एंग्लो इंडियन कोटे से लोकसभा और विधानसभा सदस्य मनोनीत करने को चुनौती
एंग्लो इंडियन कोटे से लोकसभा और विधानसभा सदस्य मनोनीत करने को चुनौती
डिजिटल डेस्क, जबलपुर। हाईकोर्ट में जनहित याचिका के जरिए एंग्लो इंडियन कोटे से लोकसभा और विधानसभा सदस्य मनोनीत किए जाने को चुनौती दी गई है। चीफ जस्टिस एसके सेठ और जस्टिस विजय शुक्ला की युगल पीठ ने पक्षकारों की सूची से प्रदेश के मुख्य सचिव, राज्यपाल के सचिव और राज्य के विधि मंत्रालय के निजी सचिव का नाम विलोपित करने का आदेश दिया है।
याचिका में यह दिए तर्क
नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच जबलपुर के अध्यक्ष डॉ. पीजी नाजपांडे और रजत भार्गव की ओर से जनहित याचिका दायर कर कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 331, 333 और 366(2) के जरिए एंग्लो इंडियन कोटे से लोकसभा में दो और राज्य की विधानसभाओं में एक-एक सदस्य को मनोनीत करने का प्रावधान किया गया है। बिना चुनाव लड़े लोकसभा और विधानसभा के लिए मनोनीत होने वाले एंग्लो इंडियन समुदाय के सदस्यों के पास वह सभी अधिकार होते हैं, जो निर्वाचित सांसद और विधायकों के पास होते हैं। संविधान लागू करते समय इस प्रावधान को 10 साल के लिए लागू किया गया था। इस प्रावधान को 10-10 साल के लिए बढ़ाया जा रहा है। संविधान के 95 वें संशोधन के जरिए इस प्रावधान को वर्ष 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया है। देश में अब एंग्लो इंडियन समुदाय की संख्या काफी कम हो गई है। इसलिए एंग्लो इंडियन समुदाय को प्रतिनिधित्व देने वाले इस प्रावधान को समाप्त किया जाए।
अल्पमत को बहुमत में बदलने के लिए इस्तेमाल
अधिवक्ता अजय रायजादा ने तर्क दिया कि एंग्लो इंडियन समुदाय के सदस्य बिना चुनाव लड़े लोकसभा और विधानसभा में निर्वाचित हो रहे हैं। इस प्रावधान से संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लघंन हो रहा है। राजनीतिक दल संविधान के इस प्रावधान का इस्तेमाल अल्पमत को बहुमत में बदलने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत परीक्षण के दौरान एंग्लो इंडियन कोटे से विधायक मनोनीत करने पर रोक लगा दी थी। प्रांरभिक सुनवाई के बाद युगल पीठ ने पक्षकारों की सूची में से प्रदेश के मुख्य सचिव, राज्यपाल के सचिव और विधि मंत्रालय के निजी सचिव का नाम विलोपित करने का निर्देश दिया है।