सुप्रीम कोर्ट : अवनी बाघिन को मारने पर अधिकारियों के खिलाफ अवमानना केस बंद
सुप्रीम कोर्ट : अवनी बाघिन को मारने पर अधिकारियों के खिलाफ अवमानना केस बंद
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को यवतमाल जिले में वर्ष 2018 में बाघिन अवनी की हत्या के मामले में दायर अवमानना याचिका को वापस लेने पर खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने इस मामले में राज्य के अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई करने पर यह कहते हुए इंकार किया कि बाघिन को मारे जाने का कदम सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत ही उठाया गया था। प्रधान न्यायाधीश शरद बोबडे, जस्टिस बोपन्ना और जस्टिस रामासुब्रमण्यन की पीठ ने वन्यजीव शोधक र्ता संगीता डोगरा की याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्देश जारी किया जिसमें आरोप लगाया गया कि अधिकारियों द्वारा अवनी के हत्यारों को अदालत के निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए इनाम दिया गया। वीडियों कॉन्फ्रेंस के माध्यम से हुई सुनवाई के दौरान पीठ ने डोगरा को अपनी याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी। पहले पीठ ने राज्य के प्रधान सचिव विकास खडगे और आठ अन्य के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरु करने के लिए नोटिस जारी किया था। पीठ ने कहा कि अधिकारियों ने अपने जवाब में कहा है कि बाघिन को मारने के फैसले को शीर्ष अदालत ने मंजूरी दे दी थी और इसलिए अदालत अपने पिछले फैसले पर पुनर्विचार नहीं कर सकती है। पीठ ने कहा कि हम नहीं कह सकते कि बाघिन आदमखोर नहीं थी। अगर बाघिन को मारने का फैसला इस अदालत ने पहले के मुकदमे में दिया था तो हम इसे अब नहीं खोल सकते। संगीता डोगरा ने अपनी दलील में दावा किया था कि वन अधिकारियों ने अवनी को एक निराधार आरोप में मार दिया, जिसने 13 व्यक्तियों की हत्या की थी और वह आदमखोर थी। जबकि बाघिन की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला है कि वह आदमखोर नहीं थी
ओबीसी की जाति आधारित जनगणना के मामले में सरकार नोटिस जारी किया
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर सरकार को नोटिस जारी किया है जिसमें 2021 की जनगणना में अन्य पिछड़ा वर्ग की जाति आधारित जनगणना कराने के निर्देश देने की मांग की गई थी। प्रधान न्यायाधीश शरद बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष हुई सुनवाई के दौरान जनहित याचिकाकर्ता अंजु वर्की ने तर्क दिया कि शिक्षा, रोजगार, पंचायत राज चुनावों और नगर निगम चुनावों में आरक्षण लागू करने में पिछड़े वर्गों की जाति आधारित जनगणना की एक महत्वपूर्ण भूमिका है और इस तरह की जनगणना के अभाव में पिछड़े वर्गों के आबादी के अनुपात में आरक्षण का प्रतिशत तय करने में समस्याएं पैदा होती है। याचिका में कहा गया कि केन्द्र सरकार की ओर से जारी प्रपत्र में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, हिंदू, मुस्लिम आदि के विवरण के साथ कुल 32 कलम बनाए गए हैं, लेकिन इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग के कॉलम को शामिल नहीं किया गया है और ओबीसी समुदाय की जाति आधारित जनगणना करना आवश्यक है। दलील में कहा गया है कि केन्द्र और राज्य सरकारें शिक्षा, रोजगार, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों के लिए कई योजनाएं बना रही है और लागू कर रही है। इन योजनाओं के लिए हर साल बजट आवंटित होता है, लेकिन जाति आधारित सर्वेक्षण के अभाव में ओबीसी वर्गों में बजट साझा करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता जीएस मणि ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि अदालत ने इस मामले के समान एक मामले में नोटिस जारी किया था। दलील को सुनने के बाद अदालत ने मामले पर नोटिस जारी किया