2004 में इन वजहों से हारी बीजेपी : प्रणव दा

2004 में इन वजहों से हारी बीजेपी : प्रणव दा

Bhaskar Hindi
Update: 2017-10-15 16:16 GMT
2004 में इन वजहों से हारी बीजेपी : प्रणव दा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपनी आत्मकथा "द कोएलिशन ईयर्स : 1996-2012" के तीसरे संस्करण में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार, गुजरात दंगे और 2004 के लोकसभा चुनाव पर खुलकर लेख लिखा है। प्रणव दा ने कहा है कि गुजरात में 2002 में हुए दंगे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार पर "संभवत: सबसे बड़ा धब्बा" था और इस वजह से ही 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा था।

प्रणव दा ने अध्याय "फर्स्ट फुल टर्म नॉन कांग्रेस गवर्नमेंट" में लिखा है, "साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में लगी आग में 58 लोग जलकर मर गए। सभी पीड़ित अयोध्या से लौट रहे हिंदू कारसेवक थे। इससे गुजरात के कई शहरों में बड़े पैमाने पर दंगे भड़क उठे थे। संभवत: यह वाजपेयी सरकार पर लगा सबसे बड़ा धब्बा था, जिसके कारण शायद बीजेपी को आगामी चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा।" मुखर्जी ने कहा कि वाजपेयी एक उत्कृष्ट सांसद थे। भाषा पर उम्दा पकड़ के साथ वह एक शानदार वक्ता भी थे, जिनमें तत्काल ही लोगों के साथ जुड़ जाने और उन्हें साथ ले आने की कला थी।

अपनी आत्मकथा "द कोएलिशन ईयर्स : 1996-2012" के तीसरे संस्करण में उन्होंने लिखा है, "इस पूरी अवधि (वाजपेयी सरकार के दौरान) में अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की मांग जोर पकड़ती रही। सांप्रदायिक तनाव का गुजरात में काफी बुरा असर पड़ा, जो 2002 में हुए सांप्रदायिक दंगों के रूप में देखने को मिला।"

"हमने देश के सुधार को गति दी"
उन्होंने अपनी किताब में लिखा, "राजनीति में वाजपेयी को लोगों का भरोसा मिल रहा था और इस प्रक्रिया में वह देश में अपनी पार्टी, सहयोगियों और विरोधियों का भी सम्मान अर्जित कर रहे थे। वहीं, विदेश में उन्होंने भारत की सौहार्द्रपूर्ण छवि पेश की और अपनी विदेश नीति के जरिए देश को दुनिया से जोड़ा। प्रभावशाली और विनम्र राजनेता वाजपेयी ने हमेशा दूसरों को उनके कार्यों का श्रेय दिया।" अपनी सरकार को श्रेय देते हुए प्रणव मुखर्जी ने लिखा, "सुधार की शुरुआत हमने नहीं की। हम नरसिम्हा राव सरकार द्वारा शुरू की गई और दो संयुक्त मोर्चा सरकारों द्वारा जारी रखी गई प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन हम सुधार प्रक्रिया को व्यापक और गहरा बनाने और इसे गति देने का श्रेय अवश्य लेते हैं।"

उल्टा-पुल्टा निकला "इंडिया शाइनिंग" का नतीजा
मुखर्जी ने लिखा, "एनडीए का आत्मविश्वास हिल गया था। उसके "इंडिया शाइनिंग" अभियान का नजीता बिल्कुल उल्टा निकला था और बीजेपी में निराशा की लहर छा गई थी। जिसके कारण वाजपेयी ने दुखी होकर कहा था कि वह कभी भी मतदाता के मन को नहीं समझ सकते।" मुखर्जी ने साथ ही याद किया कि 2004 आम चुनाव अक्टूबर में होने थे, लेकिन बीजेपी ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में मिली जीत को देखते हुए छह महीने पहले ही चुनाव करा लिए थे, हालांकि दिल्ली में उसे कांग्रेस के हाथों हार मिली थी। मुखर्जी ने कहा, "महत्वपूर्ण राज्यों में जीत के कारण बीजेपी में खुशी की लहर थी। हालांकि कुछ लोगों ने इन परिणामों को राष्ट्रीय रुझान समझने की भूल न करने की सलाह भी दी थी।"

नहीं चला राजनीतिक पंडितों का गणित
मुखर्जी के मुताबिक, वाजपेयी ने कभी भी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को व्यक्तिगत तौर पर नहीं लिया। उनका कहना है कि 2004 के लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस फिर से सत्ता में आ गई। कांग्रेस और कई अन्य गैर-बीजेपीई पार्टियों की जीत ने कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया। कई चुनावी पंडितों ने एनडीए की स्पष्ट जीत की भविष्यवाणी की थी। 2004 की फरवरी में इंडिया टुडे-ओआरजी-एमएआरजी सर्वेक्षण में वाजपेयी के नेतृत्व वाले गठबंधन की स्पष्ट जीत की भविष्यवाणी की गई थी। मुखर्जी के मुताबिक, ""चुनाव सर्वेक्षण का विश्लेषण करते हुए पत्रिका ने लिखा था, "प्रधानमंत्री की लोकप्रियता और अर्थव्यवस्था में तेजी की लहर पर सवार बीजेपी नेतृत्व वाला गठबंधन आगामी चुनाव में स्पष्ट जीत हासिल करने को तैयार नजर आ रहा है।"

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