विश्व बाघ दिवस आज - फॉदर ऑफ टाइगर रिजर्व का रुतबा हासिल है पेंच के टी-3 को , बाघ विहीन हो चुके पन्ना में अब 70 बाघ
विश्व बाघ दिवस आज - फॉदर ऑफ टाइगर रिजर्व का रुतबा हासिल है पेंच के टी-3 को , बाघ विहीन हो चुके पन्ना में अब 70 बाघ
डिजिटल डेस्क छिंदवाड़ा । पन्ना टाइगर रिजर्व को वर्ष 2009 में बाघ विहीन घोषित कर दिया गया था। इसके बाद यहां पर बाघ पुर्नस्थापन योजना को भारी सफलता मिली और महज 12 वर्षों में यहां पर बाघों की संख्या 70 से अधिक हो गई है। दुनियाभर के लिए मिसाल बनी इस योजना की सफलता का सबसे बड़ा कारण पेंच टाइगर रिजर्व की छिंदवाड़ा की सीमा में आने वाली गुमतरा रेंज से भेजे गए बाघ को माना जाता है। इस बाघ ने पन्ना में कुनबा बढ़ाया। करीब 15 वर्षीय इस बाघ को फादर ऑफ पन्ना टाइगर रिजर्व का रुतबा हासिल है। इसके बाद पेंच टाइगर रिजर्व से एक बाघिन भी पन्ना भेजी गई। लगभग 10 वर्षीय यह बाघिन अब तक 17 शावकों को जन्म दे चुकी है।
दो बार सिवनी की ओर भागा था
* पन्ना टाइगर रिजर्व में मैं 2 मार्च 2009 से 7 अक्टूबर 2013 तक डिप्टी डायरेक्टर के पद पर पदस्थ रहा हूं। इन चार वर्षों में टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या शून्य से 32 पहुंच गई थी। पन्ना में पहली बाघिन 4 मार्च 2009 में बांधवगढ़ से और दूसरी बाघिन 9 मार्च को कान्हा से आई। इसके बाद 6 नवंबर को पहला मेल टाइगर पेंच टाइगर रिजर्व से पहुंचा था। इसे 6 से 13 नवंबर तक बाड़े में रखा गया। 14 नवंबर को इसे बाहर छोड़ा गया। 25 नवंबर को यह सिवनी को ओर भाग गया। इसे 25 दिसंबर को पकडकऱ वापस पन्ना लाया गया। पुर्नस्थापन योजना शुरु होने के बाद पहली बार 16 अप्रैल 2010 को टी-1 बाघिन ने 4 शावकों को जन्म दिया था। करीब तीन-चार वर्ष तक टाइगर रिजर्व में यह इकलौता मेल टाइगर रहा। इस तरह की विश्व में पहली योजना की सफलता में सबसे बड़ा योगदान जनसमर्थन का रहा। योजना शुरु होने के पहले ही यहां के रहवासियों के साथ लगातार मीटिंग की गई। जो संदिग्ध लोग थे, उन्हें भी बुलाकर शिकार नहीं करने की शपथ दिलाते थे।
-विक्रम सिंह परिहार, फील्ड डायरेक्टर, पेंच टाइगर रिजर्व
पेंच में एस्टेब्लिश टेरेटरी नहीं बना पाया था, बाद में पन्ना में रच दिया इतिहास
* पन्ना में टाइगर खत्म हो जाने के बाद बाघ के पुर्नस्थापन की योजना बनाई गई। उस समय यह निर्णय लिया गया था कि यहां पर दो-तीन अलग-अलग टाइगर रिजर्व से बाघ लाए जाएंगे। इसका वैज्ञानिक कारण यह रहा कि अलग-अलग टाइगर रिजर्व के टाइगर मिलकर जो जीन पूल बनाएं वह बेस्ट क्वालिटी का हो और इससे भविष्य में बाघों में कोई डिसीज या बीमारी होने की संभावना न हो। इसी के आधार पर बांधवगढ़ और कान्हा की बाघिन लाए गए थे, जिन्हें टी-1 और टी-2 नाम दिया गया। फिर पेंच से मेल टाइगर टी-3 को लेकर गए थे। उस समय मैं वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट का रिसर्च स्कॉलर था। शोधकर्ता के रुप में बाघ को पन्ना भेजने के लिए नामांकित करने में सहयोग किया था और इसे पन्ना लेकर गए थे। प्रोटोकाल के तहत ऐसे टाइगर की तलाश की गई जो पूर्ण वयस्क टाइगर हो लेकिन उसकी कोई एस्टेब्लिश टेरेटरी न हो। ऐसे टाइगर को पेंच टाइगर के गुमतरा रेंज से लिया गया था। शुरु में यह पन्ना से बाहर निकलता था। एक बार इसे तेंदूखेड़ा से पकडकऱ वापस पन्ना पहुंचाया था। इसके बाद उसने अपनी टेरेटरी एस्टेब्लिश करना शुरु की। बाघों का कुनबा जो पन्ना में बढ़ा है वह इसी की देन है। इस परियोजना की सफलता में पूर्व पीसीसीएफ डॉ. पावला, तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर श्रीनिवास मूर्ति, विक्रम सिंह परिहार सहित वन अधिकारियों की प्लानिंग व मेहनत एवं जनसमर्थन का योगदान रहा है।
-अनिरुद्ध मजूमदार, साइंटिस्ट स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट
सफल हुई बाघ पुर्नस्थापन योजना-अब 70 से अधिक बाघ मौजूद
* पेंच टाइगर रिजर्व से आए टी-3 को फॉदर ऑफ पन्ना टाइगर रिजर्व कहा जाता है। बाघ पुर्नस्थापन योजना की शुरुआत में यह अकेला मेल टाइगर था। पेंच टाइगर रिजर्व से आई फीमेल टाइगर टी-6 ने इस वर्ष छटी लिटर में चार शावक दिए हैं। पिछले साल 3 शावकों को जन्म दिया था। पन्ना टाइगर रिजर्व में वर्तमान में बच्चे मिलाकर 70 से अधिक बाघ हैं।
-उत्तम कुमार शर्मा, फील्ड डायरेक्टर, पन्ना टाइगर रिजर्व
* पेंच से पहले मेल टाइगर टी-3 भेजा था और इसके बाद वहां फीमेल टाइगर टी-6 भेजी गई थी। टी-3 पन्ना का डोमेनेंट टाइगर है। शुरु में पन्ना में रिवाईवल टी-3 से ही हुआ है। पन्ना में शून्य से अब 70-75 टाइगर हैं, यह पूरे विश्व के लिए मिसाल है।
-आलोक कुमार, पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) भोपाल
बाघिन टी-6 अब तक 17 शावकों को जन्म दे चुकी है
वर्ष 2009 में मेल टाइगर को भेजने के बाद दूसरे चरण में पेंच टाइगर रिजर्व से जनवरी 2014 में एक फीमेल टाइगर को भी पन्ना भेजा गया। इसे टी-6 नाम दिया गया। इस वर्ष टी-6 ने 4 शावकों को जन्म दिया है। छह बार में यह बाघिन अब तक 17 शावकों को जन्म दे चुकी है।