बिल्डर को राज्य उपभोक्ता आयोग ने 50 हजार मुआवजा देने के लिए कहा

बिल्डर को राज्य उपभोक्ता आयोग ने 50 हजार मुआवजा देने के लिए कहा

Tejinder Singh
Update: 2019-10-20 08:49 GMT
बिल्डर को राज्य उपभोक्ता आयोग ने 50 हजार मुआवजा देने के लिए कहा

डिजिटल डेस्क, मुंबई। राज्य उपभोक्ता आयोग ने बिल्डर द्वारा निर्धारित बैंक से होम लोन लेने से इंकार करनेवाले दुबई निवासी एक शख्स को राहत प्रदान की है। आयोग ने नाहर बिल्डर को निर्देश दिया है कि वह उसके प्रोजेक्ट में फ्लैट बुक करनेवाले मकरंद शिरगांवकर को नौ प्रतिशत ब्याज के साथ 11 लाख रुपए का भुगतान करे। शिरगांवकर ने फ्लैट बुकिंग के तौर पर यह राशि दी थी। आयोग ने नाहर बिल्डर को शिरगांवकर को 50 हजार रुपए मुआवजे के तौर पर जबकि दस हजार रुपए मुकदमे के खर्च के रुप में देने का निर्देश दिया है। आयोग ने पाया कि शिरगांवकर ने पवई में नाहर अमृत शक्ति 20-80 स्कीम के तहत महानगर के पवई इलाके में 60 लाख रुपए में फ्लैट बुक किया था। साल 2009 में हुए अनुंबध के तहत फ्लैट की कुल कीमत का 20 प्रतिशत पहले देनी थी जबकि 80 प्रतिशत रकम घर मिलने के बाद एचडीएफसी बैंक से होम लोन लेकर अदा करना था। फ्लैट का कब्जा देना अक्टूबर 2011 में देना तय हुआ था। लेकिन फ्लैट 2014 में तैयार हुआ। इससे पहले शिरगांवकर ने अनुबंध के तहत 11 लाख रुपए का भुगतान कर दिया। फिर बिल्डर ने शेष रकम एचडीएफसी बैंक से कर्ज लेकर देने को कहा। लेकिन शिरगांवकर ने कहा कि वे बैंक से कर्ज लेने की बजाय अपने पैसा से भुगतान करेंगे। लेकिन बिल्डर इसके लिए राजी नहीं हुआ। बिल्डर ने साफ किया की अनुबंध के तहत उन्हें एचडीएफसी बैंक से कर्ज लेना ही पड़ेगा। बैंक से कर्ज न लेने पर फ्लैट के अनुबंध को रद्द कर दिया जाएगा। जब शिरगांवकर इसके लिए राजी नहीं हुए तो फ्लैट का अनुबंध रद्द कर दिया गया और फ्लैट किसी और को बेच दिया गया। 

सेवा में कमी के मामले में बिल्डर को 50 हजार मुआवजा देने का निर्देश

इसके बाद शिरगांवकर ने आयोग में शिकायत की। डीआर शिरसाओ की पीठ के सामने मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान बिल्डर की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता ने दावा किया कि अनुबंध के नियमों व शर्तों के तहत एचडीएफसी बैंक से कर्ज लेना अनिवार्य था। जिसका शिकायतकर्ता ने उल्लंघन किया है। इसलिए बिल्डर को इस मामले में दोषी नहीं माना जा सकता है। मेरे मुवक्किल ने अनुबंध रद्द करने के बाद फ्लैट को लेकर शुरुआत में दिए गए पैसो को लौटाने के लिए चेक भेजा था जिसे शिकायतकर्ता ने स्वीकार नहीं किया। वहीं शिकायतकर्ता के वकील ने कहा कि यह सेवा में कमी का मामला है। इसके साथ ही बिल्डर ने समय पर घर भी तैयार नहीं किया। मामले से जुड़े तथ्यों व दोनों पक्षों को सुनने के बाद आयोग ने साफ किया कि अनुबंध नियमों के तहत रद्द किया गया है लेकिन इस मामले में हम बिल्डर को सेवा में कमी का दोषी मानते हैं। आयोग ने शिकायतकर्ता की ओर से शुरुआत में दी गई 20 प्रतिशत रकम नौ प्रतिशत ब्याज के साथ व 50 हजार रुपए मुआवजे के तौर पर लौटाने का निर्देश दिया है।  
 

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