अफगानिस्तान में लक्षित हत्याओं के लिए प्रशिक्षक भेज रहे हैं पाकिस्तानी आतंकी संगठन

अफगानिस्तान में लक्षित हत्याओं के लिए प्रशिक्षक भेज रहे हैं पाकिस्तानी आतंकी संगठन

IANS News
Update: 2020-06-02 14:30 GMT
अफगानिस्तान में लक्षित हत्याओं के लिए प्रशिक्षक भेज रहे हैं पाकिस्तानी आतंकी संगठन

नई दिल्ली/न्यूयार्क, 2 जून (आईएएनएस)। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन जैश-ए-मुहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा अफगानिस्तान में लक्षित (टारगेटेड) हत्याओं के लिए अपने प्रशिक्षक भेज रहे हैं।

इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अफगानिस्तान में तालिबान और अल कायदा के बीच आपसी सहयोग आज भी जारी है।

एनॉलिटिकल सपोर्ट एंड सैंक्शन्स मॉनिटरिंग कमेटी ने अपनी ग्यारहवीं रिपोर्ट बीते हफ्ते संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद समिति को सौंपी। यह तालिबान व अन्य संबद्ध संगठनों व तत्वों द्वारा अफगानिस्तान में शांति, सुरक्षा व स्थायित्व के लिए उत्पन्न खतरे से संबंधित है।

यूएनएससी रिपोर्ट में कहा गया है, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद आतंकवादियों को अफगानिस्तान पहुंचा रहे हैं जो वहां सलाहकार, प्रशिक्षक और विस्फोटक विशेषज्ञ के रूप में काम कर रहे हैं। यह दोनों संगठन सरकारी अफसरों व अन्य लोगों को निशाना बनाकर की जा रही हत्याओं के लिए जिम्मेदार हैं।

यूएनएससी टीम ने कहा है कि लश्कर और जैश के क्रमश: 800 व 200 सशस्त्र सदस्य तालिबान के साथ अफगानिस्तन के मोहमंद डारा, दुर बाबा और नांगरहार के शेरजाद जिले में सक्रिय हैं। पाकिस्तान सीमा के पास स्थित मोहमंद डारा के नजदीक स्थित लालपुरा जिले में तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) सक्रिय है।

यूएनएससी मॉनिटरिंग टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि टीटीपी, जैश और लश्कर अफगानिस्तान के पूर्वी प्रांतों कुनार, नांगरहार और नूरिस्तान में अफगान तालिबान के बैनर तले सक्रिय हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़ी संख्या में अल कायदा आतंकी मारे तो गए हैं लेकिन इस संगठन के शीर्ष सरगना आज भी अफगानिस्तान में मौजूद हैं। यही नहीं, इसके भारतीय उपमहाद्वीप में मौजूद सैकड़ों सशस्त्र आतंकी और विदेशी आतंकियों के समूह तालिबान के साथ मिलकर सक्रिय हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, साझा लड़ाइयों, वैवाहिक संबंधों, विचारधारात्मक समानता के कारण तालिबान, विशेषकर हक्कानी नेटवर्क और अल कायदा का संबंध आज भी बहुत करीबी बना हुआ है। अमेरिका से वार्ता में तालिबान लगातार अल कायदा नेतृत्व से सलाह लेते रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड लेवंट खोरासान (आईएसआईएल-के) को अफगानिस्तान में कई तगड़े झटके लगे हैं। इनकी संख्या अब 2200 तक रह गई है। लेकिन, इस संगठन के पास काबुल समेत देश के अन्य हिस्सों में हमले करने की क्षमता अभी मौजूद है। हालांकि, इसमें इसे हक्कानी नेटवर्क का सहयोग भी मिल रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगान शांति प्रक्रिया के संदर्भ में आईएसआईएल के फिर से उभार का अंदेशा इसलिए अधिक है क्योंकि यह देश में खुद को नहीं झुकने वाले आतंकी संगठन के रूप में पेश कर नए आतंकियों की भर्ती व फंड पाने में सफल रह सकता है। अफगानिस्तान में जीवन यापन कर रहे साढ़े छह हजार पाकिस्तानी आतंकियों समेत अन्य विदेशी आतंकियों की मौजूदगी मामले को पेचीदा बना सकती है।

यह रिपोर्ट फरवरी 2020 में अमेरिका और तालिबान के बीच हुए शांति समझौते के संबंध में खास मायने रखती है। इस समझौते में अमेरिकी सैनिकों की वापसी, तालिबान द्वारा आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाना, तालिबान व अफगान सरकार द्वारा कैदियों को रिहा करना और अफगानिस्तान में स्थायी शांति के लिए तालिबान, अफगान सरकार व अन्य पक्षों के बीच अंतर-अफगान वार्ता शुरू करना शामिल है।

लेकिन, यूएनएससी रिपोर्ट ने कहा कि शुरुआती संकेत बता रहे हैं कि अगर सभी नहीं तो भी इस समझौते के कई उद्देश्यों को हासिल करना चुनौतीपूर्ण होने जा रहा है। तालिबान मजबूत बने हुए हैं लेकिन इनमें अंदरूनी मतभेद भी हैं जो समझौते को मुश्किल बनाएंगे। साथ ही वे अमेरिका को बिना भड़काए अफगान सरकार पर हमले के लिए भी तैयार दिख रहे हैं।

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