राष्ट्रपति शासन के दौरान ठेकेदार को हुए भुगतान के खिलाफ दायर याचिका खारिज

राष्ट्रपति शासन के दौरान ठेकेदार को हुए भुगतान के खिलाफ दायर याचिका खारिज

Tejinder Singh
Update: 2021-03-05 12:56 GMT
राष्ट्रपति शासन के दौरान ठेकेदार को हुए भुगतान के खिलाफ दायर याचिका खारिज

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन के दौरान हाइवे प्रोजेक्ट से जुड़े एक सड़क ठेकेदार को 358 करोड़ रुपए के भुगतान के निर्णय को लेकर पुनर्विचार याचिका दायर करने वाली प्रदेश की महाविकास अघाडी सरकार को तगड़ा झटका दिया है। न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी ने शुक्रवार को इस बारे में अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकार ने गलत सलाह के तहत यह याचिका दायर की थी। इस मामले में पुनर्विचार का कोई मामला नहीं बनता है लिहाजा सरकार की याचिका को खारिज किया जाता है। 

याचिका में राज्य सरकार ने दावा किया था कि उसने सड़क ठेकेदार मनाज टोलवेज को 358 करोड़ रुपए के भुगतान के निर्णय को मंजूरी व सहमति नहीं दी है। लिहाजा इससे संबंधित निर्णय को सरकार को वापस लेने की अनुमति प्रदान की जाए। याचिका के मुताबिक रकम के भुगतान के विषय में तैयार किया गया सहमति पत्र जल्दबाजी में तैयार किया गया था। सहमति पत्र पर प्रधिकृत लोगों के हस्ताक्षर नहीं थे। जिनके हस्ताक्षर सहमति पत्र पर है उनके पास कानूनी रुप से  हस्ताक्षर करने का अधिकार नहीं था। 

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से पैरवी करनेवाले अनिल अंतुडकर ने दावा किया सचिव, आईएएस अधिकारी, आयुक्त व जिलाधिकारी का मतलब सरकार नहीं होता है। ये सभी सरकार के अधिकारी हैं। सरकार का मतलब मुख्यमंत्री व मंत्रिमंडल है। रकम के भुगतान को लेकर अनुबंध करते समय 29 नवंबर 2020 को लोकतांत्रित रुप से निर्वाचित व गठित सरकार की मंजूरी लेना जरुरी था। लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ है। अनुबंध को लेकर नई सरकार को बिल्कुल भी कोई जानकारी नहीं दी गई और इस विषय पर सरकार का परामर्श भी पहले नहीं लिया गया है। आखिर 23 नवंबर से 28 नवंबर 2019 के बीच अनुबंध के बारे किसने निर्णय लिया। 

वहीं ठेकेदार मनाज टोलवे प्राइवेट लिमिटेड की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता आस्पी चिनाय ने दावा किया कि राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य सरकार इस मामले में 358 करोड़ रुपए के अनुबंध को लेकर राज्यपाल की ओर से दी गई मंजूरी को नकार रही है। सरकार सिर्फ राज्यपाल की मंजूरी की अनदेखी नहीं कर रही बल्कि अपने डेस्क अधिकारी, उप सचिव, सचिव व मुख्य सचिव स्तर के अधिकारियों की मंजूरी को भी उपेक्षित कर रही है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार के लिए उसके सचिव स्तर के अधिकारियों के हस्ताक्षर का कोई अर्थ नहीं है। उन्होंने कहा कि ऐसे सैकड़ो आदेश हैं जो सचिव स्तर के अधिकारियों ने जारी किए है। जिन्हें वे कोर्ट में पेश कर सकते है। इसके अलावा अनुबंध की राशि को पूरक मांग के जरिए मंजूर कराया गया था। यह अनुबंध नियमों के तहत किया गया है। इसलिए सरकार की ओर से इस बारे में जारी की गई पुनर्विचार याचिका पर विचार करना उचित नहीं होगा। 

 

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