अनजाने में हुई लापरवाही को दुराचार नहीं माना जा सकता
अनजाने में हुई लापरवाही को दुराचार नहीं माना जा सकता
डिजिटल डेस्क, मुंबई। कार्य के दौरान अनजाने में हुई लापरवाही को दुराचार नहीं माना जा सकता है। बर्शते उससे कोई बूरा मकसद न जुड़ा हो। बांबे हाईकोर्ट के एक फैसले में यह बात उभर कर सामने आयी है। मामला कस्टम विभाग में काम करनेवाले अधिकारी सत्येंद्र सिंह गुर्जर से जुड़ा है। जिनकी ड्युटी के दौरान कंसाइनमेंट के परीक्षण के दौरान हुई लापरवाही को दुराचार मानते हुए कस्टम विभाग ने दंड स्वरुप उनके पे स्केल घटा दिया गया था। कस्टम विभाग के इस फैसले के खिलाफ गुर्जर ने केंद्रीय प्रशासकीय न्यायाधिकरण (कैट) में अपील की थी। कैट ने गुर्जर को कोई राहत नहीं दी। लिहाजा कैट के फैसले के खिलाफ गुर्जर ने अधिवक्ता सुजय कांटावाला व देवांशी सिंह के मार्फत हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति एनजे जमादार की खंडपीठ के सामने गुर्जर की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता की वकील ने कहा कि मेरे मुवक्किल से कनसाइनमेंट के परीक्षण के दौरान दस्तावेजों को तैयार करने व परीक्षण में जो लापरवाही हुई वह उनसे अनजाने में हुई। उन्हें यह नहीं पता था कि कंटेनर के अंदर अधिकृत माल के अलावा और क्या छुपाया गया है। मेरे मुवक्किल का कृत्य अनजाने में हई लापरवाही के दायरे में आता है। इसे दुराचार नहीं माना जा सकता है। क्योंकि उनका उद्देश्य अपने कार्य से किसी को लाभ व नुकसान पहुंचाना नहीं था जबकि सरकारी वकील ने साफ किया कि याचिकाकर्ता का कृत्य दर्शाता है कि उनमे अपने कार्य के प्रति निष्ठा नहीं थी।
इसलिए याचिकाकर्ता के कृत्य के बारे में सही निष्कर्ष निकाला गया है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता के कृत्य से कोई बदनियति व बूरा मकदस नहीं जुड़ा है। इसलिए उसके कृत्य को दूराचार नहीं माना जा सकता है। इस तरह से खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के पे स्केल घटाने के निर्णय को रद्द किया जाता है। इस तरह से खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की याचिका को मंजूर करते हुए उन्हें राहत प्रदान की।