श्रीलंका : महिंद्रा राजपक्षे के प्रधानमंत्री के रूप में काम करने पर कोर्ट ने लगाई रोक

श्रीलंका : महिंद्रा राजपक्षे के प्रधानमंत्री के रूप में काम करने पर कोर्ट ने लगाई रोक

Bhaskar Hindi
Update: 2018-12-03 15:08 GMT
श्रीलंका : महिंद्रा राजपक्षे के प्रधानमंत्री के रूप में काम करने पर कोर्ट ने लगाई रोक
हाईलाइट
  • 122 सांसदो की ओर से राजपक्षे और उनकी सरकार के खिलाफ याचिका दायर की थी।
  • श्रीलंका की एक अदालत ने सोमवार को महिंदा राजपक्षे के प्रधानमंत्री के रूप में काम करने पर रोक लगा दी है।
  • श्रीलंका में राजनीतिक उतल पुथल मची हुई है।

डिजिटल डेस्क, कोलंबो। श्रीलंका में राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई है। इस बीच यहां कोर्ट ने सोमवार को महिंद्रा राजपक्षे के प्रधानमंत्री के रूप में काम करने पर रोक लगा दी है। 122 सांसदो की ओर से राजपक्षे और उनकी सरकार के खिलाफ याचिका दायर की गई थी, जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने ये फैसला सुनाया है। कोर्ट का ये आदेश राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना के लिए एक झटके की तरह है क्योंकि उन्होंने ही रानिल विक्रमसिंघे की जगह राजपक्षे को पीएम पद की शपथ दिलाई थी। कोर्ट की इस रोक के बाद राजपक्षे ने कहा, वह कोर्ट के इस फैसले से संतुष्ट नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में वह इसके खिलाफ अपील दायर करेंगे। इस मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होगी।

इससे पहले राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के संसद भंग करने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई थी। इसके बाद संसद ने महिंद्रा राजपक्षे के खिलाफ अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव पारित किया था। यह प्रस्‍ताव ध्‍वनि मत से पारित किया गया था और इसकी घोषणा स्‍पीकर कारु जयसूर्या ने की थी। अगले दिन जब एक बार फिर संसद का सत्र शुरू हुआ तो इस पर जमकर हंगामा हुआ। इस दौरान स्पीकर कारू जयसूर्या ने कहा था कि इस वक्त देश में कोई भी प्रधानमंत्री नहीं है चाहे वे राष्ट्रपति की ओर से नियुक्त किए गए राजपक्षे हों या उनके प्रतिद्वंद्वी विक्रमसिंघे। स्पीकर की इस बात से राजपक्षे और उनके समर्थक भड़क गए थे। राजपक्षे ने कहा था कि श्रीलंका के राजनीतिक संकट को दूर करने के लिए दोबारा चुनाव कराना ही एक मात्र रास्ता है।

गौरतलब है कि श्रीलंका में राजनीतिक उथल-पुथल की शुरुआत 26 अक्टूबर को हुई थी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री रणिल विक्रमसिंघे को हटाकर प्रेसिडेंट मैत्रिपाला सिरिसेना ने पूर्व राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई थी। श्रीलंका की राजनीति में अचानक इस तरह का बदलाव इसलिए आया था क्योंकि सिरिसेना की पार्टी यूनाइटेड पीपल्स फ्रीडम (UPFA) ने  रणिल विक्रमेसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (UNP) के साथ गठबंधन तोड़ लिया था।

इसके बाद मैत्रिपाला सिरिसेना ने 225 सदस्यीय संसद को भंग कर दिया था। संसद भंग होने के बाद श्रीलंका में तयशुदा कार्यक्रम से दो साल पहले 5 जनवरी को चुनाव की घोषणा की गई थी। इसके लिए 19 नवंबर से 26 नवंबर के बीच नामांकन किए जाने थे। विक्रमसिंघे ने संसद भंग करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इसके बाद संसद भंग के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। इतना ही नहीं अदालत ने चुनाव की तैयारियों पर भी रोक लगा दी थी। चीफ जस्टिस नलिन परेरा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने यह फैसला सुनाया था।

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