखी में एक बीज भी
विदर्भ की महिलाएं देसी कपास से चरखे से सूत बनाती हैं और रंगों में रंग कर  राखियां बनाती हैं। हर राखी में एक बीज रखा होता है, ताकि रक्षाबंधन पर्व के बाद आप उस बीज को जमीन में डाल दें। इसकी भावना है कि उस बीज से उगा पौधा जैसे-जैसे बढ़ेगा, वैसे-वैसे आपका रिश्ता भी फलेगा-फूलेगा और पर्यावरण की रक्षा भी होगी। 

तीन वर्ष से चल रहा है प्रोजेक्ट
पिछले तीन वर्ष से यह प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है। इसका उद्देश्य पर्यावरण को जहरीले कॉटन से बचाना है। देसी कपास को उगाकर इसके धागे से राखियां बनाई जा रही हैं। यह कपास की ‘फूले अनमोल’ प्रजाति है, जिसे गांव के गणेश ढोके, उषा और पुरुषोत्तम भट्टड ने मिलकर उगाया। कपास से महिलाओं ने चरखा पर सूत काता। रंगाई में प्राकृतिक रंग देने का काम हुआ।  इसके बाद सूत को पारडसिंगा गांव ले जाया गया।

आसपास के गांवों की महिलाओं को राखी बनाना सिखाया गया। केलवड, सतनूर, खैरी गांवों की 50 महिलाओं ने ये राखियां बनाई हैं। वहीं हमने अपने नकदी लेन-देन को कम करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। धीरे-धीरे इसे स्थानीय मुद्रा बार्टर से बदल दिया है।
श्वेता भट्टड, ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट

घर के बगीचे में भी उगा सकते हैं

राखी बनाने में रागी, राजगीरा, ज्वार, चावल, सरसो, तुलसी आदि के बीज प्रयोग किए जाते हैं। इन बीजों को बर्तनों में या घर के छोटे बगीचे में भी उगाया जा सकता है। इसके साथ ही इन बीज बैंडों में सैंडलवुड, बिक्सा, बायल, प्रजक्ता और खैर के कुछ छोटे और बड़े स्वदेशी पेड़ों के बीज भी हैं। बीज बैंड के धागे बनाने के लिए इस्तेमाल कपास स्वदेशी प्रजातियों की गोस्पिपियम आर्बोरियम किस्म के हैं।

गणेश ढोके, उषा और पुरुषोत्तम भट्टड ने बताया कि  इस साल हमने गांव पारडसिंगा में खेतों में गैर-जीएम (अनुवांशिक रूप से संशोधित) स्वदेशी कपास उगाया, बाद में ग्राम सेवा मंडल के स्पिनरों द्वारा चरखा पर धागा बनाया और कारीगरों द्वारा प्राकृतिक रंगाें से रंगा गया, फिर सीड बैंड वाली राखियां बनाईं और अब इन्हें ऑनलाइन बेचा जा रहा है।

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