मानव तस्करी की समस्या से जूझ रहे राजस्थान के आदिवासी

मानव तस्करी की समस्या से जूझ रहे राजस्थान के आदिवासी

IANS News
Update: 2019-08-04 14:30 GMT
मानव तस्करी की समस्या से जूझ रहे राजस्थान के आदिवासी
हाईलाइट
  • भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के विधायक राजू कुमार राउत ने पिछले महीने राजस्थान विधानसभा में यह बयान देकर सभी को चौंका दिया कि आठ से 16 साल उम्र वर्ग के जो बच्चे लापता हुए हैं
  • वास्तव में उन्हें उनके गरीबी से ग्रस्त परिजनों ने मध्य प्रदेश
  • गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में लोगों के यहां घरेलू नौकर के रूप में और मजदूर के रूप में काम करने के लिए भाड़े पर दे दिया है
  • विधायक के अनुसार
  • वागड़ के
जयपुर, 4 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के विधायक राजू कुमार राउत ने पिछले महीने राजस्थान विधानसभा में यह बयान देकर सभी को चौंका दिया कि आठ से 16 साल उम्र वर्ग के जो बच्चे लापता हुए हैं, वास्तव में उन्हें उनके गरीबी से ग्रस्त परिजनों ने मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में लोगों के यहां घरेलू नौकर के रूप में और मजदूर के रूप में काम करने के लिए भाड़े पर दे दिया है।

विधायक के अनुसार, वागड़ के साथ ही बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जिलों के आदिवासी क्षेत्रों में गरीब भील और दूसरे आदिवासियों की संख्या अधिक है। ये जिले पिछले कुछ वर्षों से बड़े पैमाने पर बाल तस्करी की समस्या से जूझ रहे हैं।

राउत के बयान ने राजस्थान में मानव तस्करी की बदलती तस्वीर के संदर्भ में नई बहस को जन्म दे दिया है।

गरीबी के चलते आदिवासी परिजनों द्वारा अपने बच्चों को रुपयों के खातिर भाड़े पर देना इस समस्या का एक पक्ष है। इसका दूसरा पक्ष यह है कि सेक्स या गुलामी के लिए आदिवासी इलाकों से जवान लड़कियों और लड़कों का अपहरण किया जा रहा है, और उन्हें पड़ोसी गुजरात में बेचा जा रहा है।

और यह उदयपुर की जादोल तहसील के गरीब आदिवासी गांव भामती में एक फलता-फूलता व्यापार बन गया है।

इस प्रकार के रैकेट में शामिल लोगों को कई बार गिरफ्तार किया जाता है, लेकिन उन्हें जमानत मिल जाती है और इस तरह अपराध का यह चक्र चलता रहता है। और इस व्यापार के शिकार ज्यादातर पीड़ित कभी वापस नहीं लौट पाते।

गांव के पूर्व सरपंच शांतिलाल कराडी ने कहा, जिन लोगों के पास रुपये हैं, वे अपने बच्चों को वापस लाने में सफल हो जाते हैं।

ऐसे ही एक सौभाग्यशाली पिता हैं सूरजमल परागी, जिनकी 16 साल की बेटी को उस वक्त अगवा कर लिया गया था, जब वह अपनी बहन के गांव उससे मिलने जा रही थी।

पांच लोगों ने उसे दो लाख रुपये में बेच दिया। चार महीने की गहन तलाशी के बाद जालोर से उसे बरामद किया गया।

जादोल तहसील के एसएचओ उम्मेदलाल मीणा ने कहा, हमने पांच लोगों को गिरफ्तार किया और धारा 370 (देह व्यापार) के अंतर्गत मामला दर्ज किया।

परागी कहते हैं, मैं भाग्यशाली रहा कि एक बड़ी राशि खर्च करने के बाद मुझे मेरी बेटी वापस मिल गई। लेकिन उनका क्या जो गरीब हैं और कैब किराए पर लेकर अपने लापता बच्चों की तलाश नहीं कर सकते हैं?

फालासिया गांव के निवासी नाथूलाल की बेटी को काम दिलाने के बहाने पाली ले जाया गया था। नाथूलाल ने कहा, उसके बाद तस्करों ने बेटी का माता-पिता बनकर उसे एक अन्य परिवार को बेचने की कोशिश की। हालांकि परिवार को संदेह हुआ और उसने पाली में बेटी के असली परिजनों के खिलाफ एक मामला दर्ज कराया।

उसी के बाद से नाथूलाल और उनकी पत्नी मामले की सुनवाई के लिए पाली की अदालत के चक्कर काट रहे हैं, और उनके पास बिल्कुल पैसे नहीं हैं।

परागी ने कहा कि ऐसी कई लापता लड़कियां हैं, जिनकी कोई जानकारी नहीं है।

उन्होंने कहा, दलालों ने कुछ रुपये देकर उनके गरीब माता-पिता का मुह बंद करा दिया है, जिसके कारण वे मामला दर्ज कराने के लिए कभी पुलिस के पास नहीं गए हैं। अगवा की गईं लड़कियों को दी गईं शारीरिक यातनाओं के परिणाम स्वरूप जब उनके तीन-चार बच्चे हो जाते हैं, तब वे कभी-कभी अपने माता-पिता से संपर्क करती हैं।

बाबू देवी (39) का भामती से अपहरण कर उसे श्री गंगानगर ले जाया गया।

उसने बताया, जब अपहर्ता मुझे किसी के पास बेचने की कोशिश कर रहे थे, तभी मैं वहां से भाग गई और रेलवे स्टेशन पहुंचकर मैंने जयपुर के लिए ट्रेन पकड़ी। जयपुर पहुंचकर मैं जादोल जाने वाली बस में बैठ गई।

उसने आगे बताया, मेरे पति इतने गरीब और अनपढ़ हैं कि उन्होंने इस संबंध में कोई शिकायत नहीं दर्ज कराई। हालांकि मैं कुछ दिनों बाद भूखी-प्यासी अपने आप घर पहुंच गई।

सिर्फ लड़कियों का ही नहीं, लड़कों का भी अपहरण किया जा रहा है। काम के बहाने उन्हें घर से ले जाया जाता है और फिर घर नहीं आने दिया जाता। उनसे बांधुआ मजदूर की तरह काम लिया जाता है।

कराडी ने आईएएनएस को ऐसे नामों की एक सूची दी, जिसमें पिछले कुछ महीनों में लापता हुईं चार लड़कियों और पास के गांवों से कुछ महीनों पूर्व काम के लिए घर से ले जाए गए 17 लड़कों के नाम हैं।

17 वर्षीय महावीर मीना को जादोल के उसके गांव से काम के लिए गुजरात के खेरवाड़ा गांव में मजदूरी के लिए ले जाया गया।

महावीर ने कहा, आठ दिनों बाद मैंने अपने परिवारवालों से मिलने की इच्छा जताई, लेकिन मुझे अनुमति नहीं दी गई। मुझे मेरा वेतन भी नहीं दिया गया। दसवें दिन मैं भागकर अपने गांव वापस आ गया।

उसने बताया कि अब वह बी.कॉम की पढ़ाई कर रहा है।

महावीर ने कहा, मेरी तरह 15 लड़के और थे। मैंने उनके परिवारवालों को सूचना दी। सभी कैब बुक करके खेरवाड़ा गए और चुपचाप सभी लड़कों को वापस ले आए। ड्राइवर की कुछ जान-पहचान थी, जिससे हमें सुरक्षित अपने घर आने में मदद मिली।

कराडी के अनुसार, ऐसे मामलों में पिछले 6-7 सालों में तेजी आई है। इस प्रकार की तस्करी से जुड़े लोगों पर पुलिस को कड़ी कारवाई करनी चाहिए, ताकि उन्हें जमानत नहीं मिले। सख्त कानून बनाने की आवश्यकता है।

भारतीय ट्राइबल पार्टी नौ अगस्त को वल्र्ड इंडिजेनस पीपल डे के दिन मानव तस्करी के इन सभी पीड़ितों को उदयपुर स्थित संभागीय जनजातीय आयुक्त के कार्यालय में प्रस्तुत करने की योजना बना रही है।

भारतीय ट्राइबल पार्टी के कार्यकर्ता बी.एल. छानवाल ने कहा, दुनिया को पता चलना चाहिए कि कैसे भारत की आजादी के 70 साल बाद भी आदिवासियों की गरीबी और उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर उनका शोषण किया जा रहा है।

--आईएएनएस

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