B,Day Spl: इंडियन सिने जगत में न्यू वेव सिनेमा के जनक हैं बासु दा

B,Day Spl: इंडियन सिने जगत में न्यू वेव सिनेमा के जनक हैं बासु दा

Bhaskar Hindi
Update: 2018-01-10 03:31 GMT
B,Day Spl: इंडियन सिने जगत में न्यू वेव सिनेमा के जनक हैं बासु दा

डिजिटल डेस्क, मुंबई। वो डायरेक्टर, जिसने आम जिंदगी को बना दिया खास बासु चटर्जी यानी कि वो निर्देशक जिनकी फिल्मों में शहरी मध्यम वर्ग बखूबी नुमायां होता रहा है। वर्किंग मिडिल क्लास की खुशी, गम, उनकी उलझनें और परेशानियों के बीच जिंदगी से हार न मानने का उनका जज्बा, सिनेमा के पर्दे पर बासु चटर्जी से बेहतर शायद ही कोई और दिखा पाया है। खासकर सत्तर और अस्सी के दशक का मुंबई शहर उनकी फिल्मों की जान रहा है। जब बॉलीवुड एंग्री यंग मैन की इमेज के पीछे पीछे दीवाना था, तब बासु चटर्जी ने एक शहरी और 9 से 5 तक दफ़्तर में काम करने वाले आम आदमी को नायक बनाकर पेश किया। बदलाव का ये झोंका दर्शकों को भी रास आया और उन्होंने बासु दा की फिल्मों को खूब प्यार दिया और वो आज भी देते हैं।

 

10 जनवरी 1930 को अजमेर में पैदा हुए बासु चटर्जी ने अपना करियर बतौर कार्टूनिस्ट शुरू किया था और शायद इसलिए वो अपनी फिल्मों में रोजमर्रा के किरदार और कहानियों के साथ बेहतरीन ह्यूमर भी दिखा पाए। बासु चटर्जी डायरेक्टर बासु भट्टाचार्य की फिल्म "तीसरी कसम" में उनके सहायक रहे थें। उन्होंने फिल्म "सारा आकाश" (1969) से बतौर निर्देशक अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने मणी कौल और मृणाल सेन जैसे निर्देशकों के साथ मिलकर भारतीय सिनेमा में न्यू वेव सिनेमा की शुरुआत की जो कमर्शियल फिल्मों से अलग आम लोगों की जिंदगी को बयां करता था। 

 

 

आइए नजर डालते हैं बासु दा की उन सदाबहार फिल्मों पर जो आज भी दर्शकों को गुदगुदाती है।  

 

1. पिया का घर(1972) - जया भादुरी और अनिल धवन के अभिनय से सजी इस फिल्म की कहानी मुंबई के अपार्टमेंट कल्चर की समस्या को दिखाती है। एक छोटे से फ्लैट में रहने वाले परिवार में एक नया शादी-शुदा जोड़ा निजी पलों को तरसता है और इससे उनका रिश्ता कैसे प्रभावित होता है ये बासु दा ने बड़ी खूबसूरती से दिखाया है। 

 


 

2. रजनीगंधा(1974) - लेखक मन्नू भंडारी की कहानी "यही सच है" पर आधारित इस फिल्म में नायिका के चंचल मन को बड़े मजेदार तरीके से फिल्माया गया है। अपने मौजूदा प्रेमी और पूर्व प्रेमी के बीच लगातार तुलना करती और पल-पल बदलती चाहतों में बहती ये नायिका हमारे बीच की ही लगती हैं। इस फिल्म में पहली बार अभिनेता अमोल पालेकर और विद्या सिन्हा की जोड़ी साथ नजर आई थी।


3. चितचोर(1976) - अमोल पालेकर, जरीना वहाब और विजयेंद्र घाटगे जैसे कलाकारों ने बासु दा के निर्देशन में जैसे कमाल ही कर दिया। इस साधारण कहानी में पिरोया गया प्रेम त्रिकोण दिल छू जाता है। 

 


4. छोटी सी बात(1976) - ये बासु दा की सबसे चर्चित फिल्म है जो वक्त के साथ एक कल्ट क्लासिक बन चुकी हैं। अमोल पालेकर और विद्या सिन्हा की जोड़ी आम जिंदगी के कपल सा एहसास पैदा करती हैं। फिल्म में वो तमाम जज्बात है जो कि मध्यम वर्ग के जीवन में देखने को मिलते हैं। टीवी और डीवीडी पर इस फिल्म की मांग लगातार बनी हुई है।


5. खट्टा मीठा(1978) - इस फिल्म की कहानी में दो पारसी परिवार है जिनके मुखिया अकेले हैं और वो शादी करने का फैसला करते हैं। दोनों के जवान बच्चों को अपने नए मां-बाप के साथ मिलकर एक ही घर में रहना पड़ता है, इससे फिल्म में गजब का हास्य पैदा होता है। इस फिल्म में बासु दा ने बड़ी चतुराई से एक गंभीर विषय को हल्के-फुल्के अंदाज में दर्शकों के सामने पेश किया है। 

 


6. मंजिल(1979) - सुपरस्टार अमिताभ बच्चन और मौसमी चटर्जी स्टारर इस फिल्म में बासु दा ने दिखाया कि कैसे नायक हमेशा झूठ बोलकर नायिका को प्रभावित करने की कोशिश करता है और आखिर में मुसीबत में पड़ जाता है। इस फिल्म को इसके मधुर संगीत के लिए भी याद किया जाता है। 

 


 

7. हमारी बहू अल्का(1982) - राकेश रोशन, बिंदिया गोस्वामी और उत्पल दत्त अभिनीत इस फिल्म में बासु दा ने दिखाया है कि कैसे एक मध्यमवर्गीय परिवार में पिता अपने पुत्र से जुड़े हर मामले में अपनी पसंद चलाता है। पिता-पुत्र की ये तनातनी दर्शकों को गुदगुदाती है। 

 


 

8. शौकीन (1982)- ये बासु दा के निर्देशन में बनी एक और कल्ट क्लासिक है जो आज भी बेहद पसंद की जाती है। अशोक कुमार, एके हंगल और उत्पल दत्त तीन लम्पट बूढ़ों के रोल में हैं जो गोवा में मस्ती करने पहुंचते हैं और एक नवयुवती के साथ रोमांस करने की ख्वाहिश रखते हैं। इस फिल्म में भी बासु दा आम जिंदगी में उठने वाले जज्बातों को बड़ी खूबसूरती से बयां कर देते हैं।

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