पितृ विसर्जन अमावस्या: जानें क्यों महत्वपूर्ण है ये तिथि और कैसे करें इस दिन श्राद्ध

पितृ विसर्जन अमावस्या: जानें क्यों महत्वपूर्ण है ये तिथि और कैसे करें इस दिन श्राद्ध

Manmohan Prajapati
Update: 2020-09-17 05:28 GMT
पितृ विसर्जन अमावस्या: जानें क्यों महत्वपूर्ण है ये तिथि और कैसे करें इस दिन श्राद्ध

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। श्राद्ध की सभी तिथियों में अमावस्या को पड़ने वाली श्राद्ध तिथि का विशेष महत्व होता है। शास्त्रों में आश्विन माह कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मोक्षदायिनी अमावस्या और पितृ विसर्जनी अमावस्या कहा गया है। इस बार सर्व पितृ अमावस्या 17 सितंबर यानी कि आज है। यह श्राद्ध का अंतिम दिन होता है। मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि इस दिन मृत्यु लोक से आए हुए पितृजन वापस लौट जाते हैं। 

यदि आप पितृपक्ष में श्राद्ध कर चुके हैं तो भी सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करना जरूरी होता। इस दिन किया गया श्राद्ध पितृदोषों से मुक्ति दिलाता है। साथ ही यदि कोई श्राद्ध तिथि में किसी कारण से श्राद्ध न कर पाया हो या फिर श्राद्ध की तिथि मालूम न हो तो सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या पर श्राद्ध किया जा सकता है।

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क्यों महत्वपूर्ण है ये अमावस्या?
समूचे श्राद्ध पक्ष में पितृ मोक्ष अमावस्या ही एक ऐसा दिन है, जब आप अपने पितृरों का श्राद्ध या तर्पण कर सकते हैं। अमावस्या को श्राद्ध तर्पण करने का एक विशेष कारण ये भी है कि अमावस्या के दिन पितरों के नाम की धूप देने से मानसिक और शारीरिक शांति प्राप्त होती है। इसके साथ ही जातक के घर में सुख-समृद्धि आती है। साथ ही जातक के सर्वकष्ट दूर हो जाते हैं। 

ऐसा माना जाता है कि पितृ मोक्ष अमावस्या को पितृ अपने प्रियजनों के पास यमलोक से पृथ्वी पर श्राद्ध की भावना लेकर आते हैं और तब उनका पिंडदान नहीं होने पर वो श्राप दे जाते हैं। जिस कारण घर की सुख-शांति भंग हो जाती है और कलह बनी रहती है। इसलिए इस दिन भूल-चूक या अज्ञात श्राद्ध कर्म करना अवाश्यक है।  

कैसे करें श्राद्ध 
हमारे पूर्वजों का स्मरण कर उनके प्रति आदर, श्रद्धा रखते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए स्नान, दान, तर्पण आदि हर कोई करता है। इसके लिए जिस दिन आपके घर श्राद्ध तिथि हो उस दिन सूर्योदय से लेकर 12 बजकर 24 मिनट की अवधि के मध्य ही श्राद्ध करें। प्रयास करें कि इसके पहले ही ब्राह्मण से तर्पण आदि करालें। श्राद्ध करते समय दूध, गंगाजल, मधु, वस्त्र, कुश, अभिजित मुहूर्त और तिल का विशेष ध्यान रखें। तुलसीदल से पिंडदान करने से पितर पूर्ण तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं।

इस दिन आमंत्रित किए गए ब्राह्मण के पैर धोना चाहिए, ध्यान रहे इस कार्य के समय पत्नी को दाहिनी तरफ होना चाहिए। वहीं श्राद्ध तिथि के दिन तेल लगाने, दूसरे का अन्न खाने, और स्त्रीप्रसंग से परहेज करें। श्राद्ध में राजमा, मसूर, अरहर, गाजर, कुम्हड़ा, गोल लौकी, बैगन, शलजम, हींग, प्याज-लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, पिप्पली, कैंथ, महुआ और चना ये सब वस्तुएं श्राद्ध में वर्जित मानी गई हैं।

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गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, अनाज, गुड़, चांदी तथा नमक इन्हें महादान कहा गया है। भगवान विष्णु के पसीने से तिल और रोम से कुश कि उत्पत्ति हुई है अतः इनका प्रयोग श्राद्ध कर्म में अति आवश्यक है। ब्राहमण भोजन से पहले पंचबलि गाय, कुत्ते, कौए, देवतादि और चींटी के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालें।

दक्षिणाभिमुख होकर कुश, तिल और जल लेकर पितृतीर्थ से संकल्प करें और एक या तीन ब्राह्मण को भोजन कराएं। भोजन के उपरांत यथा शक्ति दक्षिणा और अन्य सामग्री दान करें तथा निमंत्रित ब्राह्मण की चार बार प्रदक्षिणा कर आशीर्वाद लें।
 


 

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