अंतिम क्षण तक अहसास नहीं होने दिया कि जीवन की डोर ऐसे टूट जाएगी, कोविड ने  छीन लिया हरीश चौबे को

अंतिम क्षण तक अहसास नहीं होने दिया कि जीवन की डोर ऐसे टूट जाएगी, कोविड ने  छीन लिया हरीश चौबे को

Bhaskar Hindi
Update: 2020-09-19 09:19 GMT
अंतिम क्षण तक अहसास नहीं होने दिया कि जीवन की डोर ऐसे टूट जाएगी, कोविड ने  छीन लिया हरीश चौबे को

सुशील तिवारी जबलपुर । जबलपुर की पत्रकारिता के इतिहास में हरीश चौबे बिना मिटने वाले निशान हैं। वे कुछ दिनों से कोविड से संक्रमित थे, शुक्रवार को मेडिकल सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल में उपचार के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। हम पत्रकारों को उनके जाने का जो अवसाद है, वो शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। हरीश चौबे ने पत्रकारिता 1978 में ज्ञान युग प्रभात से लगभग किशोर अवस्था में शुरू की थी, दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता की हैसियत से उन्होंने लगभग 3 दशक से ज्यादा सेवाएँ दीं। रिपोर्टिंग के मामले में उनका कोई सानी नहीं था, हमारे लिए वे मित्र, सहयोगी और कई बार रास्ता दिखाने वाले भी साबित हुए। निहायती सरल, मृदुभाषी और साहसी हरीश ने कभी अपने मूल्यों के साथ समझौता नहीं किया। रिपोर्टिंग के मामले में हरीश का अपना मुकाम था। दूर-दूर तक रिपोर्टिंग के लिए जब भी जाना हुआ हरीश हमारे साथ थे। कई बार उनकी साफगोई मुसीबत का कारण बनी, पर अंतत: वे ही सच्चे और साफ-सुथरे निकले। 
हरीश न सिर्फ पत्रकारिता बल्कि समाज के बहुत बड़े रहनुमा भी थे। असहाय, निहत्थे लोग मदद के लिए हरीश का ही दामन थामते थे, और वे उन्हें न्याय दिलाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते थे। उनके साथ बिताईं अनगिनत खट्टी-मिठी यादें हमारी यादों के पन्नों में दर्ज रहेंगी। पहले विक्टोरिया और फिर मेडिकल  अस्पताल में  भर्ती के दौरान उन्हें कोविड से बहुत कष्ट  होने के बावजूद उन्होंने अहसास नहीं होने दिया कि जीवन की डोर ऐसे  टूट जाएगी। 
सतपुला से परियट तक चौबे जी ही आम आदमी के लिए पत्रकार थे, सुरक्षा संस्थानों का श्रमिक नेतृत्व हो या प्रबंधन, पुलिस हो या जिला प्रशासन या सियासत में दखल रखने वाले हरीश सबके यार थे। स्तब्ध पत्रकार जगत उन्हें हृदय से नमन करता है। 
 

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