अखिलेश-मायावती मुलाकात में क्या बनी रणनीति, जानिए बबुआ कैसे देगा रिटर्न गिफ्ट

अखिलेश-मायावती मुलाकात में क्या बनी रणनीति, जानिए बबुआ कैसे देगा रिटर्न गिफ्ट

Bhaskar Hindi
Update: 2018-03-15 05:29 GMT
अखिलेश-मायावती मुलाकात में क्या बनी रणनीति, जानिए बबुआ कैसे देगा रिटर्न गिफ्ट

डिजिटल डेस्क, लखनऊ। उत्तर प्रदेश में हुए लोकसभा उपचुनाव में सपा और बसपा ने बीजेपी को सकते में डाल दिया है। जिन सीटों पर सपा और बसपा ने बीजेपी का विकेट गिराया उनमें से एक गोरखपुर है जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ रहा है। वहीं दूसरा फूलपुर जहां से प्रदेश बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य सांसद रहे और उप-मुख्यमंत्री बनने के बाद इस्तीफा दिया। उपचुनाव में मिली जबरदस्त जीत के बाद बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती से समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने मुलाकात की। बता दें कि सपा और बसपा के प्रमुखों के बीच की ये मुलाकात करीब 23 साल बाद हुई है। हालांकि इस मुलाकात में 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर अभी कोई बात नहीं हुई है। 

 

 

लखनऊ की गलियों में "बुआ-भतीजा" जिंदाबाद" के नारे 

 

पिछले दिनों ही बसपा अध्यक्ष मायावती ने अपनी करीब 23 साल पुरानी दुश्मनी भुलाकर उपचुनाव में समाजवादी पार्टी का साथ देने का ऐलान किया था। जिसका फायदा भी समाजवादी पार्टी को खूब मिला। इस जीत की खुशी पर अखिलेश यादव मायावती के घर पहुंचे जहां मायावती ने खुद "बबुआ" की आगवानी की। वहीं अखिलेश ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी और गुलदस्ता देते हुए "प्रणाम बुआ" कहा। अखिलेश-मायावती के बीच करीब 45 मिनट तक बातचीत हुई। इस दौरान राजधानी लखनऊ की गलियों में "बुआ-भतीजा" जिंदाबाद" के नारे भी लगाए गए।  

 


 

राज्यसभा पर हुई बात


जानकारी के अनुसार, अखिलेश और मायावती के बीच 2019 लोकसभा चुनाव को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई है। शुरुआती 15 मिनटों में मायावती ने ये बताया कि कैसे गोरखपुर और फूलपुर में बिना गए उन्होंने दलितों और मुसलमानों को ये संदेश दिया कि एसपी को वोट देना है। इस मुलाकात के दौरान अखिलेश ने बताया कि कैसे उनकी पार्टी ने जमीनी स्तर पर काम किया। दोनों ने बात की कि राज्यसभा चुनावों में कैसे अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को जिताना है। एसपी और बीएसपी दोनों को इस बात का डर है कि क्रॉस वोटिंग हो सकती है। मायावती और अखिलेश यादव की बैठक में संजय सेठ नाम का एक और अहम चेहरा मौजूद था। बता दें कि संजय सेठ राज्यसभा सांसद हैं।

 

उपचुनाव में जीत के बाद अब खबर है कि अखिलेश यादव उपचुनाव में मदद के लिए बुआ मायावती को रिटर्न गिफ्ट देने की तैयारी में हैं। अखिलेश के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती मायावती के उम्मीदवार को राज्यसभा भेजने की है, जो इतनी भी आसान नहीं है। राज्यसभा चुनाव में बीएसपी ने भीमराव आंबेडकर को उम्मीदवार बनाया है।

 

 

भुला चुके पुरानी दुश्मनी


बता दें कि बीजेपी पूरे चुनाव प्रचार के दौरान बसपा और सपा को 1995 में हुए लखनऊ के गेस्ट हाउस कांड की याद दिलाता रहा। दरअसल, 1995 में बीएसपी ने एसपी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। जिसके बाद गुस्साए एसपी कार्यकर्ताओं ने लखनऊ के गेस्ट हाउस में मायावती के साथ बदसलूकी कर दी थी। उसके बाद ये दूरी इतनी बढ़ी की पिछले करीब 23 सालों में कभी भी मायावती ने समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेताओं से मुलाकात नहीं की। दोनों अब उस बात को भुला चुके हैं, ताकि बीजेपी प्रदेश में अपनी पैठ बनाने में कामयाब न हो पाए।  
 

क्या है वोटों का समीकरण?


यूपी में राज्यसभा की 10 सीटों के लिए 23 मार्च को चुनाव है।
बीजेपी ने 9 उम्मीदवार उतारकर अखिलेश-मायावती का समीकरण बिगाड़ा
यूपी की 10 राज्यसभा सीटों पर बीजेपी के 8 उम्मीदवारों का जीतना तय
बीजेपी ने अपने 9वें उम्मीदवार के तौर पर गाजियाबाद में अनिल अग्रवाल को भी मैदान में उतारा
यूपी में एक राज्यसभा सीट के लिए 37 विधायकों के वोट जरूरी हैं।
बीजेपी के पास कुल 324 विधायक हैं। यानी 8 सदस्यों के चुने जाने के बाद भी उसके पास 28 वोट ज्यादा होंगे। 
नौवीं सीट पर 47 विधायकों वाली समाजवादी पार्टी की जीत तय है। 
समाजवादी पार्टी के पास भी 10 वोट ज्यादा है। अब असली लड़ाई 10वीं सीट की है। 
यूपी में बीएसपी के सिर्फ 19 विधायक ही हैं।
एसपी के 10 और कांग्रेस के 7 विधायकों के साथ बीएसपी के कुल 36 वोट हो जाएंगे।

 

वहीं दूसरी तरफ सपा में कुछ बागी नेता भी हैं जो पार्टी बदलने की फिराक में रहते हैं। नरेश अग्रवाल पहले ही अपने बेटे का वोट बीजेपी को देने की बात कर चुके हैं। समाजवादी पार्टी के शिवपाल यादव और उनके समर्थक विधायकों पर भी संदेह है कि वो पार्टी लाइन से अलग हटकर वोट कर सकते हैं।  

 

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