CWG 2018: गरीबी से गोल्ड तक, ऐसी है पूनम यादव के संघर्ष की कहानी

CWG 2018: गरीबी से गोल्ड तक, ऐसी है पूनम यादव के संघर्ष की कहानी

Bhaskar Hindi
Update: 2018-04-08 07:08 GMT
CWG 2018: गरीबी से गोल्ड तक, ऐसी है पूनम यादव के संघर्ष की कहानी

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को गोल्ड मेडल दिलाने वाली वेटलिफ्टर पूनम यादव की कहानी काफी संघर्षों से भरी है। सफलता के इस शिखर तक पहुंचने के लिए पूनम ने काफी संघर्ष किया है और उनके परिवार ने भी कई मुश्किलें झेली हैं। पूनम वाराणसी के दांदपुर जिले की रहने वाली हैं और फिलहाल रेलवे में टीटीई की नौकरी कर रही हैं। उनके पिता कैलाश यादव किसान हैं जिनका कहना है कि बेटी की उपलब्धि पर उन्हें गर्व है।

 

 

ताने देने वाले लोग करते हैं सलाम

पूनम के पिता किसान हैं और परिवार की आर्थिक हालत में भी शुरुआत में काफी खराब थी। पूनम की मां आज भी संघर्ष के दिनों को याद कर रो पड़ती है वो कहती हैं कि कई दिन तो उन लोगों को भूखे सोना पड़ा था, बेटी के खेलने के कारण लोग उन्हें ताने देते थे, लेकिन अब बेटी की कामयाबी के बाद ताने देने वाले लोग सलाम करते हैं। पूनम की मां कहना है कि जब 2014 में ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में पूनम ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था तो उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि मिठाईं बांट सकें।

 

 

पूनम ने खेतों में की खूब मेहनत 

पूनम की दादी का कहना है कि जब उन्होंने पूनम को पहली बार वजन उठाते देखा तो खूब रोईं थीं। उन्हें इस बात का डर था कि कहीं भारी लोहे की रॉड पूनम के ऊपर न गिर जाए। पूनम की दादी ने बताया कि पूनम खेतों में खूब मेहनत करती थी। 

 

 

ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स 2014 में भेजने के लिए नहीं थे पैसे 

पूनम के पिता कैलाश यादव ने बताया कि साल 2011 में पूनम ने प्रैक्टिस शुरु की थी वो घर और खेत दोनों का सारा कामकाज संभालती थी और प्रैक्टिस भी करती थी। परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी और गरीबी के चलते उसे पूरी डाइट भी नहीं मिल पाती थी। 2014 में जब पूनम साल 2014 में ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में खेलने के लिए जा रही थी तो उनके पास पैसे नहीं थे इसलिए घर की भैंसों को बेचकर और करीबियों से 7 लाख उधार लेकर बेटी को दिए थे। तब जाकर पूनम ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में जा पाई थी जहां उसने सबका सपना पूरा किया था और ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया था। 

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