मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत बोले- एक साथ चुनाव का कोई चांस नहीं
मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत बोले- एक साथ चुनाव का कोई चांस नहीं
- चुनाव की इस कवायद को इलेक्शन कमीशन ने झटका दिया है।
- भाजपा का केंद्रीय नेतत्व विधानसभा के साथ ही लोकसभा चुनाव भी कराए जाने की कवायद में जुटा है।
- मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा
- एक साथ चुनाव करवाने का कोई चांस नहीं।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इन दिनों लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने की कवायद में जुटा हुआ है, लेकिन एक साथ चुनाव की इस कवायद को इलेक्शन कमीशन ने झटका दिया है। मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने गुरुवार को औरंगाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान मीडिया से बात करते हुआ कहा कि देशभर में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव कराने का कोई चांस नहीं है।
इससे पहले 14 अगस्त को भी रावत ने कहा था कि कानून में बदलाव किए बिना देश में एक साथ चुनाव कराना असंभव है। चुनावों के संचालन के लिए 100 फीसदी VVPAT की उपलब्धता जरूरी है। इस मसले पर चुनाव आयोग ने खुद 2015 में सुझाव दिए थे। इसके लिए अतिरिक्त पुलिस बल और चुनाव अधिकारियों की भी जरूरत पड़ेगी। लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को 24 लाख EVM की जरूरत होगी। यह संख्या आम चुनाव में लगने वाली EVM से दोगुनी ज्यादा है।
एक साथ चुनाव के क्या हैं फायदे?
लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराने का मुद्दा बीते कुछ समय से लगातार गर्म है। नवंबर में मध्यप्रदेश के साथ ही छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में चुनाव होना है। उधर 2019 में अन्य राज्यों के चुनाव होंगे। लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का सबसे बड़ा फायदा यही बताया जा रहा है कि इससे चुनावी खर्च में काफी बचत होगी।
केंद्र सरकार की ओर से यह कहा जा रहा है कि दोनों चुनाव एक साथ कराने से तकरीबन 4,500 करोड़ रुपये की बचत होगी। इससे राजनीतिक स्थिरता आने का भी तर्क दिया जा रहा है, क्योंकि अगर किसी राज्य में कार्यकाल खत्म होने के पहले भी कोई सरकार गिर जाती है या फिर चुनाव के बाद किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता तो वहां आनन-फानन में नहीं बल्कि पहले से तय समय पर ही चुनाव होगा। इससे वहां राजनीतिक स्थिरता बनी रहेगी।