देवधर ट्रॉफी : एक विकेट लेने पर इस खिलाड़ी को मिलते थे 10 रुपए, बचपन में गुजर गए माता-पिता

देवधर ट्रॉफी : एक विकेट लेने पर इस खिलाड़ी को मिलते थे 10 रुपए, बचपन में गुजर गए माता-पिता

Bhaskar Hindi
Update: 2018-10-19 16:46 GMT
देवधर ट्रॉफी : एक विकेट लेने पर इस खिलाड़ी को मिलते थे 10 रुपए, बचपन में गुजर गए माता-पिता
हाईलाइट
  • देवधर ट्रॉफी में इंडिया-c की टीम में चुने गए पप्पू रॉय की कहानी किसी सपने के सच होने जैसी है।
  • पप्पू ने कहा कि उन्होंने बचपन में ही मां-बाप बहुत को खो दिया था।
  • पप्पू बताते हैं कि उनकी गेंदबाजी से तय होता था कि वह भूखे पेट सोएंगे या खाना खाकर।

डिजिटल डेस्क, गुवाहाटी। देवधर ट्रॉफी में इंडिया-c की टीम में चुने गए पप्पू रॉय की कहानी किसी सपने के सच होने जैसी है। कभी एक विकेट हासिल करने के 10 रुपए पाने वाले पप्पू अब देवधर ट्रॉफी में अजिंक्य रहाणे और सुरेश रैना जैसे खिलाड़ियों के साथ खेलते नजर आएंगे। पप्पू ने कहा कि उन्होंने बचपन में ही मां-बाप को खो दिया था। पप्पू बताते हैं कि इसके कुछ दिन बाद उन्होंने क्रिकेट खेलना शुरू किया और उनकी गेंदबाजी से तय होता था कि वह भूखे पेट सोएंगे या खाना खाकर।

पप्पू को ओडिशा की तरफ से विजय हजारे ट्रॉफी में अच्छा प्रदर्शन करने का इनाम मिला है। हालांकि पप्पू को इस बात का बहुत दुख है कि उन्हें भारत की तरफ से खेलता देखने के लिए उनके माता-पिता जिंदा नहीं हैं। पप्पू ने कहा, मैंने उन्हें कभी नहीं देखा। कभी गांव नहीं गया। काश वह आज मुझे इंडिया-C की तरफ से खेलते हुए देखने के लिए जिंदा होते। जब टीम घोषित हुई तब मैं कल पूरी रात नहीं सो पाया और रोता रहा। मुझे लगता है कि मेरी पिछले कई साल से की जा रही कड़ी मेहनत का अब मुझे फल मिल रहा है।

एक विकेट के मिलते थे 10 रुपए
पप्पू ने बताया, जब उन्होंने क्रिकेट खेलना शुरू किया, तब भैया लोग मुझे बुलाते थे और मुझसे कहते थे कि बॉल डालेगा तो खाना खिलाऊंगा। मुझे बॉलिंग करना पसंद था और वह मेरे द्वारा लिए गए हर विकेट पर 10 रुपए देते थे। पप्पू बताते हैं कि उनके माता पिता बिहार के रहने वाले थे। उन्होंने केवल अपने परिवार वालों के बारे में सुना है। पप्पू ने बताया, उनके माता-पिता कमाई करने के लिये बंगाल चले गये थे। मैंने अपने पिता जमादार राय और पार्वती देवी को तभी गंवा दिया था जबकि मैं नवजात था। मेरे पिता ट्रक ड्राइवर थे। उनका निधन दिल का दौरा पड़ने से हुआ था। जबकि मेरी मां का निधन लंबी बीमारी के बाद हुआ था। माता-पिता की मौत के बाद चाचा और चाची ने मेरी देखभाल की। जल्द ही मेरे चाचा जो कि मजदूर थे, वह भी चल बसे। इसके बाद मेरे लिए एक वक्त का खाना जुटाना भी मुश्किल हो गया, लेकिन क्रिकेट ने उन्हें नया जीवन दिया।

प्रज्ञान ओझा के आने से बंगाल टीम में नहीं मिली जगह
पप्पू ने कहा, मैं पहले तेज गेंदबाज बनना चाहता था। हालांकि हावड़ा क्रिकेट अकादमी के कोच सुजीत साहा ने मुझे बाएं हाथ से स्पिन गेंदबाजी करने की सलाह दी। इसके बाद मैं 2011 में बंगाल में खेले गए सेकेंड डिवीजन लीग में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाला गेंदबाज बना। मैं उस वक्त डलहौजी की तरफ से खेलता था और मैंने 50 विकेट लिए थे। हालांकि उस वक्त भारत के पूर्व स्पिनर प्रज्ञान ओझा के आने से मुझे बंगाल टीम में जगह नहीं मिली।

उम्मीद है देवधर ट्रॉफी में टीम में शामिल होउंगा
पप्पू ने बताया, इसके बाद मैं भोजन और घर की तलाश में ओडिशा के जाजपुर आ गया। मेरे दोस्त जिनसे मैं बंगाल में मिला था, उन्होंने मुझसे कहा कि वह मुझे खाना और घर दिलवाएंगे। इस तरह से ओडिशा मेरा घर बन गया। मुझे जल्द ही ओडिशा अंडर-15 टीम में जगह मिली। तीन साल बाद मुझे सीनियर टीम के लिए सेलेक्ट किया गया और आज मैं यहां हूं। मुझे उम्मीद है कि मुझे मौका मिलेगा और मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूंगा। इससे मुझे काफी कुछ सीखने को भी मिलेगा।


 

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