तमिल फिल्मों से अपनी विचारधारा पेश कर यूं पांच बार सीएम बने ‘द्रविड़ योद्धा’ करुणानिधि

तमिल फिल्मों से अपनी विचारधारा पेश कर यूं पांच बार सीएम बने ‘द्रविड़ योद्धा’ करुणानिधि

Bhaskar Hindi
Update: 2018-08-07 14:43 GMT
हाईलाइट
  • एम करुणानिधी का मंगलवार शाम 6 बजे कावेरी हॉस्पिटल में देहांत हो गया।
  • करुणानिधी एक नाटककार थे
  • वे तमिल फिल्मों में पटकथा लेखन का काम करते थे।
  • करुणानिधी तमिलनाडु के पांच बार मुख्यमंत्री रहे।

डिजिटल डेस्क, चेन्नई। पिछले 10 दिनों से यूरिनरी इंफेक्शन के चलते कावेरी हॉस्पिटल में भर्ती 94 वर्षीय डीएमके नेता एम करुणानिधि का मंगलवार शाम 6 बजे देहांत हो गया। सोमवार शाम को हॉस्पिटल की ओर से जारी मेडिकल बूलेटिन में उनकी तबीयत फिर से बिगड़ने की बात सामने आई थी। बूलेटिन में कहा गया था कि करुणानिधि के अंगों ने काम करना बंद कर दिया है और उनके लिए अगले 24 घंटे बेहद अहम है। खबर सामने आने के बाद से ही हॉस्पिटल के बाहर हजारों की तादाद में समर्थक जुटने लगे थे। जैसे ही मंगलवार शाम यह खबर सामने आई कि करुणानिधि नहीं रहे, इन समर्थकों ने हॉस्पिटल के बाहर ही रोना-बिलखना शुरू कर दिया। यहां बड़ी संख्या में लोग जमा हैं और करुणानिधि की एक झलक पाने के लिए इंतजार कर रहे हैं। बड़ीं संख्या में यहां पुलिस बल भी तैनात हैं।

बता दें कि एम करुणानिधि तमिलनाडु के पांच बार मुख्यमंत्री रहे हैं। यह सफर तय करने से पहले वे एक नाटककार थे और तमिल फिल्मों में पटकथा लेखन का काम करते थे। फिल्मों में पटकथा के माध्यम से ही उन्होंने अपनी राजनीतिक विचारधार प्रस्तुत करना शुरू की और एक द्रविड़ राजनेता के रूप में उभरे। उन्होंने करीब 70 से ज्यादा फिल्मों की कहानियां लिखीं।

करुणानिधि का जन्म इसाई वेल्लालर परिवार में 3 जून 1924 को हुआ था। नागपट्टिनम के तिरुक्कुभलइ में जन्मे करुणानिधि बचपन से ही नाटकों में बेहद रूची रखते थे। बेहद कम उम्र में ही वे तमिल फिल्मों में पटकथा लेखन का काम करने लगे। उनके लिखे कई डायलॉग आज भी तमिल लोगों में लोकप्रिय हैं। वे समाजवादी और बुद्धिवादी आदर्शों को बढ़ावा देने वाली ऐतिहासिक और सामाजिक (सुधारवादी) कहानियां लिखने के लिए मशहूर थे। करुणानिधि ने अपनी इन कहानियों को ही अपनी ताकत बनाई और एक के बाद एक कई सामाजिक संदेश देने वाली पटकथाएं लिखीं। इनमें विधवा पुनर्विवाह, अस्पृश्यता का उन्मूलन, ज़मींदारी का उन्मूलन और धार्मिक पाखंड का उन्मूलन जैसे विषय शामिल थे।

जैसे-जैसे सामाजिक संदेशों वाली करुणानिधि की इन फिल्मों और नाटकों को सफलता मिली, वैसे-वैसे उनकी लोकप्रियता भी तमिलनाडु में बढ़ती गई। उनकी फिल्मों को कई बार बैन भी किया गया। उनकी फिल्म "पराशक्ति" तमिल सिनेमा जगत और उनके लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। इस फिल्म में द्रविड़ आंदोलन की विचारधाराओं का समर्थन किया गया था, जिसके चलते फिल्म को बैन भी किया गया था। हालांकि इसके बाद जब फिल्म रिलीज हुई तो यह एक बड़ी हिट साबित हुई। इस फिल्म ने करुणानिधि को एक बड़ा मौका दिया और वे द्रविड़ योद्धा के रूप में पहचाने जाने लगे।

पटकथा लेखन के साथ-साथ करुणानिधि राजनीति में भी सक्रिय रहे। हालांकि उन्होंने अपना पहला विधानसभा चुनाव 1957 में लड़ा। इस चुनाव को जीतकर वे पहली बार विधानसभा पहुंचे। इसके बाद 1961 में वे डीएमके कोषाध्यक्ष बने और 1962 में राज्य विधानसभा में विपक्ष के उपनेता बने। 1967 में डीएमके सरकार में करुणानिधि को पहली बार मंत्री पद मिला। वे सार्वजनिक कार्य मंत्री थे। 1969 में सीएन अन्नादुरै की मौत के बाद वे राज्य के मुख्यमंत्री बने।


सीएन अन्नादुरै डीएमके के संस्थापक थे। उनके जाने के बाद करुणानिधि ही डीएमके के सर्वेसर्वा रहे। करुणानिधि ने कुल 13 बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और हर बार जीत दर्ज की। 61 साल के अपने राजनीतिक करियर में वे कभी चुनाव नहीं हारे। 1969 के बाद वे 1971–76, 1989–91, 1996–2001 और 2006–2011 में भी तमिलनाडु के सीएम रहे। वे पहले ऐसे नेता थे, जिनकी बदौलत तमिलनाडु में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी।

बहरहाल करुणानिधि के जाने के बाद तमिलनाडु की राजनीति का एक बड़ा अध्याय खत्म हो गया है। द्रविड़ राजनीति के इस पितामह के देहांत के बाद तमिल सियासत में किस तरह बदलाव होता है, यह देखना अहम होगा।

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