#FIFAU17WorldCup: वो खिलाड़ी, जिसने कोलंबिया के खिलाफ दागा 'गोल'

#FIFAU17WorldCup: वो खिलाड़ी, जिसने कोलंबिया के खिलाफ दागा 'गोल'

Bhaskar Hindi
Update: 2017-10-10 05:48 GMT
#FIFAU17WorldCup: वो खिलाड़ी, जिसने कोलंबिया के खिलाफ दागा 'गोल'

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सोमवार को FIFA Under-17 World Cup के चौथे दिन इंडिया और कोलंबिया के बीच मैच खेला गया। इस मुकाबले में इंडिया को 2-1 से हार का सामना करना पड़ा। हार के बाद भी मैच के दौरान एक वक्त ऐसा आ गया था, जब कोलंबिया इंडिया के सामने प्रेशर में आ गई थी। कारण था कि इंडिया टीम के यंग प्लेयर कोलंबिया को गलती का कोई मौका नहीं दे रहे थे। दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में खेले गए इस रोमांचक मैच में आखिरकार इंडिया को हार मिली, लेकिन उसके बाद भी इंडिया टीम जिस तरह से खेली, उसकी सब तारीफ कर रहे हैं। कोलंबिया के खिलाफ इंडिया की तरफ से एकमात्र गोल जैक्सन सिंह ने मारा और इसी के साथ वो पहले इंडियन प्लेयर बन गए हैं, जिन्होंने FIFA World Cup में गोल किया। आज हम आपको उसी जैक्सन से मिलवाने जा रहे हैं, जिसने लाख परेशानियों का सामना किया और इंडिया टीम में शामिल हुए। 

छोटे से ग्राउंड से हुई फुटबॉल खेलने की शुरुआत

हाल ही में अंडर-17 टीम में सिलेक्ट होने के बाद जैक्सन ने एक इंटरव्यू में अपने बैकग्राउंड के बारे में जानकारी दी थी। जैक्सन ने बताया था कि, "मैं एक एथलीट फैमिली से बिलॉन्ग करता हूं। मेरे पापा हर तरह का स्पोर्ट खेलते थे और मेरी मां भी एक बास्केटबॉल प्लेयर थीं। हमेशा से स्पोर्ट्स हमारी फैमिली का हिस्सा रहा है। मेरे घर के पास एक छोटा सा ग्राउंड था, जहां मैंने फुटबॉल की शुरुआत की थी। मेरे भाई और उसके दोस्त वहां हमेशा फुटबॉल खेला करते थे और उन्हें देखकर मैंने भी खेलना शुरू किया। बस फिर क्या था, मुझे धीरे-धीरे इस खेल से प्यार हो गया।" 

गरीबी से लड़कर आया है इतना आगे जैक्सन

जैक्सन सिंह का पूरा नाम जैक्सन सिंह थौनाओजाम है और उनका जन्म मणिपुर के थोउबल जिले के हाओखा ममांग गांव में हुआ था। जैक्सन के लिए फुटबॉल की राह इतनी आसान नहीं थी। उन्होंने और उनके परिवार ने हमेशा गरीबी से लड़ाई लड़ी है। 2015 में जैक्सन के पिता कोंथुआजम देबेन सिंह को पैरालिसिस हो गया, जिस वजह से उन्हें मणिपुर पुलिस की नौकरी छोड़नी पड़ी। फैमिली का खर्च उनकी मां पर आ गया। फैमिली खर्च चलाने के लिए गांव से 25 किलोमीटर दूर जाती थी और सब्जी बेचकर फैमिली खर्च चलाती थी। जैक्सन के बड़े भाई जोनिचंद सिंह कोलकाता प्रीमियर लीग में पीयरलेस क्लब में खेलते हैं, लेकिन उनकी इनकम से भी कुछ खास असर नहीं हुआ।     

मां-बाप ने हमेशा किया है सपोर्ट

जैक्सन के साथ ये अच्छी बात रही है कि उनके शौक को पूरा करने में उनके मां-बाप ने भी उनका सपोर्ट किया। आमतौर पर गरीब फैमिली में बच्चों को उनकी हॉबी से दूर होना पड़ता है। जैक्सन की मां सब्जी बेचकर घर का गुजारा करती थी, साथ ही अपने बेटे को फुटबॉल खेलने के लिए भी मोटिवेट करती रहती थी। जैक्सन के पिता देबेन सिंह भी एक स्पोर्टमैन रहे हैं और मणिपुर के कुछ क्लब्स के लिए उन्होंने फुटबॉल भी खेला है। जैक्सन के पिता ने ही उन्हें और अंडर टीम के कैप्टन अमरजीत सिंह कियाम को फुटबॉल की ट्रेनिंग दी है। 

रिजेक्शन के बाद भी नहीं मानी हार

अपने पिता से शुरुआती ट्रेनिंग लेने के बाद जैक्सन चंडीगढ़ चले गए और चंडीगढ़ फुटबॉल एकेडमी से ही फुटबॉल की बारीकियां सीखीं और फिर इसी के लिए खेलते रहे। काफी समय तक चंडीगढ़ एकेडमी की तरफ से खेलने के बाद जैक्सन मिनर्वा FC में शामिल हो गए, लेकिन इंडियन अंडर-17 टीम में शामिल होने के लिए उन्हें अभी और इंतजार करना पड़ा। इंडियन फुटबॉल टीम के पूर्व कोच निकोलाई एडम ने कई बार जैक्सन को अंडर-17 टीम के लिए रिजेक्ट किया, लेकिन उसके बाद भी जैक्सन ने हार नहीं मानी। आखिरकार अंडर-17 टीम पर मिनर्वा FC की जीत के बाद कोच लुईस नॉर्टन डी माटोस ने उन्हें इंडियन अंडर-17 टीम के स्क्वॉड में शामिल किया। जैक्सन के अलावा 4 और खिलाड़ियों को भी टीम में जगह दी गई। 

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